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Chhattisgarh Assembly Election: बस्तर संभाग के कांकेर विधानसभा सीट पर किसकी होगी जीत? जानें राजनीतिक समीकरण

Chhattisgarh Kanker Assembly: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर संभाग के 12 विधानसभा सीटों में से एक कांकेर विधानसभा बस्तर जिले के बाद सबसे बड़े जिले में के रूप में जाना जाता है.

Chhattisgarh Kanker Assembly: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर संभाग के 12 विधानसभा सीटों में से एक कांकेर विधानसभा बस्तर जिले के बाद सबसे बड़े जिले में के रूप में जाना जाता है.  सन 1998 में कांकेर को एक जिले के रूप में पहचान मिली. इस जिले का कुल क्षेत्रफल लगभग  5285.01 वर्ग किलोमीटर है. पहाड़ी इलाके में कांकेर शहर बसा हुआ है. कांकेर जिले में कांकेर, चारामा, नरहरपुर, भानुप्रतापुर, अंतागढ़, दुर्गुकोंदल, कोयलीबेडा नामक 7 तहसील हैं. वही गांवों की कुल संख्या 1004 है. राजस्व गांवों की संख्या 995 है जबकि वन गांव की संख्या 9 हैं. कांकेर विधानसभा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है और यहां के रहवासियों का भी मुख्य आय का स्त्रोत वनोंपज और खेती किसानी है. हालांकि बाकि विधानसभा के मुकाबले कांकेर विधानसभा में शिक्षित लोगों की संख्या ज्यादा है, लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा बेरोजगारी इस विधानसभा में है. राजनीतिक दृष्टिकोण से शुरुआत में इसे भाजपा का गढ़ माना जाता था लेकिन पिछले दो चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों को हार मिली है हालांकि कांकेर लोकसभा सीट में भाजपा के प्रत्याशी ही चुनाव जीतते आ रहे हैं.

विधानसभा से जुड़े आंकड़े
इस विधानसभा में आदिवासियों की संख्या ज्यादा होने की वजह से इस सीट से आदिवासी प्रत्याशी को मौका मिलता है. वर्तमान में कुल मतदाता 1 लाख 78 हजार है. इनमें से 51 फीसदी पुरूष मतदाता हैं और 49 फीसदी महिला मतदाता हैं. महिला मतदाताओं की संख्या- 85436 है. पुरुष मतदाताओं की संख्या- 92737 है. महिलाओ के मुकाबले पुरुषों की संख्या इस विधानसभा में ज्यादा है.

जातिगत समीकरण 
आदिवासी - 70 %
ओबीसी - 20 %
सामान्य - 10 %
कुल मतदान केंद्र की संख्या-  240 है. इनमें कई मतदान केंद्र अति संवेदनशील है.

कांकेर विधानसभा का इतिहास
कांकेर विधानसभा में 1 लाख 78 हजार  मतदाता है. यह क्षेत्र  ग्रामीण और शहरी इलाके में बसा हुआ है. हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. लेकिन पिछले 2 विधानसभा चुनाव में इस सीट में कांग्रेस का कब्जा रहा है. इस विधानसभा में जातिगत समीकरण का प्रभाव नहीं है.  2018 के चुनाव में विधायक की दावेदारी करने वाले कुल 11 प्रत्याशी मैदान में थे. भाजपा से हीरा मरकाम जिन्हें 49 हजार 249 वोट प्राप्त हुए थे, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी शिशुपाल सोरी ने 69 हजार 53 वोट पाकर अपनी जीत का डंका बजाया. जानकार हेमंत कश्यप ने कहा कि वर्तमान में भी विधायक शिशुपाल सोरी की कांकेर विधानसभा क्षेत्र में अच्छी पकड़ मानी जा रही है. हालांकि भाजपा ने भी अपने प्रत्याशी का नाम घोषित कर दिया है और आशाराम नेताम को इस विधानसभा से टिकट दिया है. वहीं माना जा रहा है कि कांग्रेस से दोबारा शिशुपाल सोरी को ही टिकट दिया जा सकता है. शिशुपाल सोरी वर्तमान में संसदीय सचिव भी हैं और सीएम भूपेश बघेल के करीबी भी बताए जाते हैं. ऐसे में दोबारा उनके टिकट देने को लेकर संभावनाएं पूरी तरह से बनी हुई है.

राजनीति समीकरण
राजनीति समीकरण की बात की जाए तो कांकेर विधानसभा को हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रत्याशी सुमित्रा मरकोले को जीत मिली. हालांकि 2013 और 2018  के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर बाजी मारी और वर्तमान में इस सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता कहे जाने वाले शिशुपाल सोरी विधायक हैं. कांकेर विधानसभा के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार विवेक श्रीवास्तव ने बताया कि कांकेर विधानसभा कांग्रेसियों का गढ़ रहा है इस विधानसभा में कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेताओं ने चुनाव जीता है. लेकिन 2008 में तख्ता पलटने के साथ भाजपा के प्रत्याशी ने भारी मतों से चुनाव हराया और इन 5 सालों में कांकेर विधानसभा  भाजपा का गढ़ बन गया. वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में दोनो पार्टी के प्रत्याशी के चेहरे बदले और भाजपा से संजय कोडोपी को चुनाव मैदान में उतारा गया और कांग्रेस से शंकर ध्रुव को टिकट दिया गया. शंकर ध्रुव ने करीब 4 हजार वोटो के अंतर से भाजपा के संजय कोडोपी को चुनाव हराया. जिसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से शिशुपाल सोरी को कांग्रेस ने टिकट दिया और भाजपा से हीरा मरकाम को टिकट मिला. इस चुनाव में भी भाजपा के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के शिशुपाल सोरी ने करीब 19 हजार 804 वोटो के अंतर से भाजपा के प्रत्याशी हीरू मरकाम को चुनाव हराया. अब तक इस विधानसभा में हुए चुनाव में दो बार भाजपा और दो बार कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत दर्ज किया है 2023 के विधानसभा चुनाव में इस सीट में कांटे की टक्कर होने का अनुमान लगाया जा रहा है.

राजनीतिक इतिहास
वरिष्ठ पत्रकार सूरज मंडल बताते हैं कि कांकेर विधानसभा को  शुरुआत में बीजेपी का गढ़ कहा जाता था, क्योंकि यहां के भाजपा के प्रत्याशियों ने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के प्रत्याशियों को काफी ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव हराया , पार्टी के साथ-साथ व्यक्ति विशेष को लेकर भी यहां की जनता वोट देते आई है ,हालांकि दोनों ही पार्टी के विधायकों ने कांकेर विधानसभा का विकास किया है, खासकर कांकेर का इलाका पर्यटन स्थल के रूप में जाने जाने की वजह से यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य दोनों ही सरकारों ने काफी अच्छे काम किए हैं, लेकिन जनता की माने तो यह भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन पिछले 2 चुनाव में लगातार कांग्रेस के प्रत्याशी भाजपा प्रत्याशियो को  भारी मतों के अंतर से चुनाव हरा रहे हैं, इस वजह से इस सीट में कांग्रेस  मजबूत दिखाई दे रही है छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद  कांकेर विधानसभा सीट भी राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और यहां के भाजपा और कांग्रेस के नेता भी अपने-अपने पार्टी में अच्छी पकड़ रखते हैं और सरकार बनने के साथ ही उन्हें अच्छी पद भी दी जाती है, वर्तमान में शिशुपाल सोरी  जो यहाँ के  विधायक हैं उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया है...

स्थानीय मुद्दे 
1. कांकेर विधानसभा में ऐसे कई ग्रामीण इलाके है जहां स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है, जिससे इस क्षेत्र के रहने वाले ग्रामीणों को कई किमी पैदल चलकर मरीजो को कंधे या कावड़ में बोकर  स्वास्थ केंद्रों और अस्पतालों तक पहुचाना पड़ता है.

2. कांकेर विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्रों   में रोड, नाली, पानी की समस्या लंबे समय से  बनी हुई है, कई पंचायतो में हाई स्कूल तक नही बने है, जिसको लेकर ग्रामीण कई बार विधायक से मांग कर चुके हैं. ग्रामीणों को मूलभूत  समस्याओं से सामना करना पड़ रहा है.

3. कांकेर  विधानसभा में बेरोजगारी भी एक सबसे बड़ी समस्या है. कई युवा शिक्षित बेरोजगार हैं. कांकेर में कोई फैक्ट्री या उद्योग नहीं होने की वजह से अधिकांश युवा कुली मजदूरी पर ही निर्भर हैं. हालांकि हर बार इन्हें रोजगार दिलाने का आश्वासन तो दिया जाता है, लेकिन रोजगार कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले सालों की तुलना में वर्तमान में बेरोजगार युवाओं की संख्या और तेजी से बढ़ी है.

4. इसके अलावा लंबे समय से कांकेर नेशनल हाईवे में दूध नदी में बड़ा पुल बनाने की मांग कर की जा रही है.  बारिश के मौसम में पुराना पूल जलमग्न हो जाने की वजह से कांकेर शहर के कई  इलाके  डूब जाते हैं. पुल पुलिया के निर्माण की मांग करने के बावजूद भी अब तक इन मांगों की अनदेखी हो रही है. यही वजह है कि बारिश के मौसम में कांकेर वासियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

5. वही सबसे बड़ी समस्या नक्सलवाद है. बस्तर की तरह कांकेर विधानसभा भी लंबे समय से नक्सल समस्या से जूझ रहा है. आए दिन यहां नक्सली वारदात आम बात हो चुकी है, इस वजह से अंदरूनी क्षेत्रों में सड़के नहीं बन पाई है. नक्सलियो द्वारा विकास कार्य के विरोध के चलते सरकारी भवन और सड़क निर्माण का कार्य लंबे समय से अटका हुआ है. खासकर अंदरूनी गांव में आजादी के 77 साल बाद भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओ के लिए तरस रहे हैं.

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