Bastar News: बस्तर में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ग्रामीणों द्वारा की जाने वाली जद्दोजहद का एक नमूना नारायणपुर के अबूझमाड़ इलाके में देखने को मिला है. दरअसल अति संवेदनशील क्षेत्र ताढ़ोनार ग्राम में एक गर्भवती महिला के प्रसव के लिए ग्रामीणों को भारी समस्याओं से जूझना पड़ा. हालांकि ग्रामीणों और समाज सेवी संस्था के कर्मचारियों की कोशिश रंग लाई और गर्भवती महिला को आखिरकार अस्पताल तक भारी जद्दोजहद करने के बाद पहुंचाया जा सका. वहीं इस घटना ने विकास के दावों की पोल खोल दी है. साथ ही बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किस तरह से ग्रामीणों को स्वास्थ सुविधाओं के लिए जूझना पड़ता है, इस बात को भी सामने लाकर रख दिया है.
डोला में बैठाकर ग्रामीणों ने किया नदी पहाड़ पार
धोड़ाई स्वास्थ्य केंद्र से मिली जानकारी के मुताबिक अति सवेंदनशील क्षेत्र ताडोनार गांव में एक गर्भवती महिला को प्रसव के लिए दर्द उठने के बाद ग्रामीण बड़ी परेशानी में आ गए. गांव में स्वास्थ्य केंद्र और किसी तरह की कोई मेडिकल की सुविधा नहीं होने की वजह से उन्हें गर्भवती महिला को संभालना मुश्किल हो गया. महिला को स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने के लिए ग्रामीणों द्वारा खुद के हाथ से बनाए गए डोला में गर्भवती महिला को रखकर चार ग्रामीण लगभग 10 किलोमीटर पहाड़, नदी और घने जंगल के रास्ते को तय कर तड़के सुबह गांव तक पहुंचे. जिसके बाद समाज सेवी संस्था के बाइक एंबुलेंस की मदद से महिला को धोड़ाई स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया गया. महिला को स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने के लिए ग्रामीणों को 20 घंटों से भी अधिक समय लगा और इस दौरान ताडोनार गांव से धोड़ाई स्वास्थ्य केंद्र तक 22 किलोमीटर का मुश्किलों भरा सफर तय करना पड़ा.
सरकार के दावे साबित हो रहे खोखले
फिलहाल गर्भवती महिला को धोड़ाई स्वास्थ्य केंद्र से अस्पताल पहुंचाने के बाद उसका इलाज शुरू कर दिया गया है. वहीं एक बार फिर से इस घटना ने यह बयां कर दिया है कि बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा पाने के लिए ग्रामीणों को किस तरह से जद्दोजहद करनी पड़ती है.
बता दें कि हर साल राज्य सरकार स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करती है, लेकिन बस्तर के इन बीहड़ क्षेत्रों में जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. लंबे समय से क्षेत्र के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र, मेडिकल सुविधा की मांग करते आ रहे हैं. लेकिन मांग पूरी नहीं होने के चलते ग्रामीणों को या फिर गांव के ही सिरहा, गुनिया, बैगा के भरोसे रहना पड़ता है या फिर इस तरह के मुश्किलों को पार कर ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचते हैं और इस दौरान कई मरीजों के सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने के चलते जान भी चली जाती है.
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