Chhatisgarh Assembly Election 2023: विधानसभा चुनाव में सरगुजा संभाग के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हाथियों के दल बड़ी समस्या निर्मित कर सकते हैं. हाथियों के रहन-सहन एवं भ्रमण के समय में बड़ा बदलाव आया है. हाथियों के नियंत्रण के लिए कारगर पहल नहीं की गई तो मतदान पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. तीन दशक पूर्व झारखण्ड एवं ओड़िसा से पहुंचे हाथियों ने अब सरगुजा सहित पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गए हैं तथा छत्तीसगढ़ को अपना स्थाई रहवास क्षेत्र बना लिया है.


हाथियों के अलग-अलग दल अच्छे भविष्य की तलाश में मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन छत्तीसढ़ के सुरक्षित वनों को नहीं छोड़ना चाहते. हाथियों के दल कुछ समय के लिए पड़ोसी राज्यों का रूख करते हैं लेकिन कुछ ही महीनों में घूम-फिर कर छत्तीसगढ़ वापस लौट आते हैं.


चारा-पानी के लिए हाथियों के आवादी क्षेत्र में भटक रहे हैं


मानव हाथी द्वंद को रोकने के साथ ही शासन एवं विभाग के तरफ से लगातार प्रयोग किए जा रहे हैं, लेकिन अभी तक इस बड़ी समस्या का स्थायी हल नहीं निकल पाया है. शासन के तरफ से आपसी संघर्ष एवं जनहानि को रोकने की दिशा में जगह-जगह एलिफेंट कैरिडोर का चिन्हांकन किया गया है लेकिन कैरिडोर में हाथियों के उपयुक्त चारा-पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण हाथियों के दल आबादी क्षेत्र के इर्द-गिर्द भटक रहे हैं. हाल के वर्षों में हाथियों के भोजन चक्र, भ्रमण काल, व्यवहार एवं आदतों में बड़ा बदलाव आया है जो मतदान के समय बड़ी समस्या उत्पन्न कर सकता है.


मतदान के दिन हाथियों पर नियंत्रण जरूरी


पहले हाथी भोजन में प्राकृतिक वनस्पतियों एवं पेड़ों की छाल एवं डाल-पत्ते का उपयोग करते थे, लेकिन लम्बे समय तक आबादी क्षेत्र के निकट रहने के कारण अब धान, मक्का व सब्जियों की फसल हाथियों की खास पसंद बन गई है. हाथी घरों में रखे सुगंधित धान, चावल, महुआ एवं कच्ची शराब की खोज में लगातार घरों में तोड़-फोड़ मचा रहे हैं.


ग्रामीण जन जीवन में उपयोग होने वाली खाद्य सामग्रियां भी हाथियों की पसंद बन गई है. हाथी अब भ्रमण के लिए सूर्यास्त होने का इंतजार नहीं कर रहे हैं एवं शाम 2-3 बजे के मध्य आबादी क्षेत्र की ओर निकल जा रहे हैं. ऐसे में मतदान के दिन हाथियों को नियंत्रित करने और उन्हें आबादी क्षेत्र से दूर खदेड़ने की पहल नहीं हुई तो मतदान प्रभावित हो सकता है.


सरगुजा में हैं कई हाथी से प्रभावित क्षेत्र


सरगुजा संभाग के विभिन्न जिलों में सैकड़ो मतदान केंद्र जंगल के किनारे हैं. ऐसे में जंगल में हाथियों की मौजूदगी होने से हमेशा उनके हमला करने का खतरा बना रहेगा तथा सुरक्षा को लेकर मतदाताओं पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा. इस बड़े खतरे की तरफ अभी न तो प्रशासन का ध्यान हैं न ही राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को ही. सरगुजा में कई हाथी प्रभावित क्षेत्र ऐसे हैं जहां हाथियों की मौजूदगी के दौरान दिन में भी सड़क से गुजरने की मनाही होती है. ऐसी स्थिति में इन संवेदनशील क्षेत्रों में मतदान कराना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.


विभिन्न क्षेत्रों में 91 हाथी


वर्तमान में सरगुजा संभाग के विभिन्न क्षेत्रों में 91 हाथियों के अलग-अलग दल सक्रिय है. इस बार विभाग को पहली बार लम्बे समय तक तमोर पिंगला अभ्यारण्य में रोकने में सफलता मिली है. विभाग के तरफ से जंगल में हाथियों के पंसद का चारागाह व जलस्त्रोत विकसित करने के कारण ऐसा हुआ. अब प्राकृतिक चारा खत्म होने के कारण हाथियों के दल आबादी क्षेत्र की ओर बढ़ रहे है. तमोर पिंगला अभ्यारण्य में 9 हाथी बचे हैं, जो शीघ्र धान की फसल के लालच में आबादी क्षेत्र के निकट अवसर होगे.


इधर आबादी क्षेत्र के निकट सरगुजा अंतर्गत विकासखण्ड उदयपुर में 11 हाथी, मैनपाट के सोमावती कापू जंगल में 13 हाथी सक्रिय है. सूरजपुर जिला अंतर्गत प्रतापपुर में 7, सूरजपुर में 22 हाथी एवं धुई में 15 हाथी सक्रिय है. कोरिया जिला में 2 एवं जशपुर में 19 हाथियों का दल भ्रमण कर रहा है.


नियमित की जा रही मॉनिटरिंग


वर्तमान में वन अमला प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों को हाथियों के गतिविधि की जानकारी देकर उन्हें सुरक्षित स्थानों की ओर भागने के लिए प्रेरित करता है. चुनाव के दौरान वनकर्मियों के मतदान कार्य में व्यस्त होने के कारण ग्रामीणों को हाथियों की गतिविधि की जानकारी देने वाला भी कोई मौजूद नहीं रहेगा, जबकि हाथियों से सुरक्षा के लिए पुलिस एवं वन अमले का संयुक्त टास्क फोर्स गठित करने की जरूरत बताई जा रही है.


मुख्य वन संरक्षक नावेद सुजाउद्दीन ने बताया कि विभाग द्वारा हाथियों की नियमित मॉनिटरिंग की जा रही है. विधानसभा चुनाव में हाथियों से संभावित खतरे को देखते हुए वरिष्ठ कार्यालय के तरफ से आवश्यक पहल की जा रही है.


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