Ambikapur News: सरगुजा जिले की तीनों विधानसभा सीटें कांग्रेस का गढ़ रही है. इन तीनों सीटों में पिछली कई विधानसभा चुनाव से कांग्रेस का कब्जा है. लेकिन जिले की आरक्षित लुंड्रा विधानसभा का अपना एक अलग इतिहास है. ये सीट ना केवल कांग्रेस का गढ़ रही है. बल्कि जातिगत समीकरण के आधार पर यहां कांग्रेस वर्षों से जीतती आ रही है. खास बात ये है कि इस सीट पर कई दशक से एक ही परिवार के पिता-बेटे और भाई विधायक बन रहे हैं. लेकिन विपक्षी दल भाजपा आज तक इनके जातिगत समीकरण को तोड़ने में कामयाब नहीं हो पाई है. आलम ये है कि इस सीट पर टिकट बंटवारें से लेकर प्रत्याशी चयन तक भाजपा, कांग्रेस से मात खाती रही है.


परिवारवाद और जीत
सरगुजा की लुंड्रा में गोंड, उरांव और कंवर जाति के सबसे अधिक वोट हैं, और इलाके में उरांव वोट कांग्रेस के परंपरागत वोट माने जाते हैं. लिहाजा संख्या बल के हिसाब से जातिवाद का फायदा उठाते हुए कांग्रेस यहां से एक ही उरांव परिवार के सदस्यों पर भरोसा जताते आ रही है. इस सीट पर इस परिवार के सदस्य 8 बार चुनाव लड़ चुके हैं. जिसमे 7 बार ये कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडे हैं. और इन 7 बार मे 6 बार एक ही परिवार के पिता और बेटे विधायक चुने गए हैं. एक बार परिवार के सदस्य को भाजपा के विजय नाथ सिंह ने हराया था. वो भी महज 42 वोट से, और तब जब प्रदेश में जोगी लहर चल रही थी. 


पिता फिर दोनों बेटे विधायक
सबसे पहले इस परिवार के सदस्य चमरू राम विधायक चुने गए. वो दो बार इस विधानसभा से विधायक रहे. इसके बाद उनके एक पुत्र रामदेव राम विधायक बने. वो भी दो बार विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इसके बाद चमरू राम के दूसरे बेटे डॉ प्रीतम राम यहां से विधायक चुने गए हैं. और एक बार चुनावी रणनीति के तहत डॉ प्रीतम राम को पड़ोसी ज़िले की सामरी विधानसभा से विधानसभा की टिकट मिली और वो जीत गए. गौरतलब है कि डॉ प्रीतम राम सामरी क्षेत्र राजपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मे बीएमओ के पद पर पदस्थ थे. लेकिन परिवार की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा देकर चुनाव लड़ा. और अपने मंसूबे में सफल हो गए.


भाजपा की रणनीति
छत्तीसगढ़ के सरगुजा की लुंड्रा विधानसभा में जातिगत समीकरण के आधार पर जीत तय होती है. आरक्षित वर्ग वाली इस सीट पर कांग्रेस तो दूसरे नंबर की सबसे अधिक बल वाले उरांव जाति के वोट से जीतती आई है. पर भाजपा जातिगत समीकरण में सेंध नहीं लगा पाती है. दरअसल, इस सीट पर गोंड जाति के वोटर सबसे अधिक माने जाते है. उसके बाद उराँव और फिर कंवर. और इस सीट पर जहां उराँव एकजुट होकर कांग्रेस पर अपना भरोसा जताते हैं. तो वहीं गोंड में थोड़ा आपसी खींचतान की वजह से हर बार भाजपा के विजय प्रताप सिंह बाबा की हार हो जाती है. ऐसे में अगर भाजपा गोंड जाति के किसी फ़्रेस कंडीडेट या कंवर समाज से किसी प्रत्याशी को मैदान में उतारती है, तो कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है. पर ऐसा कर पाने में भाजपा हर बार नाकाम रही है. नतीजा उसे हार का सामना करना पड़ता है. 


भाजपा में कई दावेदार 
लुंड्रा विधानसभा में कांग्रेस में एक ही परिवार के सदस्य को इस बार भी टिकट मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं. तो वहीं भाजपा की ओर से कंवर जाति से पूर्व जिला पंचायत सदस्य फुलेश्वरी सिंह, गोंड जाति से पूर्व सांसद कमलभान सिंह, उराँव समाज से पूर्व मेयर प्रबोध मिंज के साथ उराँव समाज के इंदर भगत दावेदार नजर आ रहे हैं. इसके अलावा सरकारी नौकरी छोड़कर आए उपेन्द्र सिंह गोंड भी एक दावेदार के रूप में हैं.


इलाके में चर्चा
भाजपा के लोगों और खासकर क्षेत्र के लोगों की बात करें तो गोंड जाति में थोडा जातिय मनमुटाव के कारण कंवर (पैकरा) समाज ही इलाक़े से भाजपा की नइया पार लगा सकता है. क्योंकि उरांव तो कांग्रेस के परंपरागत वोटर है. जिससे उरांव समाज के प्रत्याशी केवल कुछ वोटों में सेंध लगा सकते है, जीत नहीं सकते हैं. और गोंड में भी अगर गैरविवादित छवि वाले को टिकट मिलेगी तो ही कुछ संभावना बनेगी. बहरहाल लुंड्रा विधानसभा में जीत आज भी भाजपा के लिए एक चुनौती है.


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