Bastar Famous Dish: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में ग्रामीणों के जरिये एक से बढ़कर एक स्थानीय व्यंजन तैयार किए जाते हैं. कम संसाधनों में भी बेहतर जीवन जीने की कला यहां के ग्रामीणों में बखूबी देखी जा सकती है. 


यही वजह है कि वन संपदाओं से मिलने वाले हर चीजों से वह अपने खाने पीने के सामान तैयार कर लेते हैं. इन लोकल स्वादिष्ट व्यंजनों के अब लाखों लोग दीवाने हो गए हैं. खासकर बस्तर के आदिवासी नॉनवेज से ज्यादा व्यंजन तैयार करते हैं. 


शाम होते ही लग जाती है होटलों पर भीड़
अगर आप नॉनवेज खाने के शौकीन हैं तो उन्हें बस्तर के आदिवासियों के जरिये तैयार की जाने वाली अलग-अलग डिश को जरुर ट्राई करना चाहिए. स्वादिष्ट व्यंजनों में चापड़ा चटनी के बाद सबसे ज्यादा लोगों की पंसदीदा डिश है, तो वह है  बस्तर का ""चाउर भाजा"."
 
इसे देसी बिरयानी भी कहा जा सकता है, लेकिन इसके बनाने की विधि काफी अलग है. ग्रामीण अंचल में हर रोज शाम को ग्रामीण क्षेत्रों में "चाउर भाजा" की खुश्बू मिलेगी, इसके लिए यहां पर कई छोटे- छोटे होटल बने हैं, जो स्वादिष्ट "चाउर भाजा" बेचते हैं.


जहां स्थानीय लोगों के साथ शहरी क्षेत्रों और विदेशी पर्यटक भी इस "चाउर भाजा" के स्वाद का लुत्फ उठाते है. "चाउर भाजा" के डिमांड को देखते हुए बस्तर में पर्यटकों के लिए शुरू की गई ग्रामीण होमस्टे में भी इसे परोसा जाता है, जिसे नॉनवेज खाने के शौकीन इसके स्वाद का आनंद लेते हैं.


कैसे तैयार होता है चाउर भाज?
बरसात के मौसम में देश के अन्य राज्यों में चाय और पकौड़ा काफी फेमस डिश मानी जाती है, लेकिन बस्तर में बारिश के मौसम में शाम होते ही शहरी क्षेत्र के लोग "चाउर भाजा" का स्वाद लेने के लिए ग्रामीण अंचलों के छोटे छोटे होटलों का रुख करते हैं.


बस्तर के आदिवासी ग्रामीणों के जरिये तैयार की जाने वाला "चाउर भाजा" को देसी बिरयानी भी कहा जा सकता है. बस्तर जिले के कलचा गांव के निवासी हरबन्धु नाग ने बताया कि "चाउर भाजा" को बनाने के लिए किसी तामझाम की जरूरत नहीं होती है, बल्कि जो जैसा है उसे उसी रूप में पकाकर तैयार किया जाता है. 


बस्तर के स्थानीय हल्बी बोली में चाउर का मतलब चावल होता है और भाजा का मतलब चिकन होता है. "चाउर भाजा" को तैयार करने के लिए चिकन को कम मसालों के साथ पकाकर उसमें चावल मिला दिया जाता है. चावल को पहले से ही पानी में भिगोकर रखा जाता है, जिससे वह चिकन के साथ-साथ पक जाए. 


जिसके बाद "चाउर भाजा" में घर में हाथ से पीसकर तैयार देसी मसालों को इसमें डाला जाता है और  इसे चूल्हे की आग में पकाया जाता है. हरबन्धु ने बताया कि "चाउर भाजा" का स्वाद चूल्हे की आग में दोगुना हो जाता है. 


सल्फी सिप बढ़ा देता है चाउर भाजा का टेस्ट
हरबन्धु का कहना है कि हालांकि यह बिरयानी की ही तरह होता है, पर स्वाद में बिरयानी से बिल्कुल अलग है. थोड़ा गीला, थोड़ा तीखा, चटपटा और स्वादिष्ट, चाउर भाजा की खूश्बू से इसके दीवाने खिंचे चले आते हैं. स्थानीय लोगों के साथ दूर दराज से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक भी इस देसी बिरयानी को बड़े चाव से खाते हैं. 


इसके साथ पर्यटको को सल्फी ड्रिंक सर्व किया जाता है. कहा जाता है कि "चाउर भाजा" और सल्फी की एक सिप इसके स्वाद को और दोगुना कर देता है. बस्तर के ग्रामीण अंचलों में ही "चाउर भाजा" तैयार किया जाता है. शाम होते ही युवा, पर्यटक और शहरी लोगों की  भीड़ लग जाती है. हर दिन ग्रामीण इसे बड़े गंज में पकाते हैं और इसे बेचकर उनकी अच्छी आय भी होती है.


अलावा चाउर भाजा बनी फेरविट
बस्तर की  देसी बिरयानी बस्तरवासियों  के साथ पर्यटकों  को भी खूब भाती है. इसलिए बस्तर में चापड़ा चटनी के बाद "चाउर भाजा" देसी बिरयानी भी लाखों लोगों की पसंदीदा डिश है. 


यही वजह है कि अब ग्रामीण अंचलों में पर्यटकों के लिए खुलने वाले होमस्टे में भी देसी और विदेशी पर्यटकों को "चाउर भाजा" परोसा जा रहा है. पर्यटक इसका स्वाद चखकर इसकी खूब तारीफ करते हैं.


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