Bastar News: बस्तर में कोसा से तैयार प्रोडक्ट के दामों में बेतहाशा वृद्धि, कीमतों पर वन विभाग ने दी ये सफाई
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि गांव-गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार से लेकर अन्य बाजारों में भी व्यापारियों की कोसा खरीदी पर रोक लगा दी गई है.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में पाई जाने वाली वनोपज में कोसा सबसे महंगी और देश भर में प्रसिद्ध है. वनों से कोसा का संग्रहण करना और इसका धागाकरण करना बस्तर के ग्रामीणों का मुख्य आय का स्त्रोत भी है, लेकिन पिछले कुछ सालों से वन विभाग की लापरवाही से लगातार बस्तर में कोसा की खरीदी कम होने के साथ इसकी कीमत बढ़ने से डिमांड भी घटी है, और बस्तर में कोसा से तैयार प्रोडक्ट के दाम भी लगातार आसमान छू रही है, जिस वजह से इसके मार्केट में काफी फर्क पड़ा है.
दरअसल वन विभाग के लाख दावों के बावजूद व्यापारी गांव के ग्रामीणों से 5 रुपये के दाम में कोसा खरीद रहे हैं ,जिस वजह से वन विभाग अपने लक्ष्य के मुताबिक ना ही कोसा का संग्रहण कर पा रहा है और ना ही इसे रेशम विभाग को टारगेट के मुताबिक कोसा बेच पा रहा है, जिसके चलते कोसा से धागाकरण करने वाले समितियों को आमदनी नही होने से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
वन विभाग ने मौसम को बताई वजह
दरअसल राज्य सरकार ने मिशन रेशम के तहत कोसा का समर्थन मूल्य घोषित किया है और कोसा खरीदी की जिम्मेदारी वन विभाग को दी है. वन धन केंद्र के माध्यम से कोसा की खरीदी वन विभाग कर रहा है, लेकिन इस सीजन में बहुत ही कम कोसा की खरीदी हुई है, जिसके कारण रेशम विभाग के पास कोसा की कमी बनी हुई है.
रेशम विभाग के अधिकारी से मिली जानकारी के मुताबिक 1 करोड़ कोसा का लक्ष्य रखा गया था ,जिसमें से अब तक केवल 8 लाख कोसा ही दिया गया है, क्योंकि इसके पीछे बताया गया है कि बाजार में व्यापारियों को कोसा खरीदी बंद करवाने के बाद भी अधिक दाम देकर कोसा व्यापारी खरीद ले गए हैं ,जिसके कारण कोसा की कमी बनी हुई है.
हालांकि विभाग अब अगले सीजन में कोसा का लक्ष्य पूरा करने का भरोसा दे रहा है, शासन द्वारा समर्थन मूल्य के तहत केंद्र में 4 रुपये 20 पैसे में कोसा खरीदी की जा रही थी, जबकि व्यापारी 5 रुपये में ही ग्रामीणों से कोसा खरीद ले गए, वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि गांव-गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार से लेकर अन्य बाजारों में भी व्यापारियों की कोसा खरीदी पर रोक लगा दी गई है, साथ ही वन धन समिति को भी व्यापारियों को कोसा नहीं बिक्री करने के सख्त निर्देश दिए गए हैं.
हालांकि फिर भी बाकी सालों के मुकाबले इस साल संग्रहण कम क्यों हुई इसकी भी जानकारी जुटाई जा रही है, विभाग के अधिकारियों ने कहा कि ज्यादा बारिश होने से भी कोसा का उत्पादन प्रभावित हुआ है, इस साल अधिक बारिश होने के कारण उत्पादन कम हुआ है , जिसके चलते उसका दाम बढ़ जाता है, यही कारण है कि इस साल सरकारी दर से अधिक दाम पर कोसा फल की बिक्री हुई है, और वन धन समितियों में कोसा की कम खरीदी हुई है.
एक करोड़ लक्ष्य, केवल 8 लाख खरीदी
रेशम विभाग के उप संचालक जयपाल बरिहा का कहना है कि इस सीजन में वन विभाग से एक करोड़ कोसा खरीदी का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब तक केवल 8 लाख ही कोसा वन विभाग की तरफ से दिया गया है ,कोसा कम होने की वजह से महिला स्व सहायता समूह द्वारा धागाकरण का काम भी प्रभावित हुआ है, अधिकारी ने बताया कि जिले में वर्तमान में 10 समूह में महिलाएं धागाकरण का काम कर रही है.
इनमें वर्तमान में करीब 150 की संख्या में महिलाएं कोसा से धागाकरण कर रही है, जिसके कारण कोसा की डिमांड बढ़ गई है, पहले करीब 60 से 70 महिलाएं ही धागाकरण का काम कर रही थी, ऐसे में कोसा से तैयार प्रोडक्ट के भी दाम बढ़ गए हैं, और इन महिलाओं को धागाकरण को लेकर जितना कोसा उपलब्ध कराना है, उतना उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते कोसा के मार्केट में भी फर्क पड़ा है,और प्रोडक्ट के दाम बढ़ने की वजह से इसकी डिमांड भी घटी है, जिस वजह से समितियों के साथ-साथ वन विभाग और रेशम विभाग को भी नुकसान हो रहा है.
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