Chhattisgarh Election 2023: रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट बीजेपी का वो अभेद किला, जिसे अभी तक भेद नहीं पाई कांग्रेस, जानिए वजह
Chhattisgarh Politics: रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट बीजेपी के लिए हमेशा से सेट रही है. वहीं कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज नेता आए, लेकिन रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट को पतह नहीं पाए.
Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) चुनावी मुहाने पर खड़ा है. कांग्रेस (Congress) 2018 की जीत को बरकरार रखने के लिए संभागीय सम्मेलन कर रणनीति बना रही है, लेकिन एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां कांग्रेसी चुनाव लड़ने से घबराते हैं. इसे बीजेपी का अभेद किला माना जाता है. इस सीट पर पिछले 33 साल से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा है. वहीं बीजेपी (BJP) की तरफ से एक ही विधायक सात बार इस विधानसभा सीट से चुनाव जीतने का रिकार्ड बना चुके हैं.
दरअसल, हम रायपुर (Raipur)दक्षिण विधानसभा सीट की बात कर रहे हैं. ये सीट बीजेपी के लिए हमेशा से सेट रही है. वहीं कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज नेता आए, लेकिन रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट को पतह नहीं पाए. यहां कांग्रेस के सारे राजनीतिक अस्त्र धरे के धरे रह गए. 2018 विधानसभा चुनाव के आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी के दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) 17 हजार से अधिक वोट से जीतकर सातवीं बार छत्तीसगढ़ विधानसभा में पहुंचे.
क्या है विधानसभा सीट का इतिहास
आपको बता दें की राज्यगठन के पहले ये पूरा इलाका केवल एक सीट का हुआ करता था. अभी वर्तमान में रायपुर सिटी में चार विधानसभा सीटे हैं, लेकिन पहले केवल एक ही सीट हुआ करती थी. तब से ही बृजमोहन अग्रवाल यहां के विधायक हैं. बृजमोहन अग्रवाल 1990 में पहली बार अविभाजित मध्य प्रदेश में विधायक बनें. इसके बाद भी वो 1993,1998 में भी अविभाजित मध्य प्रदेश में विधायक बनें. फिर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वो लगातार चार बार 2003, 2008, 2013 और 2018 में चुनाव जीत चुके हैं.
इस सीट का क्या है राजनीतिक समीकरण
रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है. 33 साल से एक ही व्यक्ति इस सीट विधायक बन रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार नागेंद्र वर्मा ने बताया कि रायपुर दक्षिण ऐसी सीट है, जहां हर बार दर्जन भर से ज्यादा प्रत्याशी मैदान में होते हैं, लेकिन टक्कर केवल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है. डमी कैंडिडेट का खेल भी रायपुर दक्षिण विधानसभा में देखने को मिलता है. खास बात ये है कि यहां बृजमोहन अग्रवाल पार्टी नहीं नेतृत्व के दम पर चुनाव जीत जाते हैं. यहां कोई जातिगत समीकरण भी काम नहीं आता. यहां पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था दिखाई देती है. कई पीढ़ियों से वोटर बृजमोहन अग्रवाल को वोट दे रहे हैं. बृजमोहन अग्रवाल की यहां के हर परिवार में पहुंच है. कांग्रेस इस सीट पर आती तो है और चुनाव के पहले दम भी दिखाती है, लेकिन बृजमोहन के रणनीति के सामने सब फेल हो जाते हैं. यहां बृजमोहन का घरेलू संगठन काम करता है. इसलिए अब कांग्रेस भी इस सीट के लिए ज्यादा गंभीर नजर नहीं आती.
लोकल मुद्दे क्या हैं ?
रायपुर सिटी का सबसे ज्यादा ट्रैफिक वाला इलाका है. यहां रोजाना लाखों लोगों की आवाजाही होती है. इसलिए रायपुर दक्षिण इलाके में ट्रैफिक जाम की बड़ी समस्या कई साल से बनी हुई है. यहां सड़क किनारे बाजार लगने से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है. इसका स्थाई समाधान आज तक नहीं निकाला जा सका है. यहां की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है. यहां बाहर से लोग काम करने नौकरी की तलाश में आते हैं. यहां होने वाले विकास कार्यों की रफ्तार भी स्लो है. सड़कें जर्जर होती जा रही हैं. वहीं बारिश के मौसम में जल भराव की भी स्थिति नजर आती है.
2018 में 61 फीसदी मतदाता ही मतदान करने पहुंचे
रायपुर दक्षिण विधानसभाअन रिजर्व सीट है. 2018 के चुनाव परिणाम के अनुसार इस सीट में कुल मतदाता 2 लाख 38 हजार 780 हैं, लेकिन 2018 में यहां 1 लाख 47 हजार 228 लोगों ने मतदान किया. यानी 61 फीसदी मतदाता ही मतदान करने पहुंचे थे. इसमें से बृजमोहन अग्रवाल को सबसे ज्यादा 77 हजार 589 वोट यानी 52.70 फीसदी वोट मिले. दूसरी स्थान पर कांग्रेस पार्टी रही. कांग्रेस के प्रत्याशी कन्हैया अग्रवाल को 40.82 फीसदी वोट मिले.
वहीं तीसरे स्थान पर नोटा ने अपनी जगह बनाई. यानी 1514 लोगों ने किसी को वोट नहीं किया और चौथे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी उमेश दास मानिकपुरी को 1514 वोट मिले. इसमें खास बात ये भी है की पिछली बार यहां 90 हजार से अधिक मतदाताओं ने अपने वोट का प्रयोग ही नहीं किया.
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