Bastar News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) के दंतेवाड़ा के गांव में दीपावली का पर्व अनोखे तरीके से मनाया जाता है. यहां दीपावली के साथ-साथ दियारी का त्यौहार मनाया जाता है. खास बात यह है कि इस दियारी के त्यौहार में आतिशबाजी तो जरूर होती है, लेकिन दीए नहीं जलाए जाते हैं. दरअसल छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के धर्म नगरी बारसूर के घोटपाल गांव में ग्रामीण दियारी के दिन देवी देवताओं की पूजा कर बकरे और मुर्गे की बलि चढ़ाकर धूमधाम से पर्व को मनाते हैं.


गांव में 2 दिनों तक भरता है मेला 
साथ ही इस पर्व के मौके पर गांव में 2 दिनों तक मेला भी भरता है. दियारी पर्व के दौरान 2 दिनों तक चलने वाले इस घोटपाल मड़ई मेला में बस्तर के कई गांव से आदिवासी अपने पारिवार के साथ पहुंचते है और मेले से अपनी जरूरतों का सामान खरीदते है. साथ ही दियारी के दिन गांव के युवक और युवतियां शाम होने के साथ ही देवी-देवताओं का पूजा पाठ करते है और जमकर आतिशबाजी  करते हैं. लेकिन घरों में दीए नहीं जलाए जाते हैं.


बांस के लट्ठे पर होती है देवी-देवताओं की स्थापना 
घोटपाल  के ग्रामीण मनकुराम, लक्ष्मण, और नारायण नाग का कहना है कि पिछले कई सालों से गांव में दियारी त्यौहार के दौरान इसी परंपरा के तहत पर्व मनाया जाता है. बाकायदा दियारी के दिन गांव में देवी-देवताओं के लिए पूजा-पाठ किया जाता है और गांव के युवक और युवतियां मादल के थाप के साथ नाचने में जुट जाते है. बांस के लट्ठे पर मोर पंख और घंटिया बांधकर देवी-देवताओं की स्थापना की जाती है, फिर उन्हें स्नान कराने के बाद उन्हें मंदिर में लाया जाता है. स्थानीय बोली में देवता के छत्र और लट्ठे को लाट कहते हैं. मोरपंख और  घंटियों से बंधे छोटे लाट की भी पूजा आराधना की जाती है.


सभी गांव के ग्रामीणों के द्वारा देवी- देवताओं से अपनी अपनी मन्नते मांगी जाती है, और उसके बाद मुर्गे, बकरे की बलि दी जाती है, ग्रामीणों ने बताया कि पुरखों से घोटपाल में दियारी पर्व के दौरान यह परंपरा चली आ रही है और आज भी यह  कायम है. इसलिए घोटपाल गांव में दियारी का त्यौहार खास होता है और साल भर इस त्यौहार का इंतजार इस गांव के ग्रामीण और आसपास गांव के ग्रामीण करते हैं. 


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