Bastar News: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में विकास के लिए हर साल राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करती है. लेकिन इन दावों की बस्तर में हो रही बारिश ने पोल खोल कर रख दी है. आजादी के 70 साल बाद भी अंदरूनी क्षेत्र के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं और भारी बारिश में अपनी जान जोखिम में डालकर उफनती नदी नालों को पार कर रहे हैं.


बारिश से बचने के लिए इन इलाकों से ऐसी तस्वीरें निकल कर सामने आ रही है जिसे देखकर हर किसी की रूह कांप जा रही है. कहीं उफनते नालों को पार करने के लिए ग्रामीण पतीले का सहारा ले रहे हैं तो कहीं बिजली के तार से अस्थाई पुल बनाकर उफनते नालों को पार कर रहे हैं, तो कहीं पेड़ गिराकर उसके डंगाल के जरिए राशन ला रहे हैं और आवाजाही कर रहे हैं.


ग्रामीणों ने बनाई बिजली के तार से अस्थाई पुल
सुकमा जिले के 40 से भी अधिक गांव ऐसे हैं जहां पर आज भी मूलभूत सुविधाएं ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाई है. खासकर बरसात के मौसम में ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जिले के नागलगुंडा गांव में बिजली पहुंचाने के लिए यहां विभाग ने तार छोड़ रखा है. इसी बिजली के तार के जरिए ग्रामीणों ने उफनते नाले को पार करने के लिए अस्थाई पुल बनाया है और इस पुल के जरिए ही ग्रामीण अपने घरों से शहरी इलाकों तक पहुंच पा रहे हैं.


इस पुल को पार करने के लिए ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है. बांस और लकड़ी के टुकड़े और बिजली कि तार से ग्रामीणों ने पुल को बनाया है. क्षेत्र के विधायक और प्रदेश के मंत्री कवासी लखमा का कहना है कि जब वे पहली बार विधायक बने तभी उन्होंने इस क्षेत्र में पुल के लिए सेक्शन कर दिया था. लेकिन नक्सलियों के भय की वजह से पुल नहीं बन सका लेकिन उसके बाद लखमा इसी क्षेत्र से पांचवी बार विधायक बन गए हैं. लेकिन अब तक ग्रामीण अंचलों में पुल का निर्माण नहीं हो सका है ऐसे में सुकमा क्षेत्र में विकास के दावे पूरी तरह से खोखले ही साबित हो रहे हैं.


अपनी जान जोखिम में डाल रहे ग्रामीण
इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि कई बार उन्होंने पुल बनाने की मांग की और इसके लिए विधायक और कलेक्टर से भी मिले लेकिन उन्हें हमेशा आश्वासन मिला. लिहाजा बरसात के मौसम में हर साल कई ग्रामीणों की तेज बहाव नदी में बहकर मौत हो जाती है. ऐसे में उन्होंने अस्थाई पुल बनाकर अपने जरूरी सामान के लिए जान जोखिम में डालकर मजबूरी में इसी पुल से आना-जाना करना पड़ता है.


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