नक्सल प्रभावित गांव बारूद की गंध नहीं, कॉफी की खूशबू से महक रहे, 2017 में कैसे हुई थी शुरुआत?
Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर के नक्सल प्रभावित गांवों में अब बारूद की गंध नहीं बल्कि कॉफी की खुशबू महक रही है. किसानों को कॉफी की खेती की ट्रेनिंग दी जा रही है.
Chattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर के नक्सल प्रभावित गांवों में नक्सलियों के राजधानी में अब बारूद की गंध नहीं बल्कि कॉफी की खुशबू महक रही है. दरअसल इन गांवों के घने जंगल और यहाँ की पठार जमीन पर नक्सलियों का अस्थाई कैंप हुआ करता था लेकिन कुछ साल पहले इन इलाकों में पुलिस कैंप स्थापित करने के बाद अब इन इलाको में नक्सली बैकफुट पर हैं, ऐसे में यहां के ग्रामीण किसानों को उद्यानिकी विभाग के माध्यम से कॉफी की खेती की ट्रेनिंग दी जा रही है.
उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बकायदा कॉफी प्लांटेशन के लिए चिन्हाकित जगह का जायजा भी लिया था, दरअसल बस्तर में कुछ साल पहले कॉफी की खेती दरभा ब्लॉक मुख्यालय में प्रायोगिक तौर पर की गई थी,जो सफल हुई.
यहां की जलवायु की अनुकूलता को देखते हुए लगातार कॉफी की खेती का विस्तार किया जा रहा है और इसी कड़ी में दरभा ब्लॉक के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोलेंग के मुंडागढ़, कांदानार में भी करीब 70 एकड़ के क्षेत्रफल में कॉफी की प्लांटेशन की जा रही है, साथ ही मुंडागढ़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए भी स्थानीय ग्रामीणों से चर्चा की गई है.
मुंडागढ़ में 70 एकड़ में की जा रही कॉफी की खेती
दरअसल कुछ साल पहले बस्तर के तत्कालीन कलेक्टर और एसपी ने दरभा ब्लॉक के सभी प्रशासनिक अधिकारियों के साथ नक्सल प्रभावित कोलेंग क्षेत्र के चांदामेटा, कांदानार ,मुंडागढ़ गांव का दौरा किया था ,इस दौरान मुंडागढ़ में उद्यानिकी विभाग के अधिकारी सुरेश ठाकुर और गुंडाधुर एग्रीकल्चर कॉलेज के प्रोफेसरों के द्वारा कॉफी प्लांटेशन के लिए चिन्हाकित जमीन का जायजा लिया गया, और अब इसी इलाके में लगभग 70 एकड़ में कॉफी की प्लांटेशन की जा रही है.
कांदानार, मुंडागढ़ के किसानों को कॉफी की खेती करना भी सिखाया जा रहा है, बकायदा इसके लिए गुण्डाधुर एग्रीकल्चर कॉलेज के प्रोफेसर और उद्यानिकी विभाग के कर्मचारी द्वारा मिलकर इस जमीन को कॉफी प्लांटेशन के लिए उपयुक्त बनाया गया है.
उद्यानिकी विभाग के अधिकारी ने बताया कि दरभा का इलाका समुद्र तल से करीब 500 से 600 मीटर ऊंचा है ,ऐसे में कॉफी के प्लांटेशन के लिए यह जगह काफी अच्छा है, और खेती के लिए वातावरण भी अनुकूल है, ऐसे में अब जिस जगह नक्सलियों का कैम्प हुआ करता था वहां कॉफी की खेती हो रही है और अब यहाँ बारूद की गंध नहीं बल्कि कॉफी की खुशबू महक रही है.
बस्तर में 2017 से शुरू हुआ कॉफी उगाने का काम
दरअसल साल 2017 में प्रायोगिक तौर पर दरभा इलाके में उद्यानिकी विभाग द्वारा 20 एकड़ में शुरू की गई कॉफी की खेती को अच्छा रिस्पांस मिलने के बाद अब बस्तर के सभी किसानों को अपने अपने खेतों में कॉफी के प्लांटेशन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
दरअसल 2017 में 20 एकड़ में लगाई गई कॉफी से 2 साल बाद करीब 9 क्विंटल कॉफी का उत्पादन किया गया, जिसके बाद उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों और महिला स्व सहायता समूह को प्लांटिंग और प्रोसेसिंग से लेकर मार्केटिंग तक के लिए ट्रेनिंग दिया गया.
सबसे पहले जगदलपुर शहर में बस्तर कैफे के नाम से कॉफी की ब्रांडिंग की गई, और दूसरे राज्यों के साथ ही दूसरे देश से आने वाले लोगों ने बस्तर की कॉफ़ी का स्वाद चखा और इसकी जमकर तारीफ की, जिसके बाद अब सीसीडी और स्टारबक्स की तर्ज पर बस्तर कॉफी की ब्रांडिंग के लिए बड़े शहरों में बस्तर कैफे के आउटलेट्स खोली जा रही है.
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