Bilaspur High Court News: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट में नाबालिग बच्चे के अधिकार को लेकर कोर्ट ने एक दिलचस्प फैसला सुनाया है. बच्चे की माता की मृत्यु के बाद बच्चे की कस्टडी पिता को नहीं दी गई है. बल्कि कोर्ट ने पिता की जगह नाना को बच्चे की कस्टडी दी है. बिलासपुर हाईकोर्ट ने पिता के अपील को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी पाने के लिए माता-पिता का बच्चे से लगाव होना जरूरी है.
नाबालिग बच्चे की कस्टडी पर बिलासपुर हाईकोर्ट का फैसला
दरअसल अक्सर देखा गया है, पति पत्नी में तलाक होने के बाद माता या पिता को बच्चे की कस्टडी दी जाती है. लेकिन बिलासपुर हाईकोर्ट ने बच्चे की मां की मृत्यु के बाद पिता की जगह नाना को कस्टडी दी है. जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता दी जाती है और कस्टडी के लोग बच्चे के प्रति माता पिता का लगाव होना चाहिए.
कोर्ट ने पिता के जगह नाना को दी कस्टडी
इस मामले में नाबालिग बच्चे के पिता ने फैमली कोर्ट में बच्चे की कस्टडी के लिए अपील की थी. लेकिन फैमली कोर्ट ने हिंदू माइनोरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट के तहत कोर्ट ने पिता के अपील को खारिज कर दिया और बच्चे की गॉर्डियनशिप नाना को दी. इसके बाद पिता फैमली कोर्ट के फैसले को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन पिता को यहां भी कस्टडी नहीं मिली. केवल महीने में एक बार फैमली कोर्ट के समक्ष बच्चे से मुलाकात की अनुमति दी है.
पत्नी की मौत के बाद पिता ने मांगी कस्टडी
बच्चें की कस्टडी मांग रहे अपीलकर्ता पिता ने कोर्ट में बताया है कि 15 साल पहले मोहिनी बाई से उसकी शादी हुई थी. इसके बाद उन दोनो का एक बच्चा हुआ है. उसने बताया कि पत्नी की रीढ़ की हड्डी टूटने के बाद इलाज करवा रहा था उसकी देखभाल करता था लेकिन 2014 में पत्नी घर छोड़कर अपने मायके चली गई. पिता ने कोर्ट में बताया कि पत्नी को अनुरोध करने के बाद भी नहीं आई. इसके बाद पत्नी ने भरण पोषण के लिए फैमली कोर्ट के समक्ष आवेदन दाखिल कर दिया. इस मामले में सुनवाई के दौरान ही पत्नी की मृत्यु हो गई.
पिता ने प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते मांगा बच्चे की कस्टडी
हालाकि कोर्ट ने 2 हजार रुपए भरण पोषण के लिए निर्देश दिया था. क्योंकि बच्चा नाना की कानूनी कस्टडी में रहता है. लेकिन नाबालिग बच्चे के पिता को ये रास नहीं आया पिता ने इसके बाद इसके बाद बच्चे की कस्टडी के लिए फैमली कोर्ट में आवेदन दाखिल कर दिया. खुद को बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते कस्टडी की मांग की, कोर्ट में यह दलील भी दी कि वह आर्थिक रूप से संपन्न है और बच्चे को पिता के प्यार और स्नेह से वंचित करना उचित नहीं है.
बच्चे के जन्म के बाद पिता कभी नहीं गया बच्चे से मिलने
इस मामले में फिर बच्चे के नाना यानी प्रतिवादी ने अपनी दलील में अपने दामाद पर बेटी के साथ शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाया और इस वजह से बेटी की मौत होने का कारण बताया. ये भी कहा कि अपीलकर्ता ने बेटे जन्म के बाद कभी उसके पास नहीं गया और उसने दूसरी शादी भी कर ली. नाना ने कहा कि बच्चे की पूरी सावधानी से देखभाल और बच्चे का भरण पोषण किया जा रहा है. अच्छी शिक्षा बच्चे को दी जा रही है.
पिता महीने में एक बार ही मिल सकता है बेटे से
इस मामले पर कोर्ट ने फैमली कोर्ट के तर्क को भी ध्यान रखते हुए पिता के कस्टडी की अपील को खारिज कर दिया. फैमली कोर्ट ने भी कहा था कि अपीलकर्ता और न ही उसके माता पिता ने कभी बच्चे के बारे में पूछताछ की आई न ही किसी अवसर पर उससे मिलने गए. इसलिए केवल पिता बच्चे प्राकृतिक अभिभावक है तो बच्चे की कस्टडी सौंपी नहीं जा सकती है.
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