Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी भीषण गर्मी ने कहर बरपा रखा है और तापमान 43 डिग्री के पार पहुंच चुका है, मौसम विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक बस्तर में इस बार  पिछले 5 सालों का रिकॉर्ड टूटा है. हर साल नौतपा में बस्तर में बारिश होती थी, लेकिन इस साल तेज गर्मी और उमस ने लोगों को परेशान कर दिया है, बताया जा रहा है कि आने वाले 10 जून तक मौसम का यही हाल बना रह सकता है.


इधर गर्मी से सबसे ज्यादा परेशानी बस्तर के आदिवासी अंचलों में रहने वाले लोगों को हो रही है, गर्मी की वजह से तालाब, हैंडपंप पूरी तरह से सूख गए हैं, यहां तक की बस्तर की प्राणदायीनी इंद्रावती नदी का जलस्तर भी लगातार कम हो रहा है, ऐसे में बस्तरवासियों को भी पेयजल की चिंता सताने लगी है, ग्रामीण अंचलों में लोगो को  झरिया के पानी या कुए के पानी में निर्भर होना पड़ रहा है.


ग्रामीण अपने घरों से 3 से 5 किलोमीटर दूर झरिया से पानी लाने को मजबूर हो रहे हैं, वहीं भूजल स्तर गिर जाने से कई जगह प्रशासन के द्वारा किए जा रहे बोरिंगस भी फेल  होते नजर आ रहे हैं.सबसे बुरा हाल सुकमा, दंतेवाड़ा, कांकेर और बस्तर के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्रो का है, यहां पेयजल के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है, वहीं प्रशासन भी इन लोगों तक पेयजल पहुंचाने में फेल साबित हो रहा है.


झरिया और चुआ का गंदा पानी पीने को मजबूर हो रहे ग्रामीण 


छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में भीषण गर्मी के वजह से पानी को लेकर मची हाहाकार को लेकर अलग-अलग तस्वीर सामने आ रही है, कांकेर जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में एक तरफ जहां लोग झरिया का गंदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हो रहे है, वहीं दूसरी तरफ दंतेवाड़ा और बस्तर जिले में ग्रामीण चुआ का गंदा पानी पीने को मजबूर हो रहे हैं, तेज गर्मी के वजह से लगातार भूजल स्तर घटते जा रहा है , ऐसे में कई हैंडपंप पूरी तरह से सूख गए हैं.


इसके अलावा नदी, तालाबों का पानी भी सूख गया है, ग्रामीणों का कहना है कि इस साल पानी के लिए उन्हें काफी जूझना पड़ रहा है ,कई गांव ऐसे हैं जहां हैंडपंप की सुविधा नहीं है, ऐसे में यहां के ग्रामीण नदी का पानी या तालाबों के पानी से अपनी प्यास बुझाते थे, लेकिन अभी इस साल गर्मी के वजह से नदी, तालाबों का पानी भी सूख गया है, ऐसे में लोग झरिया का बचा हुआ गंदा पानी से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हो रहे हैं ,कई गांव नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होने की वजह से यहां आज तक प्रशासन की टीम नहीं पहुंच पाई है.


इस वजह से इन गांव में ना हैंडपंप है ना नल-जल योजना पहुंच सकी है, ऐसे में यहां के ग्रामीण भी नदी और तालाबों के पानी में ही निर्भर रहते हैं, और इस साल उन्हें नदी तालाब का पानी सूख जाने की वजह से नदी के तट पर रेत के  टीले को खोदकर पानी निकलना पड़ रहा है और एक गुंडी पीने का पानी भरने के लिए उन्हें 1 से 2 घंटे का समय लग रहा है.


ग्रामीण अंचलों में लगातार गिर रहा भू जलस्तर 


वही बस्तर संभाग के आयुक्त श्याम धावड़े का कहना है कि इस साल गर्मी की वजह से लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है ,लेकिन प्रशासन की ओर से पूरी कोशिश की जा रही है की अंदरूनी गांव में जिन इलाकों में सड़क बन चुके हैं वहां तक पेयजल पहुंचाया जा सके, हालांकि सुकमा, दंतेवाड़ा बीजापुर ,कांकेर और नारायणपुर  जिले के ऐसे कई क्षेत्र हैं जो घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है और यह इलाका  पहुंचविहीन इलाका है.


इस वजह से यहां पर पेयजल पहुंचाना मुश्किल हो गया है, लेकिन लगातार पीएचई विभाग के द्वारा  शुद्ध पानी पहुंचाने की पूरी कोशिश की जा रही है ,कई जगह बोर भी कराया गया है लेकिन भूजल स्तर कम होने की वजह से बोर भी फेल साबित हो रहे हैं, प्रशासन की ओर से पूरी कोशिश की जा रही है कि ग्रामीणों तक शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा सके.


ये भी पढ़े :'JMM-कांग्रेस ने आदिवासियों को...', झारखंड में इंडिया गठबंधन पर बरसे छत्तीसगढ़ के CM विष्णुदेव साय