Bastar News: कौन थे बस्तर के वीर योद्धा झाड़ा सिरहा, जिन्हें बस्तर में क्रांतिकारी के साथ कहा जाता था जड़ी बूटी के देवता..
Chhattisgarh News: हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेष बघेल ने झाड़ा सिरहा की आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी किया, साथ ही विभिन्न सरकारी संस्थाओं के नाम झाड़ा सिरहा के नाम पर रखे.
Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले को क्रांतिकारियों की भूमि कहा जाता है. यहां आदिवासी समाज के कई वीर योद्धा अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए अंग्रेजों से लड़ते- लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए थे. उन क्रांतिकारियों में मुख्य रूप से शहीद वीर गुंडाधुर, शहीद देबरीधुर, वीर गेंद सिंह, अजमेर सिंह, हिड़मा मांझी, दलगंजन सिंह और शहीद वीर झाड़ा सिरहा ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.
मुरिया विद्रोह के जननायक थे झाड़ा सिरहा
इन क्रांतिकारियों में से वीर झाड़ा सिरहा को मुरिया विद्रोह का जननायक कहा जाता है, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ऐसी लड़ाई लड़ी कि उनके हाथ-पांव फूल गए और हारकर उन्हें मुरिया दरबार में अर्जी लगानी पड़ी. पारंपरिक जड़ी बूटियों का ज्ञान होने की वजह से इस वीर योद्धा का नाम झाड़ा सिरहा पड़ा और उनके बलिदान को याद कर बस्तर में आज भी उन्हें सम्मान दिया जाता है. हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेष बघेल ने झाड़ा सिरहा की आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी किया, साथ ही विभिन्न सरकारी संस्थाओं के नाम झाड़ा सिरहा के नाम पर रखे.
आरापुर में हुआ था सिरहा का जन्म
बस्तर के इतिहासकार हेमंत कश्यप ने बताया कि झाड़ा सिरहा आदिवासियों के जन नायक थे. आज से करीब 150 साल पहले उन्होंने आदिवासी विद्रोहियों के साथ ऐसी लड़ाई लड़ी जो आज भी याद की जाती है. हेमंत कश्यप ने बताया कि बस्तर जिले के बड़े आरापुर गांव में माटी पुजारी के परिवार में झाड़ा सिरहा का जन्म हुआ था, कोयतुर समाज में गांव की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के साथ उन्हें पारंपरिक जड़ी बूटियों का ज्ञान था, इसलिए उन्हें झाड़ा सिरहा के नाम से पहचाना जाता था.
अंग्रेजों के दमन का किया जमकर विरोध
ब्रिटिश सरकार के द्वारा बस्तर क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन, सामंतवाद और जमींदार प्रथा की नीतियों का उन्होंने पुरजोर विरोध किया....इस विद्रोह को सफल बनाने के लिए बस्तर संभाग के एक हजार से ज्यादा गांव के मांझियों ने झाड़ा सिरहा का दमदारी से साथ दिया था..अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ और बस्तर प्रशासन की कमजोरियों को झाड़ा सिरहा ने सबसे पहले उजागर किया, इसलिए सभी मांझियों ने उनका साथ दिया था..
साल 1876 को अंग्रेज अफसर मैकजार्ज को भरोसा दिलाया गया कि आदिवासी भविष्य में कानून को अपने हाथ में नहीं लेंगे और अपनी शिकायत राजा के समक्ष दर्ज कराएंगे.. इस तरह झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में ही 4 मार्च 1876 को बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में पहली बार मूल निवासियों का दरबार मुरिया दरबार की व्यवस्था की गई थी.
अंग्रेजी हुकूमत से लड़ते-लड़ते दे दी थी जान की बाजी
हेमंत कश्य ने बताया कि पहले सिरहासार भवन को सिरहा खोली कहा जाता था, यहां पर झाड़ा सिरहा ने अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा बस्तर के प्राकृतिक संपदा के दोहन के विरोध में उनसे विद्रोह किया था, झाड़ा सिरहा सभी आदिवासी विद्रोहियों के साथ अंतिम सांस तक लड़े, और आदिवासियों का नेतृत्व करते हुए मई 1876 में ही इंद्रावती नदी किनारे अंग्रेजी फौज के हाथों शहीद हो गए.. हेमंत कश्यप ने बताया कि बस्तरवासी आज भी उनके बलिदान को याद करते हैं.
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