British Era Rail Engine: आपने ट्रेन में सफर तो जरूर किया होगा, और नहीं किया है तो जरूर ये इच्छा रखते होंगे की ट्रेन से सफर का मजा लिया जाए. वर्तमान समय में आधुनिक ट्रेन हाईटेक सुविधाओं से लैस होते है, यात्रियों के लिए कई सुविधाएं होती है. लेकिन क्या आपको पता है आज से 100 साल पहले अंग्रेजों के जमाने में ट्रेन कैसे थे, उसका इंजन कैसा था. ऐसे ही एक ट्रेन की इंजन की तस्वीर आज हम आपको दिखाएंगे जो 115 साल पुराना है, और उसका उपयोग 49 साल तक किया गया. वर्तमान में पुराने समय का यह नैरो गेज इंजन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की शान है. जो ब्रिटिशकाल भारतीय रेल के इतिहास से जुड़ा हुआ है.


अंग्रेजी के जमाने में भारत लाया गया था नैरो गेज स्टीम रेल इंजन


दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इंग्लैंड में निर्मित नैरो गेज स्टीम रेल इंजन को भारत लाया गया था. इस इंजन का निर्माण 1907 में किया गया था, करीब 15 मीटर लंबा और 30 टन वजनी यह रेल इंजन 1956 तक कोलकाता में कृष्ण नगर से दामोदर स्टेशन के बीच 2 फीट चौड़ाई वाले नैरो गेज रेल मार्ग पर चला. बाद में भारतीय रेलवे ने इस इंजन की सेवा लेनी बंद कर दी. यह इंजन पहले रेलवे के अलग अलग यार्ड में पड़ा रहा, बाद में इसे खड़गपुर के रेलवे यार्ड में रखा गया. समय की मार से यह रेल इंजन पूरी तरह कंडम हो गया. इंजन के इतिहास को देखते हुए ही इसे संरक्षित करने का फैसला दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने लिया. बतौर माडल इसे रखने की योजना बनाई गई. 


इसके बाद छत्तीसगढ़ के भिलाई के चरोदा स्थित रेलवे यार्ड में करीब डेढ़ साल तक कबाड़ की तरह पड़े इस इंजन को एक महीने की मेहनत से संवारा गया. काम पूरा होने के बाद इसे ट्रेलर में लोड कर बिलासपुर लाया गया, और बिलासपुर रेलवे जोन के कार्यालय परिसर के जिस स्थान पर इसे रखा गया है, इसके आसपास सुंदरीकरण किया गया है. स्टीम लोकोमोटिव का अनावरण तत्कालीन महाप्रबंधक गौतम बनर्जी ने 29 जून 2021 को किया.


इस काम के लिए करते थे मालगाड़ी का उपयोग


नैरो गेज स्टीम इंजन को मालगाड़ी में लगाया जाता था. इसके माध्यम से चावल की ढुलाई की जाती थी. अब दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की अधिकांश छोटी लाइन को परिवर्तित किया जा चुका है. युवा पीढ़ी को छोटी लाइन की विरासत व सुनहरे इतिहास से परिचय कराने के लिए इंजन को बिलासपुर में रेलवे जोन कार्यालय परिसर में रखा गया है. जो लोगों की आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, लोग इसे निहारने के लिए पहुंचते है. बता दें कि, 49 साल तक इस इंजन से सेवा के बाद यह इंजन 65 साल तक कंडम पड़ा रहा, लेकिन अब रेलवे की पहल से लोग पुराने समय के ट्रेन के बारे में जान रहे है, इसे देख रहे है.


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