Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ का बस्तर अपनी कला-संस्कृति, और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरे देश और विश्व मे भी जाना जाता है. बस्तर में कई औषधीय गुणों से भरपूर पेड़-पौधे पाए जाते हैं. प्रकृति के दिए अनगिनत वरदानों में से एक है सल्फी का पेड़. इस पेड़ के रस में औषधीय गुण पाए जाते हैं. सल्फी के रस से पेट की बीमारियां दूर हो जाती है, इसमें हल्का नशा भी होता है. इस वजह से इसे दुनिया भर में बस्तर बीयर के नाम से लोग जानते हैं, स्थानीय ग्रामीण इसे सुरा कहते हैं.
एक पेड़ तैयार होने में लगता है करीब 15 से 20 साल
दरअसल सल्फी ताड़ प्रजाति का पेड़ है और इसका वानस्पतिक नाम कॅरियोटा यूरेंस है. सल्फी के एक पेड़ को तैयार होने में करीब 15 से 20 साल तक का समय लगता है. एक पेड़ से 5 से 6 साल तक रस निकाला जा सकता है. ठंड के मौसम के साथ ही बस्तर की प्रसिद्ध देसी बीयर सल्फी का मौसम भी आ जाता है. सल्फी के शौकीन इसके सेवन के लिए गांव-गांव पहुंचने लगते हैं. इसके रस को हिलाने से बीयर की तरह झाग निकलता है.
बस्तर के इतिहासकार हेमन्त कश्यप बताते हैं कि आदिवासी संस्कृति और परंपरा में सल्फी का पेड़ आम आदिवासी के लिए परिवार के सदस्य की तरह होता है. जिस तरह बच्चों का लालन-पालन किया जाता है, उस तरह से सल्फी वृक्ष का भी पालन पोषण किया जाता है. इस वृक्ष के तैयार होने तक इसकी काफी देखभाल की जाती है, ग्रामीण इसे अपने बेटे की तरह देखते हैं, समय-समय पर पूजा पाठ भी किया जाता है, आदिवासी संस्कृति में सल्फी पूजनीय पेड़ है.
साल में एक से डेढ़ लाख की होती है आमदनी
यह पेड़ साल में एक से डेढ़ लाख रुपए की आमदनी देती है और आदिवासी इसे शादी-विवाह के साथ-साथ किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में बड़े शौक से सेवन करते हैं. इस सल्फी की रस से हल्का सा नशा तो जरूर होता है, लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर है. जानकार बताते है कि शहरी इलाके के साथ-साथ ग्रामीण अंचलों में सल्फी के पेड़ ग्रामीणों के घरों में देखने को मिलते हैं, हालांकि अब यह पेड़ तेजी से सूख रहे हैं और इस वृक्ष के सूखने का कारण किसी को भी पता नहीं चल सका है, लेकिन उनका भी मानना है कि इसमें शोध करने की जरूरत है.
विशेष वर्ग के लोगों द्वारा पेड़ से उतारा जाता है सल्फी
गांव के एक ग्रामीण ने बताया कि उनके यहां 1 सल्फी का पेड़ है और वे उनकी काफी देखभाल करते हैं. एक पेड़ के सल्फी का रस निकालकर उन्हें प्रति महीने इससे 10 से 12 हजार रुपये की आय होती है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यों के लिए भी सल्फी रस का काफी महत्व है, शादी विवाह के मौके पर मेहमानों को स्वागत में सल्फी का रस परोसा जाता है. उनका कहना है कि सल्फी रस की बिक्री से लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार हो रहा है. यह आदिवासियों के लिए घर बैठे आय का जरिया बन चुका है, एक दिन में 4 से 5 लीटर सल्फी पेड़ का रस निकाला जाता है.
इस सल्फी पेड़ की खास बात यह है कि सल्फी काटना और उतारना हर किसी के बस की बात नहीं होती है, उसे काटने के लिए विशेष लोग होते हैं जिसे कटकार कहा जाता है. कटकार को उसका मेहनताना एक समय का रस होता है, जबकि दूसरे समय का रस मालिक का. प्रतिदिन सल्फी से निकलने वाले तुंबा का पहला तुंबा काटने वाले का होता है, बस्तर के ग्रामीण अंचलों में यह एक पसंदीदा और सभी वर्गों द्वारा पीने वाली ड्रिंक है. इसे स्त्री पुरुष जवान बुजुर्ग सभी बड़े चाव से पीते हैं.
आदिवासी समाज मे सल्फी का है विशेष महत्व
सल्फी का पेड़ बस्तर के लिए विशेष महत्व रखता है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि अगर जिसके घर में औलाद ना हो तो वे सल्फी का वृक्ष लगाते हैं और उसकी पूजा पाठ कर बच्चे की तरह पालन पोषण करते हैं. पेड़ के बड़े हो जाने के बाद वह उनके लिए एक बेटे की तनख्वाह की तरह आय का साधन हो जाता है और हर महीने सल्फी का रस बेचकर महीने में 10 से 12 हजार रुपये कमाते हैं, घर की बेटियों की शादी की जाती है तो दहेज में सल्फी का पौधा भी दिया जाता है.
स्थानीय लोग बताते हैं कि सल्फी सिर्फ नशा मात्र ही नहीं बल्कि यह आयुर्वेदिक दवा का भी काम करता है. अगर इसे उचित मात्रा में लिया जाता है तो यह पेट से संबंधित सभी बीमारी दूर करता है. पेट रोग की बीमारी जैसे की पथरी समस्या से निजात मिलती है, ऐसे कम ही मामले आपको बस्तर में देखने को मिलेंगे जिसमें ग्रामीणों को पथरी की समस्या हो. सल्फी का रस पथरी की समस्या के लिए रामबाण है, यहीं वजह है कि ग्रामीण इसे स्वास्थ के लिए उपयोगी मानते हुए भी पीते हैं. खासकर गर्मी के दिनों में काफी लाभदायक होता है, यह एक सॉफ्ट कोल्डड्रिंक है जो शरीर को चुस्त रखने के साथ-साथ पेट की सभी बीमारी को दूर कर देता है.
सल्फी पेड़ को बढ़ावा देने ठोस कदम उठाने की है जरूरत
जानकार हेमन्त कश्यप का कहना है कि इतने महत्वपूर्ण पेड़ को बढ़ावा देने के लिए शासन प्रशासन द्वारा कोई भी ठोस पहल नहीं किया जा रहा है, आदिवासियों के पास अन्य विकल्प नहीं होने के कारण केवल नशापान मात्र के लिए ही इसका उपयोग किया जा रहा है. यदि सल्फी रस के बिक्री से कुछ परिवार समृद्ध हो रहे हैं तो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण सल्फी का पौधा लगाए और उन्हें स्वरोजगार उपलब्ध हो सके. सल्फी के पैकेजिंग की भी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि बस्तर घूमने आने वाले पर्यटकों को यह आसानी से उपलब्ध हो सके.
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