Cow Dung Bricks: गोबर से बनी ईंट से राहत भी, रोजगार भी, महिलाओं को हो रही बंपर कमाई
अंबिकापुर में गोबर से बनी ईंट न केवल अलाव का काम कर रही है बल्कि इससे रोजगार के अवसर भी तैयार हो रहे हैं. यहां जानें कैसे तैयार किये जाते हैं गोबर से ईंट.
Cow Dung Bricks: सरगुजा जिला मुख्यालय अम्बिकापुर 10 लाख की आबादी वाले शहरों में देश का दूसरा सबसे स्वच्छ शहर है. वैसे ये केवल स्वच्छ शहर ही नहीं है. इस शहर में विभिन्न के प्रकार के ऐसे काम भी चल रहे हैं. जो दूसरे शहरों के हिसाब से अलग और बेमिशाल हैं. इसी में एक काम ऐसा है जो रोजगार के भी दे रहा है और कड़कडाती ठंड में लोगों को राहत भी दे रहा है. दरअसल अम्बिकापुर में गोबर से ब्रिक्स (ईंट) बनाए जा रहे हैं. जो अपने आप में देश का पहला प्रयोग माना जा रहा है.
बन रहा है रोजगार का सशक्त माध्यम
अम्बिकापुर नगर पालिक निगम निगम में गोबर को गोधन बनाने की अनुकरणीय प्रयास किया जा रहा है. पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से पहले गोबर से खाद बनाने का काम शुरु हुआ था. जिसके बाद अब गोबर से ईंट बनाने का काम किया जा रहा है. शहर के घुटरापारा स्थित शहरी गौठान में मल्टी एक्टिविटी के तहत महिला स्वंय सहायता समूह की महिलाएं ये ब्रिक्स बनाने का काम कर रही हैं. जिससे महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है औऱ लोगों को ठंड से राहत भी मिल रही है. दरअसल महिला समूह द्वारा बनाए जाने वाले गोबर के ब्रिक्स में गोबर औऱ कुछ मात्रा में लकड़ी का बुरादा मिलाकर उसे मशीन के माध्यम से ईंट का रूप दिया जा रहा है. जिसको ठंड के दिनों में अलाव के लिए निगम खरीद रहा है. दरअसल इस ब्रिक्स की बिक्री 800 रुपए क्विंटल में की जा रही है. निगम प्रबंधन से प्राप्त जानकारी के मुताबिक पिछले वर्ष समूह की महिलाओं को इससे 50 हजार रुपए की कमाई भी हुई है. वहीं इस साल अभी तक 30 हजार रुपए से ज्यादा के गोबर ब्रिक्स की ब्रिकी समूह की महिलाएं कर चुकी हैं. गौरतलब है कि निगम प्रबंधन हर रोज तीन क्विंटल गोबर से बनी ब्रिक निगम प्रबंधन समूह की महिलाओं से खरीद रहा है.
अलाव के रूप में उपयोग
नगर निगम प्रबंधन द्वारा इस कार्य में महिलाओं के सहयोग के लिए घुटरापारा शहरी गोठान में दो मशीने लगवाई हैं. इन्हीं मशीनों से गोबर औऱ लकड़ी के बुरादे को मिलाकर ईंट का आकार दिया जा रहा है. जिसके बाद निगम प्रबंधन इन्हें खरीद कर शहर के चौक चौराहों औऱ सार्वजनिक स्थलों पर पहुंचा रही है. जहां इसे जलाकर अलाव के रूप में आम लोग औऱ मुशाफिर अपनी ठंड मिटा रहे हैं. इससे पहले निगम प्रबंधन लकड़ियों को खरीद कर चौक चौराहों पर जवलाता रहा है. लेकिन अब महिला समूह द्वारा तैयार किए गोबर के ब्रिक्स अलाव के रूप में काम आ रहा है. सबसे खास बात है कि इस कार्य के शुरू होने के बाद एक तरफ जहां पर्यावरण संरक्षण की ओर एक कदम बढ़ा है. तो वहीं इस प्रयोग से पेड़ काटकर जलाने वाला मलाल भी नहीं रहता है.
कैसे बनता है गोबर का ब्रिक्स
सरकार द्वारा गोधन न्याय योजना के तहत गौठान और शहरी क्षेत्र में कई स्थानों में गोबर खरीदने की व्यवस्था की गई है. इसलिए गोबर ब्रिक्स बनाने के लिए घुटरापारा गौठान में इकट्ठा गोबर और लकड़ी मिलों से निकलने वाले बुरादे (वेस्टेज) को मिक्स किया जाता है. एक पैमाने के अनुसार 20 किलो गोबर में 3 किलो लकड़ी का बुरादा मिलाया जाता है. फिर इस इन दोनों के मिश्रण को गो-कास्ट मशीन में डाला जाता है. जिसके बाद मशीन इस मिश्रण को ईंट के आकार में 3 फिट का ब्रिक्स बना देती है. काम यही पर समाप्त नहीं होता है. इस पाइपनुमा ब्रिक्स के मशीन से निकलने के बाद समूह की महिलाएं इस ब्रिक्स को करीब तीन दिन तक धूप में सुखाती हैं. सूखने के बाद ये ब्रिक्स बिकने औऱ उपयोग के लिए तैयार हो जाता है.
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