Rudrashiva Statue in Bilaspur: छत्तीसगढ़ को एक समय दक्षिण कौशिक के नाम से जाना जाता था. राज्य की पहचान भगवान राम के ननिहाल और कौशल्या माता के जन्मभूमि के रूप में विख्यात है. इसी के साथ आज से 1500 साल पुरानी एक प्रतिमा ने राज्य की पहचान को विशेष बना दिया है. वो है रुद्रशिव की प्रतिमा, जो पूरे विश्व में एकलौता है. 


छत्तीसगढ़ की विशेष पहचानों में से एक है ये प्रतिमा


इस रुद्रशिव की प्रतिमा छत्तीसगढ़ की विशेष पहचानों में से एक है और इसकी भूमिका अहम है. बिलासपुर जिले के मल्हार में यह विशाल प्रतिमा लगभग 9 फीट ऊंची तथा 5 टन वजनी जिसकी संरचना विलक्षण है. भगवान शिव को पहली बार बिना त्रिशूल, नंदी, कैलाश को प्रतिमा में दर्शाया नहीं गया है. रुद्रशिव की प्रतिमा में भगवान शिव का शारीरिक बनावट अलग-अलग पशु-पक्षियों का समायोजन है.


रुद्रशिव की क्या है खासियत? 


महादेव में सिर पर पगड़ीनुमा सांप का युग्म है. नाक और आंखों की भौंह का निर्माण उतरते हुए छिपकली को दिखाया गया है. मूछों के अंकन में मछली है. जबकि होटों का निर्माण केकड़ा से किया गया है. कानों को मयूर आकृतियों से चित्रित किया गया है. सिर के दोनों ओर फणयुक्त सांप है. महादेव के कंधों को मगरमच्छ से बनाया गया है. जिससे दोनों भुजाएं निकलती हुई दिखाई देती हैं. शरीर के विभिन्न अंगों में सात मानव-मुखों से निर्माण किया गया है. पेट का निर्माण एक बड़े मुख द्वारा किया गया है. दो सिंह-मुख घुटनों में प्रदर्शित किए गए हैं और उर्ध्वाकर लिंग के निर्माण के लिए मुंह निकाले कछुए का प्रयोग किया गया है. महादेव के हाथों के नाखून को सांप के मुख जैसे निर्मित किया गया है.


कहां मिली रूद्रशिव की प्रतिमा?


बिलासपुर जिले से लगभग 30 किलोमिटर दूरी पर मनयारी नदी के तट पर ताला नामक गांव पर दो प्राचीन मंदिर स्थति हैं. जो देवरानी-जेठानी मंदिर के नाम से लोकप्रिय है. जेठानी मंदिर अत्यंत ध्वस्त अवस्था में है. जबकि देवरानी मंदिर जेठानी मंदिर की तुलना में बेहतर स्थिति में है. देवरानी मंदिर पहली बार 1978 में सबसे पहले प्रकाश में आया. इसके बाद से लागातार पुराविदों के लिए खोज का विषय बन गया है. मध्य प्रदेश शासन के पुरातत्व विभाग ने यहां समय-समय पर मलबा सफाई तथा संरक्षण का कार्य कराया है. 


इसी क्रम में प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी डॉ. के. के. चक्रवर्ती के मार्गदर्शन में इस स्थल का मलबा सफाई का कार्य उस समय बिलासपुर में पदस्थ पुरातत्व विभाग के अधिकारी जी. एल. रायकवार और राहुल सिंह द्वारा कराया गया. जिससे 17 जनवरी 1988 को एक विलक्षण प्रतिमा पहली बार सामने आई.


शास्त्रों में नहीं है महादेव की ऐसी प्रतिमा का जिक्र


छत्तीसगढ़ के संस्कृत और पुरातत्व विभाग के पूर्व अधिकारी राहुल सिंह ने बताया कि ऐसी प्रतिमा देश के किसी भाग से नहीं मिली है और न ही शिल्प-शास्त्रों में इसका जिक्र मिलता है. रुद्रशिव की प्रतिमा 5वीं और 6वीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है. यह प्रतिमा शैव परंपरा से संबंधित प्रतीत होता है. विभिन्न पशु-पक्षियों का चित्रण इसके पशुपति रूप का परिचायक कहा जा सकता है. शिव प्रतिमा के लक्षण जैसे डमरू, त्रिशूल, नंदी आदि का इसमें अभाव है. फिर भी सर्पों की उपस्थिति है. यह प्रतिमा देवरानी मंदिर के प्रवेश द्वार के पास प्राप्त हुई है.


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