Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में लगातार आदिवासियों की जमीन उनके हाथों से फिसलती जा रही है. आदिवासी लगातार अपनी जमीन दूसरे लोगों को बेच रहे हैं. यही नहीं अब आदिवासियों के पास धीरे-धीरे  जमीन सिमटती जा रही है और बड़े किसानों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. चौकाने वाली बात यह है कि 10 साल पहले बड़े किसानों की संख्या 35 हजार थी, लेकिन अब साल 2022  में ही बड़े किसानों की संख्या एक लाख तक पहुंच गई. वहीं छोटे और सीमांत किसानों की संख्या काफी कम होती जा रही है. दरअसल पिछले चार दशकों से बस्तर संभाग में आदिवासियों की जमीन पर डाका डाला जा रहा है.


पैसों का लालच देकर ओने पौने दामों में आदिवासियों की जमीन खरीदी जा रही है, जिसके चलते अब आधे से ज्यादा आदिवासी अपनी जमीन बेचकर मजदूरी कर रहे हैं. इन जमीनों को संपन्न आदिवासियों के अलावा सामान्य वर्ग के लोग, अधिकारी और व्यवसायी खरीदी कर रहे हैं. वहीं लगातार आदिवासियों की जमीन जिस गति से खरीदी-बिक्री हो रही है, इसको लेकर आदिवासी नेताओं ने भी चिंता जाहिर की. साथ ही इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को जांच करने की भी मांग की.


एक लाख पहुंची बड़े किसानों की संख्या


दरअसल कृषि विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले 10 सालों में बस्तर में बड़े किसानों की संख्या केवल 35 हजार  थी, लेकिन साल 2022 में बढ़कर सीधे एक लाख तक पहुंच गई. संभाग में बड़े किसानों के पास कुल 48 फीसदी भूमि है, जबकि लघु किसानों के पास 34 फीसदी और सीमांत किसानों के पास 18 फीसदी भूमि है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने बताया कि बस्तर में आदिवासियों की जमीन उनके हाथों से तेजी से फिसल रही है. इसकी वजह सामान्य लोगों के द्वारा आदिवासी महिला से शादी कर पत्नी, बच्चों और स्वजन के नाम पर काफी जमीनों की खरीदी की है. पूरे बस्तर संभाग में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं.


इनके द्वारा 2 एकड़ या 3 एकड़ नहीं, बल्कि 20 से 30 एकड़ आदिवासियों की जमीन खरीदी की गई. यह जमीन ऐसे लोगों से खरीदी की गई है, जो अपने आर्थिक स्थिति की वजह से इन जमीनों को जो कि लाखों और करोड़ों रुपए के होते हैं उन्हें ओने पौने दाम में बेच देते हैं. इस समस्या को लेकर कई बार सामाजिक बैठकों में लोगों ने नाराजगी भी जताई है. साथ ही सरकार से भी पत्राचार किया गया, लेकिन अब तक इसका कोई नतीजा निकल कर सामने नहीं आया.


आर्थिक तंगी की वजह से बेच रहे जमीन


बस्तर के जानकार बताते हैं कि बस्तर के आदिवासी इसलिए अपनी जमीन बेच देते हैं क्योंकि जो छोटे किसान होते हैं वह अपनी जमीन पर खेती नहीं कर पाते हैं. उन्हें कई दशक पहले जब सरकार द्वारा 2-2 एकड़ जमीन मिली थी, उसमें से कुछ लोगों ने तो उन जमीनों को बचाकर रखा और खेती किसानी भी कर रहे हैं. हालांकि अधिकांश छोटे किसानों ने आर्थिक तंगी के चलते अपनी जमीनों को औने पौने दामों में बेच दिया और अब मजदूरी का काम कर रहे हैं. ऐसे आदिवासी किसानों की संख्या काफी ज्यादा है और ऐसे ही किसानों से बस्तर के संपन्न अधिकारी, व्यवसायी और सामान्य वर्ग के लोग जमीन खरीद लेते हैं. इस वजह से अब बस्तर में आदिवासियों के हाथ से उनकी जमीन तेजी से फिसलते जा रही है.


इस मामले की होगी जांच


इस मामले में बस्तर के कमिश्नर श्याम धावड़े का कहना है कि अगर बस्तर संभाग में बड़े किसानों की संख्या बढ़ रही है, तो यह निश्चित तौर पर जांच का विषय है. उन्होंने कहा कि कुछ ही दिन बाद संभाग भर के राजस्व अधिकारी, आदिम जाति कल्याण विभाग के उच्च अधिकारियों के साथ-साथ जिला कलेक्टरों के साथ बैठक की जानी है. इस मामले में चर्चा की जाएगी, साथ ही कमिश्नर ने कहा कि कृषि विभाग से भी जानकारी ली जाएगी कि आखिर क्यों छोटे आदिवासी किसानों की संख्या तेजी से कम हो रही है.


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