Bastar News: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर, यहां के स्थानीय आदिवासी जनजातियों के रहन-सहन, वेशभूषा और अनोखी परंपरा के लिए पूरे विश्व में पहचाना जाता है. आधुनिकता के भागदौड़ भरी जिंदगी में भी यहां के आदिवासी अपनी सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को आज भी बखूबी निभाते आ रहे हैं. तीज, त्यौहार की रस्म हो या फिर शादी ब्याह हर खुशी के माहौल में आदिवासी सबसे अलग और अनोखी परंपरा को निभाते हैं. खासकर अबूझमाड़ वासियों की परंपरा सबसे अलग है. 


अब तक आपने हिंदू रिवाज की शादियों में अग्नि को साक्षी मानकर वर वधु को सात फेरे लेते हुए देखा होगा, लेकिन बस्तर के अबूझमाड़ में होने वाले विभिन्न आदिवासी जनजातियों के शादियों में सरगी पेड़ के डाली को जमीन में गाड़कर उसके फेरे लिए जाते हैं. इस पेड़ की डाली के नीचे बाकायदा एक कलश भी स्थापित किया जाता है. सरगी का पेड़ आदिवासी समुदाय में सबसे पवित्र पेड़ माना जाता है. यह बस्तर संभाग में बहुतायात में पाया जाता है. इस वजह से सरगी पेड़ का आदिवासियों के जीवन में काफी महत्व है. सरगी का पेड़ आदिवासियों के जीवन में मुख्य आय का स्त्रोत होने के साथ इनकी देवी देवता के रुप में पूजा भी की जाती है. यहां तक कि बस्तर में जिन इलाकों में सरगी के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते हैं उस इलाके का नाम भी सरगी के नाम से ही जाना जाता है.


बस्तर में मौजूद हैं सरगी पेड़ के जंगल 
बस्तर के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि बस्तर के आदिवासियों में जल, जंगल, जमीन का काफी महत्व होता है. यह तीनों ही आदिवासियों के लिए पूर्वजों के तुल्य हैं. जल के साथ-साथ जमीन और जंगल की भी आदिवासी पूजा करते हैं. बस्तर में सबसे ज्यादा सरगी पेड़ के वन मौजूद है. फॉरेस्ट विभाग के रेंजर देवेंद्र वर्मा से मिली जानकारी के मुताबिक, आदिवासियों के लिए सरगी का पेड़ आय का मुख्य स्त्रोत भी है, क्योंकि बस्तर के अलावा दूसरे राज्य और बड़े शहरों में सरगी के पेड़ की काफी डिमांड होती है. यही वजह है कि बस्तर में विभाग द्वारा होने वाले ऑक्शन में भी सबसे ज्यादा सरगी पेड़ों की बिक्री होती हैं. सरगी का पेड़ का आदिवासियों के जीवन काफी महत्व होता है. सैकड़ों सालों से बस्तर में सबसे ज्यादा सरगी के पेड़ ही मौजूद हैं 


शादियों में ली जाती सरगी पेड़ के फेरे
आदिवासी समुदाय सरगी के पेड़ के पत्तों से लेकर तना और डाली को काफी पवित्र मानता है. शादी ब्याह हो या तीज, त्यौहार सभी रस्मों में इसे शामिल किया जाता है. इसके अलावा आदिवासियों के घर में होने वाले शादी ब्याह में इस पवित्र पेड़ के डाली को ही काटकर घर के आंगन में गाड़ा जाता है. इस पेड़ के तने और पत्तों से मंडप तैयार किया जाता है और यहां हल्दी से लेकर शादी की सारी रस्में निभाई जाती है. यहां तक कि इस सरगी पेड़ के डाली के चारों तरफ घूमकर वर वधु सात फेरे लेते हैं. इस पेड़ के डाली को हल्दी भी चढ़ाया जाता है और इसकी पूजा पाठ कर शादी के सारे रस्में पूरी होने तक गाड़ कर रखा जाता है. सरगी पेड़ से बनाए जाने वाले मंडप भी कई महीनों तक आदिवासियों के घरों में सजे रहते हैं. यही वजह है कि आदिवासियों के घर में होने वाली शादी में अग्नि नहीं बल्कि सरगी के डाली को साक्षी मानकर कर वधू सात फेरे लेते हैं.


ये भी पढ़ें:


Lok Sabha Election 2024: छत्तीसगढ़ में चुनावी शंखनाद करेंगे अमित शाह, जानें कोंडागांव से ही आगाज करने की क्या है वजह?