Bastar Naxalites Ambush News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली गर्मी का मौसम आते ही आक्रामक हो जाते हैं. नक्सली ज्यादा से ज्यादा जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए नक्सल इफेक्टेड एरिया में सक्रिय हो जाते हैं. पिछले एक दशक में गर्मी के मौसम में ही नक्सलियों ने सबसे ज्यादा फोर्स को नुकसान पहुंचाया. नक्सली अंदरूनी इलाकों में ऑपरेशन और गश्ती पर जाने वाले जवानों को ही अपना निशाना बनाते हैं और उन्हें एंबुश में फंसाकर ताबड़तोड़ फायरिंग करते हैं. नक्सलियों का एंबुश काफी खतरनाक होता है, जिसे भेद पाने में पुलिस के जवान कई बार नाकाम हो जाते हैं, जिस वजह से जवानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है. लंबे समय से नक्सली इसी एंबुश के जरिए जवानों को नुकसान पहुंचाते आ रहे हैं. 


एंबुश बनते हैं जवानों के लिए घातक


छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए लंबे समय से अलग-अलग तरीका अपनाते हैं. नक्सलियों की कोशिश होती है कि अपने अटैक से ज्यादा से ज्यादा जवानों को नुकसान पहुंचा सके. इसके लिए ब्लास्ट करने के साथ नक्सली स्पाइक होल के जाल में भी जवानों को फंसाते हैं. यही नहीं गर्मी के मौसम में नक्सली पेड़ों के नीचे आईईडी प्लांट कर रखते हैं, जहां जवान थक कर बैठते हैं और इस आइईडी के चपेट में आ जाते है. वहीं पिछले करीब दो दशक में बस्तर में हुई बड़ी नक्सल घटनाओं में जवानों को घेरकर मारने के लिए रची गई साजिशों और तौर-तरीकों के विश्लेषण से यह तथ्य सामने आया है कि नक्सली मोटे तौर पर 3 तरह के एंबुश का इस्तेमाल करते  हैं.


इनमें से एक तरीका तो वह है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय गुरिल्ला युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया जाता था. बैट एंबुश बैट यानी चारा नक्सली जवानों पर अपने हमले के दौरान अधिकांश बैट एंबुश का इस्तेमाल जवानों को फंसाने के लिए करते हैं. इस बैट यानी चारा एंबुश में गश्ती पर निकलने वाले जवानों के सामने चारा फेंककर उन्हें बुलाया और जाल में फंसाकर मारा जाता है. नक्सल मामलों के जानकार मनीष गुप्ता बताते हैं कि बैट एंबुश के दौरान नक्सली पुलिस जवान या आम नागरिक की हत्या कर उनके शव को किसी एक स्थान पर रख देते हैं. इसके बाद यह सूचना पुलिस तक पहुंचाई जाती है. जब पुलिस की टीम जांच के लिए यहां पहुंचती है, तो इन पर बारूदी सुरंग हमला या ब्लास्ट से हमला किया जाता है.


सुकमा हमले 76 जवान हुए थे शहीद


इस हमले की जानकारी जब पुलिस को मिलती है, तो मदद के लिए दूसरी और बड़ी पुलिस टीम भेजी जाती है. इस टीम को घटनास्थल तक आने दिया जाता है, जैसे ही यह टीम नक्सलियों के फायरिंग रेंज में आती है, तो चारों दिशाओं में छिपे नक्सली इस टीम पर गोला बारूद से हमला करने के साथ ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर देते हैं. वहीं दूसरा एंबुश अपॉर्चुनिटी एंबुश होता है, यह नाम से ही स्पष्ट है कि अवसर मिलते ही हमला करना या हमला उस समय किया जाता है, जब नक्सलियों की जंगल में मौजूदगी के दौरान पुलिस या सुरक्षा बलों का गश्ती दल उनके आसपास से गुजरता है.


नक्सली पुलिस टीम आने की जानकारी मिलते ही एंबुश लगाने की तैयारी कर लेता है. ऐसे हमलों के दौरान वाहनों में सवार जवानों को बारूदी सुरंग का शिकार बनाया जाता है. एक बार पुलिस टीम के बारूदी सुरंग के दायरे में आने के बाद चौतरफा फायरिंग की जाती है. इस तरह की कई घटनाएं छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में हो चुकी है. 6 अप्रैल 2010 को देश के सबसे बड़े नक्सली हमलों में से एक सुकमा जिले के ताड़मेटला में हुई नक्सल वारदात में इसी एंबुश के तरीके को अपनाया गया था. इस नक्सली हमले में 76 जवानों की शहादत हुई थी.


U और V शेप के एंबुश में फंसाते हैं नक्सली


इसके अलावा नक्सली अधिकतर हमलों में V शेप और U शेप का एंबुश बनाते हैं. इस एंबुश के तहत नक्सली जवानों की जंगल और पहाड़ी क्षेत्रों में आने की सूचना मिलने पर अलर्ट हो जाते हैं. इसके बाद उन्हें V शेप या फिर U शेप के एंबुश में घेर लेते हैं, जिसके बाद नक्सली तीन तरफ से जवानों पर एक साथ फायरिंग खोल देते हैं. जवानों को इस एंबुश में फंसने के बाद कुछ समझ नहीं आता, जिसके चलते तीनों तरफ से फायरिंग होने से जवानों को नक्सलियों की गोली लग जाती है. सुकमा के कसालपाड़ में नक्सलियों ने इसी टेक्टिस को अपनाकर जवानों पर फायरिंग की थी, जिसमें 22 जवानों की शहादत हुई थी.


जवानों को दी जाती खास ट्रेनिंग


हालांकि बस्तर आईजी सुन्दरराज पी का कहना है कि नक्सलियों की एंबुश को भेदने के लिए जवानों को खास ट्रेनिंग भी दी जाती है, लेकिन कई बार नक्सली ऐसे इलाकों में अपनी एंबुश लगाते हैं. जिसका जवानों को अंदाजा भी नहीं हो पाता और ऐसी घटनाओं में जवानों को ज्यादा नुकसान पहुंचता है. हालांकि कई मुठभेड़ों में नक्सलियों के इस एंबुश को भेद पाने में जवानों को सफलता भी मिली है. शनिवार को हुए मुठभेड़ में घटनास्थल से करीब 800 मीटर की दूरी पर नक्सलियों के बटालियन नंबर एक के लड़ाकू नक्सलियों ने U शेप में एंबुश  लगाया था, लेकिन जवानों को इसकी भनक लगने के बाद जवानों की बेकअप टीम ने नक्सलियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की और उनके एंबुश को भेद पाने में कामयाब हुए.


आईजी ने कहा कि नक्सली अधिकतर हमलों में जवानों पर पीछे से वार करते हैं और छुपकर वार करते हैं. इसके बावजूद जवान नक्सलियों का मुंहतोड़ जवाब देते हैं. आईजी ने कहा कि आमने-सामने की लड़ाई में ज्यादातर नक्सलियों को ही नुकसान पहुंचा है, लेकिन नक्सली अपने कायरता का परिचय देते हुए पीछे से या छुपकर वार करते हैं. जिससे नक्सलियों के एंबुश से जवानों को ज्यादा नुकसान पहुंचता है.


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