Bijapur News: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में भारी बारिश की वजह से पिछले कुछ दिनों से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, एक तरफ जहां बारिश की वजह से नदी-नाले उफान पर है, वहीं दूसरी तरफ 30 से अधिक गांव टापू में तब्दील हो गए हैं. नदी-नालों का जलस्तर बढ़ने से नदी के उस पार रहने वाले ग्रामीणों को रोजमर्रा की चीजें खरीदने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
ग्रामीणों की मांग के बावजूद भी पुल न बनने से इन दिनों बारिश के मौसम में उन्हें दो वक्त के भोजन के लिए भी जूझना पड़ रहा है. लोग उफनते नदी को पार करने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं. दरअसल, बीजापुर जिले के भोपालपटनम ब्लॉक में चिंतावागु नदी पर पुल नहीं बनने की वजह से गोरला पंचायत के सैकड़ो ग्रामीण राशन लाने के लिए जोखिम उठाकर नदी पार कर रहे हैं.
पेट भरने के लिए जान दांव पर लगा रहे ग्रामीण
केंद्र और राज्य सरकार के तरफ से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बीपीएल परिवारों को नि:शुल्क चावल का वितरण पीडीएस की दुकानों के जरिए किया जाता है. भारी बरसात में बस्तर संभाग में बसे ग्रामीण इस राशन को लेने के लिए काफी जद्दोजहद करते दिखाई दे रहे हैं, दरअसल ग्रामीण इन इलाकों में पुल न बनने के चलते उफनती नदी को पार करने के लिए मजबूर हैं. ग्रामीण उफनती चिंतावागु नदी को गंज के सहारे पार कर पीडीएस दुकान से राशन लाकर नदी के उस पार पहुंचा रहे हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के मौसम में राशन के लिए उन्हें बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है. इस गांव में राशन की दुकानें नदी के पार संचालित है, जिस वजह से ग्रामीणों को राशन लेने के लिए बहती नदी को पार करना पड़ता है और उसके बाद करीब 8 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कई बार पीडीएस की दुकान मिनुर गांव में खोले जाने और पुल बनाने के लिए आवेदन देने के बाद भी उनकी मांगे पूरी नहीं हुई, जिसके चलते उन्हें दो वक्त के भोजन के लिए इतना जूझना पड़ रहा है.
15 सालों से पुल की मांग कर रहीं सरपंच
मिनुर गांव की रहने वाली ग्रामीण महिला गोपक्का यालम का कहना है कि वो पीडीएस की दुकान जाने के लिए गंज पकड़कर नदी पार कर आई और वापस राशन लेकर जाने में उसे सुबह से शाम हो गई. वहीं, इसी गांव के रहने वाले बुजुर्ग मट्टी चंद्रया का कहना है कि आजादी के 77 साल बाद भी उनके गांव में कई बार पुल बनाने की मांग के बावजूद भी पुल नहीं बना. कई बार उन्होंने अपनी आंखों के सामने इस नदी को पार करते ग्रामीणों को जान गंवाते देखा है, लेकिन सरकार उनकी इस मांग को दरकिनार कर रही है.
वहीं, गोरला पंचायत की सरपंच टिंगे चिनाबाई ने बताया कि वो पिछले 15 सालों से चिंतावगु नदी में पुल की मांग करते हुए आ रही है. तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को दो बार और भूपेश बघेल को एक बार आवेदन दे चुकी है, लेकिन फिर भी इस नदी में पुल निर्माण को लेकर सरकार ने अब तक गंभीरता नहीं दिखाई.
सरपंच ने जिला प्रशासन से एक मोटर बोट की मांग की ताकि ग्रामीणों को ऐसे हालातों में कम से कम राशन लाने में सहूलियत मिल सके, लेकिन अब तक ये मांग भी पूरी नहीं हुई है, जिस वजह से ग्रामीण अपनी रोजमर्रा की चीजें और राशन लाने के लिए हर रोज अपना जीवन दाव पर लगा रहे हैं.
ये भी पढ़े: बस्तर में उच्च शिक्षा की राह में परेशानी, सरकारी कॉलेजों में प्रोफेसरों की कमी नहीं हुई दूर