Congress Leader Arvind Netam News: कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री और सर्व आदिवासी के नेता अरविंद नेताम (Arvind Netam) ने अपने ही पार्टी के सरकार को चेताया. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की हो रही लगातार उपेक्षा और उनकी आस्था पर चोट से उनमें जबरदस्त असंतोष पनप रहा है. जो आने वाले समय में बड़े विद्रोह का कारण बन सकता है इसलिए समय रहते सरकार और प्रशासन को ध्यान देना चाहिए.
अरविंद नेताम ने कहा कि दंतेवाड़ा (Dantewada) जिले के बैलाडीला, नारायणपुर के आमदेई और रावघाट में लौह अयस्क का खनन पेशा कानून और वन भूमि अधिकार के तहत होना चाहिए, लेकिन सरकार के श्रय में मनमाने ढंग से आदिवासियों की आस्था के केंद्रों का दोहन हो रहा है. जिसकी वजह से इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों में भारी आक्रोश पनप रहा है और आगे चलकर यह विद्रोह का रूप से सकता है. वहीं बस्तर संभाग को अलग राज्य बनाने की मांग उठ सकती है.
सिलगेर जांच रिपोर्ट को नही किया गया सार्वजनिक
पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने कहा कि रावघाट में हाल ही में हुए एक घटना के दौरान पत्रकारों को कवरेज करने से रोका जाना और उनसे दूर व्यवहार किया जाना सरासर गलत है. रावघाट परियोजना को लेकर जरूर कुछ ग्रामीण समर्थन कर रहे हैं लेकिन ऐसे क्षेत्रों में जाकर पत्रकारिता करने वालों की पुलिस और प्रशासन को सुरक्षा देना होता है. पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन इस रावघाट परियोजना का खुले तौर पर समर्थन कर रही है. राज्य सरकार पर पुलिस को बचाने का आरोप लगाते हुए नेताम ने कहा कि बीजापुर जिले में भी सिलगेर की घटना पर SDM की रिपोर्ट के अलावा दो-दो ज्युडिसियल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद भी उनको सार्वजनिक नहीं किया गया.
जबकि किसी भी विवादित घटना की जानकारी में पारदर्शिता अपनाना प्रजातंत्र का मुख्य उद्देश्य है. उसे छुपाना या पर्दा डालने की कोशिश गड़बड़ी की आशंका को मजबूती प्रदान करता है. उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी राजनैतिक दल से ज्यादा उम्मीद अपने को धोखा देने जैसा है. वहीं आगामी चुनाव में आदिवासी चेहरे की मांग पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि बीजेपी और कांग्रेस के रहते ऐसा होना सम्भव नहीं है.
आदिवासियों को भरोसे में नहीं ले रही सरकार
इसके अलावा उन्होंने स्पष्ट किया कि रावघाट, आमदई और अन्य जगहों में आयरन के खनन को लेकर राज्य सरकार उत्सुकता दिखा रही है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर यहां के आदिवासियों को भरोसे में नहीं लिया जा रहा. आदिवासियों के सारे शर्तों, नियमो और आस्था को ताक में रखकर काम किया जा रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में अपने जल जंगल जमीन के खनन से नाराज बस्तर के आदिवासी संभाग भर में विद्रोह का रूप ले सकते हैं.