Azadi ka Amrit Mahotsav: देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस महोत्सव के दौरान ऐसे वीर सपूतों को भी याद किया जा रहा है जिन्होंने देश की आजादी, विकास और देश की प्रगति के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इन्हीं महान सपूतों में से एक हैं 'द' मिसाइलमेन देश के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. अब्दुल कलाम आजाद. जिन्हें आज भी बस्तर जैसे पिछड़े क्षेत्र के ग्रामीण युवा अपना रोल मॉडल मानते हैं और इस गांव में उनके प्रवास के बाद अपने मोहल्ले का नाम अब्दुल कलाम राष्ट्र्पति पारा के नाम से रखा है.


पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम आजाद का इस गांव के ग्रामीणों के प्रति एक अलग ही लगाव है जिन्हें गांव वाले आज भी नहीं भूलते. देश के आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर इस गांव के ग्रामीण अब्दुल कलाम को ही याद करते हैं. क्योंकि उनका कहना है कि उनके वजह से ही उनके गांव तक आजादी के बाद पहली बार बिजली पहुंच पाई. साथ ही सड़क का निर्माण हुआ, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र खोला भी तभी खोला गया. इसलिए उनके नाम पर ही उन्होंने अपने पारा (मौहल्ले) का नाम पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम पारा के नाम से रखा है.


आजादी के बाद पहली बार पहुंची गांव में बिजली की सुविधा


देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद सन 2004 में 3 जून को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के रानसरगीपाल गांव के प्रवास पर पहुंचे हुए थे. गांव वाले का भाग्य उस दिन चमक गया जब उन्हें पता चला कि हिंदुस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम उनके गांव आ रहे हैं. सारा प्रशासनिक अमला उस गांव में सिमट गया. दो-तीन दिन के अंदर करीब 1500 लोगों की आबादी वाले इस गांव को बिजली के खम्बों से रोशन कर दिया गया. रात दिन काम करवाकर सड़के बना दी गई. आज से ठीक 18 साल पहले 3 जून को दोपहर बाद मिसाइल मैन हेलीकॉप्टर से वहां पहुंचे तो लोगों ने उनका दिल खोल कर तालियां बजाकर स्वागत किया.


अब्दुल कलाम को अपने बीच पाकर पूरे ग्रामीण झूम उठे और उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा. यह पहला मौका था जब देश के किसी राष्ट्रपति ने बस्तर के इस छोटे से गांव रानसर्गीपाल पाल जो नक्सल प्रभावित गांव हुआ करता था वहां पहुंचे हुए थे. राष्ट्रपति ने यहां घंटों समय बिताया और ग्रामीणों से बातचीत भी की.


गांव के युवा अब्दुल कलाम को मानते है अपना रोल मॉडल 


इस रानसर्गीपाल गांव के ग्रामीणों का कहना है कि डॉ. अब्दुल कलाम बस्तर की नैसर्गिक छटा और यहां की जनजातीय संस्कृति से काफी प्रभावित हुए. राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे रानसर्गीपाल गांव पहुंचे तो इस बात का जिक्र उन्होंने अपने उद्बोधन में किया था. गांव के ग्रामीण युवा आज भी बताते हैं कि पूरे गांव के युवा डॉ. अब्दुल कलाम को अपना रोल मॉडल मानते हैं. गांव के सोनसाय कश्यप ने बताया कि जब अब्दुल कलाम उनके गांव आए थे उस समय वह छोटा था. डॉक्टर अब्दुल कलाम ने गांव के कुछ युवाओं से मिलकर अपने गांव के विकास में भागीदारी के लिए कहा था  और शिक्षा के क्षेत्र में भी नाम कमाकर देश के सेवा के लिए काम करने को प्रेरित किया था. सोनसाय ने बताया कि वह राजनांदगांव में इंजीनियर की पढ़ाई कर अब सरकारी विभाग में पदस्थ है.


वहीं कुछ गांव के ग्रामीणों का कहना है कि राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के उनके गांव में पहुचने से पहले उनका पूरा गांव अंधेरे में डूबा हुआ था. यहां का हर एक ग्रामीण भारत के इस महान सपूत को कभी नहीं भूल सकता. अंधेरे में डूबे इस गांव को उन्होंने ही रोशन करवाया. उन्होंने यहां आकर कहा था कि इस इलाके को हरा भरा कर देंगे और उन्होंने लोगों के सपने को साकार कर दिया. आज गांव में 6 प्राथमिक शाला, दो माध्यमिक शाला, एक हाई स्कूल के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी है और एक उप स्वास्थ्य केंद्र भी है. जहां लोगों को इलाज संबंधित सुविधा भी मिलती है. साथ ही आदिवासी छात्राओं के लिए 50 सीटर आश्रम भी यहां खोला गया है. जहां रहकर आसपास के क्षेत्रों की छात्राएं पढ़ाई करती हैं.


गांव में विकास का श्रय पूर्व राष्ट्रपति को दिया


3 जून 2004 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के इस रान सर्गीपाल गांव में प्रवास के दौरान गांव की तत्कालीन सरपंच बदोबाई कश्यप ने उनसे हाथ मिलाया था. उनका कहना है कि डॉ. अब्दुल कलाम ने अपने प्रवास के दौरान मंच के पास हाथ मिला था, जिस पर वह आज भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती है. इधर जिस जगह पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का प्रवास हुआ था उसे राष्ट्रपति पारा के नाम से जाना जाता है और यह जगह बस्तरवासियों के लिए राष्ट्रपति पारा कहलाता है. आजादी के अमृत महोत्सव पर बकायदा इस गांव के ग्रामीण अपने राष्ट्रपति पारा में तिरंगा लगाकर उन्हें दिल से याद भी कर रहे हैं.


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