Bastar News: बस्तर में 75 दिनों तक मनायी जाने वाली विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व (Bastar Dussehra Festival) की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म 'डेरी गड़ई' की अदायगी आज शहर के सीरासार भवन में की गई. डेरी गड़ई करीब 400 वर्ष पुरानी परंपरा है. बिरिंगपाल गांव से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष जगह स्थापित किया गया और विधि विधान से पूजा अर्चना कर रस्म को निभाया गया. रस्म अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी से अनुमति ली गई. इस मौके पर बस्तर दशहरा समिति के सदस्य और आमजन मौजूद रहे. रस्म के साथ ही 8 चक्कों का विशालकाय रथ निर्माण के लिए विशेष गांव से लकड़ियां लाने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी.
दशहरा पर्व पर 400 साल पुरानी परंपरा
जगदलपुर के सिरासार भवन में आज बस्तर दशहरा पर्व की दूसरी बड़ी रस्म डेरी गड़ई की अदायगी की गई. रियासत काल से चली आ रही रस्म में परंपरानुसार डेरी गड़ई के लिए बिरिंगपाल गांव से सरई पेड़ की दो टहनियां लाई जाती हैं. दोनों टहनियों की पूजा अर्चना कर लकड़ियों को गाड़ने के लिए खोदे गए गड्ढों में अंडा और जीवित मछलियां डाली जाती हैं. उसके बाद टहनियों को गा़ड़ कर रस्म को पूरा किया जाता है और दंतेश्वरी माता से विश्व प्रसिद्ध दशहरा रथ के निर्माण की प्रक्रिया को शुरू करने की इजाजत ली जाती है. मान्यताओं के अनुसार रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरा पर्व के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है. करीब 400 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी पूरे विधि विधान के साथ किया जा रहा है.
कोरोना काल के बाद लोगों में देखा है उत्साह
निभाई गई दूसरी बड़ी रस्म में दशहरा समिति के मांझी, चालकी, मेंबरीन के साथ ही प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद रहे. बस्तर दशहरा समिति के सचिव पुष्पराज पात्र ने बताया कि कोरोना काल के बाद बस्तर दशहरा पर्व में लोगों का काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. प्रशासन की भी पर्व को धूमधाम से मनाने की पूरी तैयारी है. सचिव ने कहा कि इस साल हजारों की संख्या में भीड़ जुटने की उम्मीद है.रियासत काल से चली आ रही बस्तर दशहरा पर्व की रस्मों और पंपराओं का निर्वहन आज भी बखूभी किया जाता है. डेरी गड़ई की रस्म अदायगी के बाद परंपरानुसार बिरिंगपाल गांव से लाई गई सरई की लकड़ियों से रथ निर्माण का काम शुरू किया जायेगा.