Ambikapur Coal Block: छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जिले के उदयपुर इलाके मे स्थापित होने वाली परसा कोल खदान के खिलाफ विरोध के स्वर थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. प्रभावित गांव के लोग पिछले 2 मार्च से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी दौरान कोल खदान खुलने की अनुमति मिलने के बाद नाराज स्थानिय आदिवासी समाज के लोगो ने एक विरोध रैली भी निकाली थी. रैली के दौरान खदान निर्माण स्थल में मौजूद काफी सामान को ग्रामीणो ने आग के हवाले कर दिया और तोड- फोड भी की थी.इस घटना के बाद  प्रदर्शन मे शामिल 10 आदिवासी वर्ग के लोगों के खिलाफ उदयपुर पुलिस ने अपराध भी दर्ज कर लिया था.


हालांकि इस पूरी प्रकिया मे पुलिस औऱ प्रशासन की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. क्योकि प्रशासन एक तरफ जहां खदान खुलवाने के पक्ष मे ग्रामीणों पर दबाव बना रहा है, तो वही ग्रामीणो की मांग पर प्रशासन कोई विचार नहीं कर रहा है. विरोध के इस क्रम मे आज विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर ग्रामीणो ने पेड से लिपटकर, पेडों को बचाने का संकल्प लिया. जो खदान खोलने के लिए काट दिए जाएगें.


आदिवासी समाज के लोग कर रहे खादान का विरोध
बता दें कि आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले के परसा कोल खनन परियोजना की शुरूआत की सभी प्रकिया पूर्ण हो चुकी है. जिसके बाद प्रबंधन पुलिस औऱ प्रशासन की मदद से उत्खनन का काम शुरु करने का प्रयास कर रहा है. लेकिन इस प्रयास के बीच पिछले दो महीने से लगातार धऱना प्रदर्शन कर रहे आदिवासी समाज के लोग खदान के विरोध मे उतर आए हैं और किसी भी हाल मे अपना जल, जंगल, जमीन देने को तैयार नहीं हैं. खदान का लंबे अर्से से विरोध कर रहे ग्रामीणो के मुताबिक निजी क्षेत्र की इस कोल परियोजना के लिए प्रशासन नें फर्जी तरीके से ग्राम सभा की अनुमति प्राप्त की है. गांव के लोग अपनी जमीन किसी भी हाल मे कोल खदान के लिए देने को तैयार नहीं है. आदिवासियो ने कलेक्टर के सामने कहा  कि "जान दे देंगे पर जमीन नहीं देंगे".


जिला प्रशासन ने ग्रामीणों की समझाइश के लिए लगाई थी जन समस्या चौपाल
ग्रामीणो के विरोध को देखते हुए बीते मंगलवार को कलेक्टर संजीव कुमार झा, एसपी अमित तुकाराम काम्बले औऱ डीएफओ पंकज कमल समेत जिले के तमाम आला अधिकारी ने प्रभावित गांव फेतहपुर मे औऱ बुधवार को घाटबर्रा मे कैप किया. इन दोनो जगह प्रशासन ने जन समस्या चौपाल लगाया. जिसमे ग्रामीणो ने अपनी शिकायत से ना केवल तय कर दिया कि वो अपनी बात पर अडिग हैं. बल्कि प्रशासन को ये भी समझा दिया कि कुछ दिन पहले जो कथित लोग  गांव के निवासी बनकर कलेक्टर कार्यालय गए थे.और खदान खुलवाने की मांग कर रहे थे वो बाहरी थे.


खदान का समर्थन कर रहे लोग बाहरी
गौरतलब है कि कुछ दिनो पहले काफी संख्या मे ग्रामीण कलेक्टर संजीव झा के दफ्तर पहुंचे थे और उन्होने खदान को जल्द खुलवाने की मांग करते हुए कलेक्टर को ज्ञापन दिया था. लेकिन अब जब गांव के लोग इसके विरोध मे उतरे गए हैं. तो ऐसे मे ग्रामीणो के पास पहुंचे प्रशासन को ग्रामीणो ने आइना दिखा दिया. दरअसल ग्रामीण ने मंगलवार के कैंप मे कलेक्टर साहब को कहा कि सर इस कैंप मे गांव के लोग हैं. लेकिन खदान खोलने के समर्थन मे एक भी गांव वाला आपके सामने नहीं आय़ा. जबकि विरोध मे सभी ग्रामीण खडें हैं. मतलब खदान का समर्थन कर रहे लोग हमारे गांव के नहीं है. वो सभी बाहरी हैं जिनसे समर्थन दिलवाया जा रहा है.


विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर ग्रामीणों ने लिया संकल्प
कलेक्टर के जन समस्या चौपाल मे फतेहपुर की अनीता पोर्ते ने कलेक्टर से कहा कि, हमने आपको कई बार आवेदन दिया है लेकिन आपने कोई कार्यवाही नहीं की है. इस बार दिए आवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई तो ना जाने क्या हो जाएगा. इसके बाद अनीता ने कहा आप हमसे पूछते हैं कि हम क्या हैं. तो हम लोग बोलते हैं कि आप कलेक्टर हैं. लेकिन जब हम पूछते हैं तो आप क्यो नहीं बताते हैं कि हम आदिवासी हैं. हमारे जल जंगल जमीन को बचाने के लिए आपको हमारे साथ खडा रहना चाहिए. लेकिन आप दूसरे तरफ खडे रहते हैं. अनीता पोर्ते ने कहा जब हमारी जमीन नहीं रहेगी तो मै अपने बच्चो का जाति प्रमाण पत्र कैसे बनवाऊंगी. कैसे सेटलमेंट लाऊंगी. औऱ कहां से अपने बच्चो को पढा पाउंगी. इसके बाद  ग्रामीणो द्वारा शुक्रवार को विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर कोल खदान के लिए काटे जाने वाले पेडो को पकडकर ये संकल्प लिया है कि हम खदान के लिए पेडो को नहीं कटने देंगें.


कलेक्टर ने महिलाओं को दिया रोजगार का लोभ
इस मामले मे प्रशासनिक प्रतिक्रिया लेने के लिए कई बार कलेक्टर संजीव कुमार झा से संपर्क किया गया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी है. हालांति जन समस्या चौपाल मे कलेक्टर माइक से ग्रामीणो औऱ महिलाओ को दूसरे ढंग से समझाते सुने गए. कोल खदान के विरोध की समस्या वाली चौपाल मे कलेक्टर माइक पर महिलाओ को मनाने का अलग ढंग अपना रहे हैं. वो महिलाओ से उनके समूह औऱ रोजगार की बात कह रहे हैं. जबकि महिलाए और आदिवासी समाज के लोगो का कहना है कि फिलहाल हमे हमारा जल जंगल जमीन हमे दिख रहा है. बांकी हमे कुछ नहीं दिख रहा है.  


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