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Chhattisgarh Election 2023: बीजेपी और कांग्रेस के बीच यहां कांटे की टक्कर, जानें- कांकेर जिले के अंतागढ़ विधानसभा की पूरी प्रोफाइल
Chhattisgarh Election 2023 News: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में इस बार के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने का अनुमान लगाया जा रहा है. जाने पूरी राजनीति समीकरण.
Chhattisgarh Elections 2023: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के 3 विधानसभा में से एक अंतागढ़ विधानसभा एसटी के लिए आरक्षित है, आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने की वजह से इस सीट को अनुसूचित जनजाति के वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है, पूरे बस्तर संभाग में सबसे ज्यादा मतदाताओ की संख्या इसी विधानसभा में है, जंगल और पहाड़ों से घिरा अंतागढ़ विधानसभा भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, इस इलाके में नक्सली कई बड़ी वारदातों को अंजाम दे चुके हैं.
हालांकि पिछले कुछ सालों में अंतागढ़ की तस्वीर बदली है और यहां ग्रामीणों के जीवन शैली में भी सुधार आया है, अंतागढ़ को हमेशा से ही बीजेपी का गढ़ कहा जाता है लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अनूप नाग ने इस विधानसभा सीट से चुनाव जीता और वर्तमान में विधायक है, वहीं इस बार के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने का अनुमान लगाया जा रहा है, हालांकि ऐसा बताया जा रहा है कि एक बार फिर से अंतागढ़ के विधानसभा सीट से कांग्रेस से अनूप नाग को ही टिकट मिल सकता है.
कई गांव मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं
वहीं बीजेपी से किसे टिकट मिल सकता है इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन पिछले तीन चुनाव से लगातार बीजेपी यहां विक्रम उसेंडी को टिकट देते आ रही है, यहां के रहवासी खेती किसानी और वनों से मिलने वाली वनोपज पर ही आश्रित है, हालांकि आज भी इस विधानसभा के कई गांव ऐसे हैं जो मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं. वहीं नक्सल समस्या दूर करने के लिए अंतागढ़ में नए सीआरपीएफ कैंप भी खोले गए हैं, और कुछ हद तक नक्सली इस इलाके से बैकफुट पर भी हैं, इसके बावजूद इस क्षेत्र में जो विकास होना था वह विकास नहीं हो पाया है.
रिफ्यूजियों को अंतागढ़ विधानसभा के पखांजूर क्षेत्र में बसाया गया
वहीं विधानसभा में खास बात यह है कि पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग करने के बाद बांग्लादेश के रिफ्यूजियों को अंतागढ़ विधानसभा के पखांजूर क्षेत्र में बसाया गया, जो यहां अब बंगीय समुदाय के नाम से जाने जाते हैं, मतदाताओं में इनकी संख्या 50 % के लगभग है, कहा जाता है कि अंतागढ़ विधानसभा में पखांजूर के बंगीय समुदाय के मतदाताओं के वोट से ही प्रत्याशियों का हार और जीत तय होता हैं.
विधानसभा से जुड़े आंकड़े-
अंतागढ़ विधानसभा में 2018 के चुनाव में वोट प्रतिशत 74% रहा . यहां कुल मतदाता की संख्या 1 लाख 65 हजार 148 है.
महिला मतदाता - 84,182
पुरुष मतदाता - 80,958
तृतीय लिंग - 8 वोटर है
गोंड समुदाय के 50 प्रतिशत वोटर है
अंतागढ़ विधानसभा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. जहां गोंड समुदाय के 50 प्रतिशत वोटर है, ओबीसी समुदाय के 20 प्रतिशत वोट है. बावजूद इसके बंग समुदाय यहां किंगमेकर का भूमिका निभाते है, पूरे अंतागढ़ में बंग समुदाय का 50 प्रतिशत वोट बैंक है,इसलिए इस विधानसभा में किंगमेकर बंग समुदाय को माना जाता है.
यहां कुल मतदान केंद्र - 230 है
जातिगत समीकरण
एसटी - 60%
ओबीसी 30%
सामान्य 10%
राजनीति समीकरण
राजनीति समीकरण की बात की जाए तो अंतागढ़ विधानसभा को हमेशा से ही बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी अनूप नाग को जीत मिली, अंतागढ़ विधानसभा के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार गौरव श्रीवास्तव ने बताया कि अंतागढ़ विधानसभा बीजेपी का गढ़ रहा है. इस विधानसभा में बीजेपी के बड़े कद्दावर नेता विक्रम उसेंडी ने लगातार चुनाव जीता है, लेकिन 2018 में तख्ता पलटने के साथ कांग्रेस के प्रत्याशी ने 13 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीता और इन 5 सालों में कांकेर विधानसभा कांग्रेस का गढ़ बन गया.
मंतूराम पवार को 5 हजार वोटो के अंतर से हराया
वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विक्रम उसेंडी को और कांग्रेस से मंतूराम पवार को टिकट दिया गया, जिसमें विक्रम उसेंडी ने मंतूराम पवार को 5 हजार वोटो के अंतर से हराया, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांकेर लोकसभा से विक्रम उसेंडी को टिकट मिलने के बाद इस विधानसभा में उप चुनाव किया गया ,जिसमें बीजेपी से भोजराम नाग को और कांग्रेस से मंतूराम पवार को दोबारा टिकट दिया गया, लेकिन चुनाव के अंतिम समय में मंतूराम पवार ने नाम वापस लेकर सबको चौंका दिया था.
पिछले चार चुनाव में बीजेपी का ही गढ़ रहा
हालांकि उन्होंने नाम वापस क्यों लिया था इसको लेकर कांग्रेस की अंतरकलः वजह बताई गई, इसके बाद बीजेपी के भोजराम नाग और अंबेडकर पार्टी के रूपधर पूढ़ो के बीच मुकाबला हुआ और इस चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी भोजराम नाग ने करीब 50 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीत लिया. वहीं 2008 के चुनाव में भी विक्रम उसेंडी ने मंतूराम पवार को 91 वोटो के अंतर से हराया, इससे पहले भी 2003 के चुनाव में बीजेपी के ही प्रत्याशी विक्रम उसेंडी ने चुनाव जीता. कुल मिलाकर पिछले चार चुनाव में अंतागढ़ विधानसभा बीजेपी का ही गढ़ रहा है.
विधानसभा का इतिहास
अंतागढ़ विधानसभा 1951 में अस्तित्व में आया उसके बाद लगातार इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी ने चुनाव जीता लेकिन 1993 में बीजेपी ने चुनाव जीता और 1998 में हालांकि बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा ,लेकिन 2003 के चुनाव के बाद से लगातार 2018 के चुनाव तक अंतागढ़ विधानसभा में बीजेपी के ही प्रत्याशी चुनाव जीतते आए, और 2018 के चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस का खाता खुला वर्तमान में इस विधानसभा से अनूप नाग विधायक हैं, और कहा जा रहा है कि इस विधानसभा से दोबारा उन्हें टिकट दिया जा सकता है.
इस नदी से अपनी खेतो का सिंचाई कर पाते है
हालांकि बीजेपी के प्रत्याशियों को लेकर अभी भी संशय बना हुआ है, इस सीट से भोजराम नाग, विक्रम उसेंडी और बीजेपी के नए दावेदार भी चुनाव के लिए अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. अंतागढ़ विधानसभा में देवनी डोकरी मंदिर स्थापित है जो सैकड़ो साल पुरानी मंदिर है. इस मंदिर से अंतागढ़ वासियों के साथ ही आसपास के लोगों का श्रद्धा जुड़ा हुआ है. यहां के रहवासी सबसे ज्यादा चापड़ा चटनी के साथ सल्फी का सेवन करते है. इस विधानसभा में जोगी धारा नदी बहती है जिससे कछनार एरिया के लोग इस नदी से अपनी खेतो का सिंचाई कर पाते है. इस क्षेत्र में आज़ादी से पहले से ही अस्पताल और थाना मौजुद है.
स्थानीय मुद्दे-
1. अंतागढ़ विधानसभा में सबसे अधिक पेयजल की परेशानी बनी हुई है, ड्राई जोन क्षेत्र होने की वजह से यहां सरकार की नल जल योजना ,जल जीवन मिशन योजना काम नहीं कर रही है, इस वजह से यहां के अधिकतर शहर और ग्रामवासी कुएं के पानी पर आश्रित है ,गर्मी के दिनों में इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों को पेयजल के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है... वही यहां के रहवासी झरिया का पानी पीने को मजबूर होते हैं.
2. ग्रामीण किसानों के द्वारा सिंचाई के लिए नदी किनारे बिजली खंभा लगाने की मांग लंबे समय से है, लेकिन अब तक यह मांग पूरा नही हुआ है, बिजली के खंभे नही गढ़ने की वजह से मोटर पंप का लाभ नहीं ले पा रहे हैं, ऐसे में बरसात के पानी पर भी इन्हें निर्भर रहना पड़ता है.
3. वही सड़क की परेशानी भी इस विधानसभा में बनी हुई है. आज भी पक्की सड़क नहीं बन पाई है ,जिस वजह से सिंगल लाइन से यहां की जनता परेशान है, स्टेट हाईवे का चौड़ीकरण का काम भी लंबे समय से रुका हुआ है, लिहाजा आज भी मुरूम की सड़क और सीसी सड़क में ही यहां की जनता सफर करने को मजबूर है...
4. अंतागढ़ विधानसभा नक्सल प्रभावित और संवेदनशील क्षेत्र है. विधानसभा अंतर्गत आने वाले कोयलीबेड़ा, अंतागढ़, छोटेबेटिया, बांदे जैसे क्षेत्र संवेदनशील होने के चलते आज भी इस गांव के रहवासी विकास को तरस रहे है, सड़क, पुल ,पुलिया के अभाव में ग्रामीण आज भी इसके मोहताज है, विधानसभा अंतर्गत आने वाले स्कूलों-आश्रमों की स्थिति आज भी जर्जर है, टपकते छतों में बैठकर स्कूली बच्चे पढ़ने को मजबूर है, अंतागढ़ नारायणपुर स्टेट हाइवे मार्ग चौड़ीकरण की मांग ग्रामीण लगातार कर रहे है. इस सड़क से माइंस की भारी वाहन गुजरते हैं, ग्रामीण लागातार इस मांग को लेकर आंदोलन भी कर रहे हैं,
5. वहीं रावघाट माइन्स भी इसी विधानसभा क्षेत्र में है. जहां ग्रामीण को वादा के अनुरूप स्कूल, असप्ताल नहीं मिल रहा है, विस्थापन इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है,
6. वही अब धर्मांतरण भी इस विधानसभा की एक बड़ी समस्या बनकर इस क्षेत्र में उभर कर आ रही है, इस विधानसभा के कई क्षेत्रों में लगातार हो रहे धर्मांतरण को रोकने को एक ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है जिस वजह से यह भी सबसे बड़ा स्थानीय मुद्दा बना हुआ है.
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
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