Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के चारों विधानसभा में दो सीट लैलूंगा और धरमजयगढ़ जहां एसटी के लिए आरक्षित हैं. वहीं रायगढ़ और खरसिया सीट सामान्य मुक्त है. रायगढ़ विधानसभा के इतिहास पर गौर करें तो यहां अब तक किसी भी पार्टी ने महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं जताया है. वहीं खरसिया विधानसभा में एक बार बीते 2008 में बीजेपी ने ओबीसी महिला पर भरोसा जताया था और लक्ष्मी देवी पटेल को टिकट दिया था. हालांकि वह चुनाव हार गई थीं. इसके बाद से खरसिया में भी अब तक किसी भी पार्टी ने महिला प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा है. 


दूसरी ओर खरसिया में अब तक जहां दोनों ही पार्टी केवल ओबीसी (OBC) को टिकट देते आए हैं. वहीं रायगढ़ (Raigarh) विधानसभा में 2008 के पहले तक किसी भी पार्टी ने ओबीसी को मौका नहीं दिया था. 2008 में कांग्रेस (Congress) की ओर से डॉ शक्राजीत नायक को टिकट देकर पहली बार ओबीसी कार्ड खेला था और इसमें कांग्रेस को सफलता भी मिली थी. उस दौर में डॉ शक्राजीत नायक ने रनिंग विधायक विजय अग्रवाल को परास्त कर यहां से विजयी हुए थे. इसके बाद से कांग्रेस ने तो ओबीसी को ही टिकट दिया है. लेकिन बीजेपी (BJP) पहली बार यहां से ओबीसी को मैदान में उतारा है. यानी दोनों ही शीर्ष पार्टी कांग्रेस-बीजेपी ने इस बार ओबीसी को चुनावी रण में उतारा है.


कांग्रेस-बीजेपी ने दिया ओबीसी को टिकट


बीजेपी ने पहली बार ओबीसी को रामगढ़ विधानसभा से टिकट दिया है. खरसिया में दोनों ही पार्टी ने ओबीसी को टिकट दिया है. लेकिन किसी भी पार्टी ने महिलाओं को टिकट नहीं दिया है. अविभाजित रायगढ़ जिले में पांच विधानसभा हुआ करता था. साल भर पहले सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला बनने के बाद सारंगढ़ विधानसभा अलग हो गया है.


हालांकि सारंगढ़ विधानसभा सीट एससी के लिए सुरक्षित सीट है. ऐसे में अब रायगढ़ जिले में केवल चार विधानसभा लैलूंगा, रायगढ़, खरसिया और धरमजयगढ़ विधानसभा शामिल हैं. लैलूंगा (Lailunga) और धरमजयगढ़ (Dharamjaygarh) दोनों सीट एसटी (ST) के सुरक्षित सीट है. वहीं रायगढ़ और खरसिया (Kharsia) विधानसभा सीट सामान्य मुक्त है.


किसी भी पार्टी ने महिला प्रत्याशी को नहीं उतारा मौदान में 


खरसिया विधानसभा का आविर्भाव 1977 में हुआ था. तब से यहां से दोनों ही पार्टी केवल ओबीसी को ही टिकट दे रहे हैं. जबकि इसके उलट रायगढ़ विधानसभा में 2008 के पहले तक ओबीसी को टिकट दिया ही नहीं गया था. खास बात यह है कि 2008 में खरसिया विधानसभा को छोड़ दें तो दोनों ही पार्टी किसी महिला प्रत्याशियों को मैदान में नहीं उतारा है. 2008 में बीजेपी ओबीसी महिला लक्ष्मी देवी पटेल को टिकट तो दिया था, लेकिन नंदकुमार पटेल ने उनको 33 हजार 428 मतों के अंतर से परास्त कर दिया था. इसके बाद से खरसिया में भी कोई भी पार्टी की ओर से महिलाओं को नहीं उतारा गया है.


पहली बार बीजेपी ने किया बदलाव


ओबीसी के मामले में कांग्रेस ने तो 2008 के विधानसभा चुनाव से ही प्रयोग करना शुरू कर दिया है. वहीं बीजेपी अब तक इससे अछूता ही रहा है. हालांकि इस बार यानी 2023 के चुनाव में बीजेपी ने भी इस कार्ड को आजमाने की कोशिश किया है और ओबीसी के ओपी चौधरी को मैदान में उतारा है. कांग्रेस तो 2008 से ही यह प्रयोग कर रही है. ऐसे में कांग्रेस ने इस बार भी ओबीसी पर भरोसा जताते हुए सीटिंग विधायक प्रकाश नायक को चुनावी रण में उतारा है. यानी इस बार दो ओबीसी के बीच मुकाबला काफी दिलचस्प होने की बात कही जा रही है. 


दोनों एक ही समाज के 


कांग्रेस और बीजेपी द्वारा इस विधानसभा चुनाव में ओबीसी कार्ड खेला गया है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों प्रत्याशी एक ही समाज के हैं. ऐसे में इस समाज के लोग भी अभी असमंजस की स्थिति में हैं. इस विधानसभा में 292 मतदान केंद्र हैं. इसमें 59 मतदान केंद्र सारंगढ़ जिले के सरिया तहसील में है. वहीं शहरी क्षेत्र में 113 मतदान केंद्र हैं. पूर्वांचल की बात करें तो करीब 31 पोलिंग सेंटर है. वहीं पुसौर तहसील में करीब 89 मतदान केंद्र रायगढ़ विधानसभा में शामिल है. सभी तहसीलों में इस समाज के लोग निवास करते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि इस सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प होगा.


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