Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में धर्मांतरण मामले ने तूल पकड़ लिया है. आदिवासियों ने ईसाई बने लोगों के लिए मरघट की जमीन नहीं देने का प्रस्ताव पारित किया है. उन्होंने कलेक्टर से प्रस्ताव को लागू कराने की मांग की है. मंगलवार को कलेक्ट्रेट पहुंचे कोयलीबेड़ा पंचायत के ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम सभा की बैठक में प्रस्ताव पारित कर फैसला लिया गया है. फैसले के मुताबिक गांव में ईसाई धर्म अपना चुके लोगों को मरघट बनाने के लिए जमीन नहीं दी जाएगी. ग्रामीणों का कहना है कि धर्मांतरण से बस्तर की वर्षों पुरानी आदिवासी परंपरा खतरे में है. प्रशासन की अनदेखी के कारण आदिवासी दूसरे धर्म को अपना रहे हैं और गांव-गांव में गिरिजा घर खोले जा रहे हैं.


मरघट के लिए जमीन नहीं देने का प्रस्ताव पारित


धर्मांतरण के विरोध में ग्रामीण लामबंद हुए हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि ईसाई धर्म अपना चुके परिवारों में मौत होने पर शव को गांव में दफनाने नहीं दिया जाएगा. ग्रामीणों ने जगदलपुर में बस्तर कलेक्टर के नाम डिप्टी कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा. ग्रामीणों के साथ आदिवासी नेता महेश कश्यप भी पहुंचे थे. उन्होंने आबकारी मंत्री कवासी लखमा के बयान पर पलटवार किया. मंत्री ने बस्तर में ग्रामीणों की मौत पर राजनीति करने का आरोप लगाया था. महेश कश्यप ने कहा कि अधिकारी जिले में बढ़ते धर्मांतरण के मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चिट्ठी लिखते हैं.


कलेक्टर के नाम मंजूरी देने की लोगों ने की मांग


उन्होंने कहा कि धर्मांतरण की वजह से गांव में तनाव की स्थिति है. ऐसे में मंत्री कवासी लखमा को और क्या सबूत चाहिए. उन्होंने धर्मांतरण मुद्दे को राजनीति से जोड़ने पर मंत्री के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. कवासी लखमा खुद एक आदिवासी नेता हैं और जानते हैं कि बस्तर में धर्मान्तरण की वजह से आदिवासियों की संस्कृति, परंपरा को खतरा है. बावजूद इसके विरोध करने की बजाय कवासी लखमा धर्मांतरण को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं. महेश कश्यप ने कहा कि कोयलीबेड़ा पंचायत के ग्रामीण ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर कलेक्ट्रेट पहुंचे. उनकी मांग की कि ग्राम सभा में लिए गए फैसले को कानूनी तौर पर मान्यता मिले.


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