Naxalites News: बस्तर पिछले 4 दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. 4 दशकों में नक्सलियों ने कई बड़ी वारदातों को अंजाम दिया है. पुलिस के जवानों को भारी नुकसान पहुंचा है. जनप्रतिनिधी, आम नागरिक भी बड़ी संख्या में मारे गए है. नक्सलियों के शांत बैठने को बैकफुट पर समझा जाता है. लेकिन अचानक नक्सली फिर एक बड़ी घटना को अंजाम देते हैं. घटना से नक्सलियों की दहशत दोबारा बन जाती है.


नक्सल मामलों को समझने वालों की मानें तो नक्सली ज्यादातर बड़ी घटनाओं को फरवरी से मई के बीच में अंजाम देते हैं. इन 4 महीनों को नक्सलियों का टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैंपैन (TCOC) समय कहा जाता है. बीते 10 सालों में अब तक TCOC के दौरान 250 जवान शहीद हो चुके हैं. आखिर क्या होता है TCOC और क्यों इस दौरान नक्सली बड़ी घटना को अंजाम देते हैं.


4 महीने नक्सल गतिविधियों का केंद्र


बस्तर पुलिस और अर्ध सैनिक बल बखूबी जानते हैं कि फरवरी से मई माह तक के 4 महीने नक्सल गतिविधियों का केंद्र होता है. इस समय नक्सली पूरी तरह अटैकिंग मोड में होते हैं. रणनीतियां बनाकर जमीन पर उतारने में सारी ऊर्जा खर्च करते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैम्पेन (TCOC) पीरियड होता है. इस दौरान हिंसक गतिविधियों के साथ खूनी संघर्ष का तांडव मचा कर पुलिस और आमजनों में दहशत का संदेश देते हैं.


इसके साथ ही मौजूदगी दिखाकर संगठन को मजबूत बनाने का काम करते हैं. दरसअल TCOC नक्सलियों का एक अभियान है. इस अभियान के तहत नक्सली ज्यादा से ज्यादा बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने के लिए पूरी तरह से एक्टिव रहते हैं. इन 4 महीनों में ये भी देखा गया है कि TCOC नक्सलियों के बड़े विंग्स की ओर से अंजाम दिया जाता है. खासकर पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) प्लाटून नंबर 1 और 2 के सभी नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं.  प्लाटून नंबर 1 और 2 के नक्सली प्रशिक्षण प्राप्त कर 4 महीनों में नए लड़ाकों को ट्रेनिंग देते हैं. मुठभेड़ के दौरान भी ट्रेनिंग चलती है. यूं कहा जाए कि नक्सली इन 4 महीनों में खूनी आंतक मचाते हैं. साथ ही पुलिस और आम जनों के बीच खौफ और दहशत का संदेश देते हैं.


क्या होता नक्सलियों का TCOC?


TCOC (टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैंपेन) के तहत नए लड़ाकों को नक्सली संगठन से जोड़ते हैं और जोड़ने का काम आमतौर पर पतझड़ के बाद शुरू होता है. नक्सली नए लड़ाकों को सिखाते हैं कि सही समय पर हमला कैसे करना है? रियल टाइम प्रैक्टिस और एंबुश में कैसे जवानों को फंसा कर मारा जाए? इसके अलावा ट्रेनिंग में ये भी बताया जाता है कि फायरिंग में कैसे शहीद जवानों के हथियार लूटने हैं? इसी अवधि में नक्सली संगठन का विस्तार करते हैं. नए सदस्यों को पुलिस पर आक्रमण, हथियार प्रशिक्षण और अन्य शस्त्र कला और गुरिल्ला वार का प्रशिक्षिण मिलता है. इसके अलावा व्यापारियों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों और सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों से वसूली कर साल भर का फंड इकट्ठा करते हैं. बाकी 8 माह नक्सली मौका मिलने या पुलिस की रेकी कर किसी चूक का इंतजार कर छोटी वारदातों को अंजाम देते हैं.


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नक्सल मामलों के जानकार  बताते हैं कि नक्सली फरवरी से मई माह तक 4 महीनों में काफी आक्रामक हो जाते हैं और गुरिल्ला युद्ध करते हैं. आंकड़ों के मुताबिक अधिकतर पुलिस-नक्सली मुठभेड़ इन्हीं 4 महीनों में होती है. फरवरी से मई महीने में काफी गर्मी होती है. इस दौरान नक्सल ऑपरेशन पर जंगलों में निकले जवान काफी थक जाते हैं. पतझड़ का मौसम होने की वजह से पारदर्शिता बढ़ जाती है. ऐसे में नक्सली इस समय एंबुश लगाकर जवानों पर फायर खोल देते हैं. नक्सलियों के एंबुश में फंसे जवानों को ज्यादा नुकसान पहुंचता है. पूर्व नक्सली कमांडर और सरेंडर नक्सली रमेश बदरन्ना बताते हैं कि नक्सली समय-समय पर अभियान का नाम बदलते रहते हैं लेकिन अभियान उसी तरह से जारी रहता है. नाम बदलकर अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए नए लड़ाकों की तैनाती करते हैं, उन्हें पूरी तरह से प्रशिक्षण देते हैं और उसके बाद इन 4 महीनों के अंतराल में बड़ी-बड़ी वारदातों को अंजाम देते हैं. पूर्व नक्सली का कहना है कि नक्सलियों का पैंतरा शुरू से रहा है. इससे बड़ी संख्या में जवानों को नुकसान पहुंचता है. नक्सली इसी दौरान अधिकतर एंबुश में जवानों को फंसाते हैं.


जवानों को काफी नुकसान पहुंचा चुके हैं नक्सली
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि पुलिस ने भी हमेशा से नोटिस किया है कि नक्सली TCOC अभियान के दौरान ज्यादा आक्रामक होते हैं. खासकर मार्च-अप्रैल और मई के महीनों में जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए उपस्थिति दिखाते हैं. इस दौरान नक्सलियों के बड़े दलम के कमांडर भी सक्रिय रहते हैं. हालांकि कई बार सुरक्षा बलों को आभास होने के बाद नक्सलियों के चंगुल से बच निकलने में भी कामयाबी मिली है, लेकिन कुछ घटनाओं में सर्चिंग पर निकले जवान बिछाए एम्बुश में फंस जाते हैं और बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सलियों की TCOC के दौरान बस्तर पुलिस को भी बीते साल काफी उपलब्धि मिली है. इन महीनों में नक्सलियों के बड़े कमांडर भी मारे गए हैं. आईजी का कहना है कि नक्सलियों के TCOC को भेदने के लिए बस्तर पुलिस अब ऐसे इलाकों के ग्रामीणों का दिल जीत लालगढ़ में घुसकर मुंह तोड़ जवाब दे रही है. आने वाले समय में निश्चित रूप से बस्तर पुलिस को नक्सलियों को बैकफुट पर लाने में कामयाबी हासिल होगी. उनका TCOC अभियान फेल साबित होगा. गर्मी की शुरुआत के साथ ही नक्सली TCOC चलाते रहे हैं. ये उनकी रणनीति का हमेशा से हिस्सा रहा है. इसका मकसद अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के साथ ही सुरक्षा बलों पर ज्यादा से ज्यादा हमले करना होता है. बीते 10 वर्षों में नक्सलियों की टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैंपेन के दौरान 250 से अधिक जवान शहीद हो चुके हैं. 


TCOC के दौरान हुई प्रमुख घटनाएं



  • 6 अप्रैल 2010- ताड़मेटला हमले में CRPF के 76 जवानों की शहादत 

  • 25 मई 2013- झीरम हमले में 30 से अधिक कांग्रेसी नेता और जवान शहीद

  • 11 मार्च 2014- टाहकावाड़ा नक्सली हमले में 15 जवानों की शहादत हुई

  • 12 अप्रैल 2015-दरभा में 5 जवानों समेत एंबुलेंस ड्राइवर और स्वास्थ्य कर्मी शहीद

  • मार्च 2017-सुकमा के भेज्जी हमले में 11 CRPF जवानों को मिली शहादत

  • 6 मई 2017-सुकमा के कसालपाड़ हमले में 14 जवानों की शहादत 

  • 25 अप्रैल 2017-सुकमा के बुर्कापाल बेस कैंप हमले में 32 CRPF के जवान शहीद 

  • 21 मार्च 2020- सुकमा के मीनपा हमले में 17 जवानों की शहादत हुई

  • 23 मार्च 2021- नारायणपुर के कोहकामेटा आईईडी ब्लास्ट में 5 जवान शहीद 

  • 3 अप्रैल 2021-बीजापुर जिले में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हुए


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