Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के धरमजयगढ़ और सारंगढ़ विधानसभा में कांग्रेस के किले को फतह करना बीजेपी के लिए काफी चुनौती भरा रहा. हालांकि छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से हालात जरुर बदले हैं, लेकिन चुनौतियां कम नहीं हुई है. यहां 14 बार हुए चुनावों में बीजेपी को केवल दो बार ही यहां के मतदाताओं ने मौका दिया है. धरमजयगढ़ में कांग्रेस ने 12 बार जीत हासिल की है. इसमें 6 बार तो कांग्रेस के चनेश राम राठिया ने ही जीत दर्ज की. 

दो बार चनेश राम राठिया के बेटे लालजीत राठिया, दो बार राजा साहब चंद्रचूड़ प्रसाद सिंह देव, एक बार किशोरी मोहन और एक बार कांग्रेस के ही बैद्य बैगराज शर्मा ने जीत हासिल किया था. केवल दो बार बीजेपी के ओमप्रकाश राठिया इस सीट पर काबिज हुए थे. 


सारंगढ़ में दो बार बसपा की जीत


इसी तरह के हालात सारंगढ़ विधानसभा का भी है. हालांकि यहां पार्टी बदले या ना बदले चेहरा जरूर बदल जाता है. केवल दो बार ही ऐसा मौका आया जब एक ही चेहरा को दो बार मौका मिला. यहां लगातार दो बार बसपा को जीत हासिल हुई, लेकिन चेहरा बदल गया था. इस विधानसभा में एक बार निर्दलीय को भी मौका मिला था. 


लैलूंगा में कांग्रेस बीजेपी-बराबर


लैलूंगा विधानसभा में कांग्रेस और बीजेपी का आकंडा बराबर रहा है. यहां एक बार आरआरपी से भी विधायक चुने गए थे. इसके बाद दो चुनाव के लिए विलोपन हो गया था. लैलूंगा विधानसभा में 11 बार चुनाव हुआ है. इसमें अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 1977 से 1985 तक कांग्रेस के ही सुरेंद्र कुमार सिंह विधायक रहे. 1990, 1993 और 1998 में बीजेपी के प्रेमसिंह सिदार यहां से लगातार तीन बार विधायक रहे. इसके बाद 2003 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़े, लेकिन वे हार गए. तब से यहां एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस का कब्जा होता आया है. याने 2003 के बाद से यहां एक पार्टी का लगातार कब्जा नहीं रहा है.


बीजेपी के लिए चुनौती ये सीटें


एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी ऐसे ही हालात रायगढ़ विधानसभा का भी है. यहां भी 2003 के बाद से चेहरा और पार्टी दोनों बदल जाता है. रायगढ़ जिले के खरसिया, धरमजयगढ़ और सारंगढ़ एक ऐसा अभेद किला है जिसे बीजेपी अभी तक भेद नहीं पाई है. अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही यहां कांग्रेस का गढ़ रहा है. खरसिया तो अब भी बीजेपी के लिए चुनौती बना हुआ है. धरमजयगढ़ और सारंगढ़ विधानसभा में दो-दो बार जीत जरूर मिली है. 2003 के बाद धरमजयगढ़ विधानसभा में हालात बदले और बीजेपी के ओमप्रकाश राठिया को जीत मिली. इसके बाद 2008 में भी बीजेपी यह सीट बचाने में कामयाब रही. इसके पहले और बाद में यहां केवल कांग्रेस का ही कब्जा रहा है.


छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद सारंगढ़ में एक ही बार जीत


सारंगढ़ विधानसभा में छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद हुए चुनाव में एक ही बार बीजेपी को जीत मिली है. इसके पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में 1993 में हुए चुनाव में बीजेपी के शमशेर सिंह ने जीत हासिल की थी. फिर 1998 और 2003 में हुए चुनाव में लगातार दो बार यहां बीएसपी ने जीत दर्ज की. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद हुए चुनाव में एक बार बसपा, एक बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है. इसमें 2003 में बसपा के कामदा जोल्हे, 2008 में कांग्रेस के पद्मा मनहर, 2013 में बीजेपी के केरा बाई मनहर और बीते 2018 में कांग्रेस के उत्तरी जांगड़े की जीत हुई थी. इस बार भी कांग्रेस ने पुराने चेहरे उत्तरी जांगड़े को ही चुनावी रण में उतारा है. वहीं बीजेपी ने एकदम नया चेहरा शिवकुमारी चौहान पर दांव खेला है.


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