छत्तीसगढ़ के बस्तर के हर गांव में एक देवगुड़ी है और इस देवगुड़ी की अपनी अलग ही परंपरा है. कुछ देव गुड़ी में आज भी बलि प्रथा का चलन है तो कुछ देवगुड़ी में मेला लगता है. वहीं बस्तर जिले के नगरनार में मौजूद एक ऐसा देवगुड़ी है, जहां यहां के ग्रामीण अपनी मनोकामना के लिए देवस्तभ्म में सिक्के चढ़ाते हैं, और यह सिक्का ऐसे ही नहीं चढ़ाया जाता बल्कि इस देव स्तम्भ में सिक्कों को कील से ठोककर मन्नत मांगा जाता है. इस देवस्तम्भ में सैकड़ों सिक्के ठोककर ग्रामीणों ने अपनी मनोकामना मांगी है. ग्रामीणों द्वारा इसे सिक्कों का मंदिर कहा जाता है और बकायदा सभी ग्रामीण अपनी मनोकामना लेकर यहां सिक्के चढ़ाने आते है.


सालों से चली आ रही परंपरा


नगरनार के ग्रामीणों ने बताया कि यह देवगुड़ी सैकड़ों साल पुराना है, पहले यहां चांदी के सिक्के चढ़ाए जाते थे ,लेकिन इसके बाद अब यहां के ग्रामीण सिक्के  चढ़ाते हैं, हर साल इस  सिक्को के मंदिर में मेला भरता है और दूर दराज से यहां श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में 10 से लेकर 5 के सिक्के 20 पैसे के सिक्के और 25 पैसे के सिक्के के साथ 1 और 2 रुपये के सैकड़ों सिक्के चढ़ाए गए हैं. बकायदा ग्रामीण यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और देव स्तभ्म  में किल से सिक्कों को ठोककर अपनी मनोकामना मांगते है.


इन सिक्कों को चढ़ाते हैं ग्रामीण


बस्तर के जानकार हेमंत कश्यप का कहना है कि नगरनार में स्थित सिक्को का मंदिर काफी साल पुराना है, और यहां पर  देवगुड़ी में ग्रामीण सिक्के चढ़ाकर अपनी मनोकामना मांगते हैं, हालांकि इसके पीछे यह भी एक वजह है कि 10 के सिक्के और पुराने सिक्के चलन से बाहर हो गए है ऐसे में यहां के ग्रामीण अपने घरों के चौखट और इस देवगुड़ी में चढ़ाते हैं, हालांकि जिस तरह से यहां ग्रामीणों द्वारा देव स्तम्भ में सिक्के कील से ठोककर चढ़ाए जाते हैं इससे राजमुद्रा का भी अपमान है, लेकिन ग्रामीणों के लिए यह आस्था का केंद्र भी है. इस वजह से जितने भी ऐसे सिक्के हैं जो चलन से पूरी तरह से बंद हो चुके हैं.


इन सिक्कों को इस मंदिर में चढ़ाया जाता है और अपनी मनोकामना मांगी जाती है, खासकर सबसे ज्यादा इस देवस्तम्भ में ग्रामीणों ने 10 के सिक्के चढ़ाए हैं, क्योंकि छत्तीसगढ़ के बाकी जिलों के साथ-साथ बस्तर जिले में भी 10 के सिक्के पूरी तरह से चलन से बाहर हैं. लेकिन इस तरह के सिक्कों का मंदिर बस्तर में देखने को ही मिल सकता है.


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