Bastar News: बस्तर का एक गांव जहां पुराने कलेक्टर की याद में आदिवासी मनाते है मेला, संविधान की करते हैं पूजा
बस्तर में मावली भाटा गांव में आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक करते हुए (डोकरा) बुजुर्ग मेले का आयोजन स्थानीय लोगों के द्वारा किया जाता है.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर (Bastar) जिले में एक ऐसा गांव है जहां आज भी भारतीय संविधान (Constitution) का मंदिर बनाकर यहां आदिवासी ग्रामीणों के द्वारा पूजा की जाती है. बस्तर में तैनात रहे एक पुराने आईएएस अधिकारी की याद में इस गांव में मेला का आयोजन किया जाता है. बस्तानार ब्लॉक के मावली भाटा गांव में आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक करते हुए (डोकरा) बुजुर्ग मेले का आयोजन स्थानीय लोगों के द्वारा किया जाता है. इस मेले के तहत गांव के आदिवासियों के साथ ही बुजुर्गों को संविधान से मिली शक्ति और मौलिक अधिकारों के साथ-साथ पेशा कानून की जानकारी इस मेले के माध्यम से दी जाती है.
डोगरा मेला भी कहते हैं
दरअसल मावली भाटा ही वह जगह है जहां आदिवासियों ने सबसे पहले डाइकेन और मुकुंद आयरन नामक कंपनियों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. साथ ही इन उद्योगों के लिए जमीन नहीं दी थी. इसके लिए सबसे पहले बस्तर के पूर्व कलेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता ब्रह्मदेव शर्मा ने आदिवासियों को उनकी जमीन और संवैधानिक अधिकारों के लिए जागरूक किया था. इन्हें गांव के लोग डोकरा कहते हैं और इसी वजह से इस मेले का नाम डोकरा मेला रखा गया है. इस आईएएस अधिकारी को याद कर इस मेले का आयोजन किया जाता है.
पूर्व कलेक्टर के नेतृत्व में मिली थी सफलता
गांव के ग्रामीणों ने बताया कि सन 1992 से मावली भाटा गांव में इस डोकरा मेले के आयोजन की शुरुआत की गई थी. धीरे-धीरे गांव के लोगों के साथ अन्य जिले के आदिवासी भी जुड़ते गए और आदिवासी समाज से जुड़े लोगों ने इसे डोकरा मेले का नाम दिया. साल 1992 से गांव में हर साल बस्तर दशहरा के मौके पर तीन दिवसीय इस मेले का आयोजन किया जाता है. इसमें संविधान पर चर्चा के साथ आदिवासियों के अधिकारों को लेकर लोगों को जानकारी दी जाती है. धाकड़ समाज के संभागीय अध्यक्ष तरुण सिंह धाकड़ ने बताया कि बस्तर के पूर्व कलेक्टर ब्रह्मदेव शर्मा और आंदोलन के नेतृत्वकर्ता बेहद ही बुजुर्ग थे.
संविधान के बारे में मिलती है जानकारी
इसके बावजूद वे आदिवासियों के हक के लिए आगे आये और उनकी मेहनत की वजह से उन्होंने बड़ी-बड़ी कम्पनियों को खदेड़ने में विजय हासिल की. इस वजह से इसे विजय मेला भी कहा जाता है और मुख्य रूप से इसे डोकरा (बुजुर्ग) मेला कहा जाता है. इस साल भी इस मेले को धूमधाम से मनाया गया और पूरे गांव के ग्रामीणों के साथ जिले भर से आए आदिवासियों को संविधान के तहत मिले उनके अधिकारों और पेशा कानून के बारे में जानकारी दी गई.
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