Chhattisgarh: नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित बीजापुर का सियासी समीकरण समझें, क्या हैं चुनावी मुद्दे?
Chhattisgarh Assembly Elections 2023: बीजापुर जिले में सबसे ज्यादा पुलिस कैंप और अर्ध सैनिक बल तैनात हैं. यहां तेंदूपत्ता की खऱीदी सबसे ज्यादा होती है. नक्सलवाद यहां अभी भी चुनौती है.
Chhattisgarh Assembly Elections: छत्तीसगढ़ का बीजापुर विधानसभा क्षेत्र सबसे घोर नक्सल प्रभवित क्षेत्रों में से एक है. सबसे ज्यादा आईईडी ब्लास्ट नक्सलियों ने बीजापुर विधानसभा में ही किए हैं. इस वजह से इस जिले में सबसे ज्यादा पुलिस कैम्प और अर्ध सैनिक बल तैनात हैं. बीजापुर जिला पहले दंतेवाड़ा जिले का हिस्सा था. 15 अगस्त 2001 को बीजापुर जिले का गठन किया गया. यह जिला छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी हिस्से में स्थित है. जिले का कुल क्षेत्रफल लगभग 6562.48 वर्ग किलो मीटर है. यहां चार विकासखंड हैं जिसमें बीजापुर, भैरमगढ़, भोपालपट्टनम और उसूर ब्लॉक शामिल हैं.
जिले के अधिकांश भाग में पहाड़िया हैं. वही इंद्रावती टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क इसी विधानसभा में स्थित है. यहां के निवासियों के मुख्य आय का साधन वनोपज है. यह विधानसभा घने जंगल से घिरा होने की वजह से यहां के आदिवासी ग्रामीण इन वनों से मिलने वाले वनोपज पर है निर्भर हैं. खासकर बीजापुर विधानसभा में ही सबसे ज्यादा तेंदूपत्ता की खरीदी होती है. साथ ही सबसे ज्यादा ग्रामीणों द्वारा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जाता है. इसके अलावा खेती किसानी यहां के ग्रामीणों के मुख्य आय का स्त्रोत है. इस जिले में मौजूद ताड़ का लोगों के घरेलू अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है. नक्सल दहशत की वजह से बीजापुर विधानसभा में एक भी बड़ी फैक्ट्री नहीं लग पाई और ना ही किसी बड़े कंपनी ने बीजापुर जिले में अपनी फैक्ट्री स्थापित करने में रुचि दिखाई. हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद इन 22 सालों में बीजापुर शहर का काफी विकास हुआ है. लेकिन इस जिले के अंदरूनी गांवो में आज भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओ की कमी से जूझ रहे हैं.
विधानसभा का इतिहास
यूं तो बस्तर में नक्सलवाद की समस्या 80 के दशक से बनी हुई है. लेकिन बंगाल के नक्सलबाड़ी से जन्मे नक्सलवाद ने बस्तर यानि दण्डकारण्य में बीजापुर के भद्रकाली के रास्ते तेलंगाना से होते हुए पहुंचा था. 80 के दशक से अब तक बीजापुर जिला नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. भले ही बीजापुर को नक्सलमुक्त करने की खातिर साल दर साल सुरक्षा बलों के कैम्पों में इजाफा हुआ है लेकिन जिले का आधा से ज्यादा इलाका नक्सलियों के प्रभाव से अछूता नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार गणेश मिश्रा बताते हैं कि बीजापुर के ग्रामीण इलाकों में स्थानीय स्तर पर बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. रोजगार के अभाव में हर साल हजारों आदिवासी जिनमें नाबालिग भी शामिल हैं वे पड़ोसी राज्य तेलंगाना में रोजगार पाने के लिए पलायन करते हैं. सलवा जुडूम के बाद बंद पड़े 200 से ज्यादा स्कूल दोबारा खुले लेकिन शिक्षकों का अभाव स्कूल बिल्डिंग का अभाव और पहुंच विहीन इलाकों ने शिक्षा के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं को बेपटरी कर रखा है. बीजापुर जिला अस्पताल में गम्भीर बीमारियों का उपचार सम्भव नहीं है. नतीजतन मरीज दूसरे शहरों की तरफ रुख करने को मजबूर होते हैं. वहीं जिले में सिंचाई के प्रबंध ना के बराबर है. नतीजतन यहां किसान दोहरी फसल से वंचित हैं. जबकि सीमावर्ती राज्य तेलंगाना ने जिले की सरहद पर बांध तैयार किये है, जिससे पड़ोसी राज्य के खेत 12 महीने फसलों से लहलहाते हैं.
क्या कहते हैं राजनीति समीकरण?
बीजापुर विधानसभा 2003 के चुनाव से 2018 के चुनाव तक दो बार कांग्रेस के विधायक तो दो बार भाजपा के प्रत्याशी ने इस सीट से चुनाव जीता. हालांकि इस विधानसभा को भाजपा का गढ़ कहा जाता है. भाजपा शासनकाल में बीजापुर जिले में स्ट्रक्चर निर्माण के साथ सड़कों का जाल बिछाया गया. इसके अलावा नक्सलियों को बैकफुट लाने के लिए पुलिस कैंप खोले गए. वहीं भाजपा से दो बार चुनाव लड़े महेश गागड़ा 2013 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में वन मंत्री भी बनाए गए. हालांकि 2018 के चुनाव में मंत्री रहे महेश गागड़ा को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के विक्रम मंडावी चुनाव जीते और उन्हें वर्तमान में बस्तर प्राधिकरण का उपाध्यक्ष भी बनाया गया है.
वरिष्ठ पत्रकार और जानकार संतोष तिवारी बताते हैं कि राजनीति दृष्टिकोण से बीजापुर विधानसभा काफी महत्वपूर्ण है. यहां चुनाव लड़ने के साथ ही चुनाव जीतना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. भाजपा से दो बार विधायक रहे महेश गागड़ा पर नक्सलियों ने दो बार जानलेवा हमला किया लेकिन वे बाल-बाल बच गए. अंदरूनी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार प्रसार करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. हालांकि कुछ महीनों में होने वाले 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना जताई जा रही है. अब तक 2003 में कांग्रेस 2008 में बीजेपी 2013 में बीजेपी और 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से चुनाव जीता है. आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना जताई जा रही है. माना यह जा रहा है कि एक बार फिर से भाजपा से महेश गागड़ा और कांग्रेस से विक्रम शाह मंडावी को दोबारा टिकट दिया जा सकता है.
विधानसभा से जुड़े आंकड़े
- बीजापुर विधानसभा में कुल मतदान केन्द्र - 245 है
- शहरी मतदान केंद्र - 22
- ग्रामीण मतदान केंद्र - 223 है
- कुल मतदाता- 1 लाख 58 हजार 735 है
- पुरुष मतदाता - 76 हजार 421
- महिला मतदाता - 82 हजार 306
- थर्ड जेंडर के 8 मतदाता
- पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या अधिक
बीजापुर विधानसभा में अब तक चुनाव परिणाम
- 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अकबर भाई को 54,828 वोट मिले जबकि भाजपा के राजाराम तोड़ेम को 13,196 वोट मिले. अकबर भाई ने बीजेपी के राजाराम तोड़ेम को 41 हजार 632 वोट के मार्जिन से हराया था.
- 2008 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के महेश गागड़ा को 20 हजार 049 वोट मिले. कांग्रेस के राजेन्द्र पामभोई को 9 हजार 528 वोट मिले. बीजेपी के महेश गागड़ा ने कांग्रेस के राजेन्द्र पामभोई को 10 हजार 521 मतों के मार्जिन से हराया था.
- 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के महेश गागड़ा को 29 हजार 578 तो कांग्रेस के विक्रम मंडावी को 20 हजार 091 वोट मिले. बीजेपी के महेश गागड़ा ने कांग्रेस के विक्रम मंडावी को 9 हजार 487 मतों की मार्जिन से हराया था, भाजपा के महेश गागड़ा दूसरी बार जीत दर्ज कर प्रदेश में वन मंत्री बने थे.
- 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विक्रम शाह मंडावी को 44 हजार 011वोट और बीजेपी के महेश गागड़ा को 22 हजार 427 वोट मिले. कांग्रेस के विक्रम मंडावी ने महेश गागड़ा को 21 हजार 584 मतों के अंतर से हराया. बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी वर्तमान सरकार में बस्तर प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी हैं.
क्या है बीजापुर के स्थानीय मुद्दे?
- बीजापुर विधानसभा में सबसे बड़ा मुद्दा सिलगेर आंदोलन है. यह आंदोलन देश में सबसे लंबा चलने वाला आंदोलन है. डेढ़ साल से बीजापुर विधानसभा के सिलगेर इलाके के आसपास गांव के सैकड़ों आदिवासी अपनी मांगों को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं. जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती तब तक आंदोलन जारी रखने की बात कही है.
- इसके अलावा बीजापुर जिला अस्पताल में अव्यवस्थाओं का घर है. इस अस्पताल में ना ही कोई विशेषज्ञ चिकित्सक हैं, ना ही स्टाफ. यह अस्पताल कुल मिलाकर रेफर सेंटर बन गया है, जिससे यहां के वासियों में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर काफी नाराजगी है.
- अंदरूनी गांव में नक्सली दहशत की वजह से अब तक पुल पुलियो का निर्माण नहीं हो पाया है. बारिश के मौसम में यहां के ग्रामीण 2 से 3 महीने के लिए पूरी तरह से शहरी इलाकों से कट जाते हैं. कई इलाकों में खुद ग्रामीणों ने अपने हाथों से अस्थाई पुल बनाया है. कई बार बारिश के समय हादसे भी हो चुके हैं और कई ग्रामीणों की जान भी गई हैं.
- इसके अलावा हर साल बारिश में किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है, उनके खेत खलियान पूरी तरह से बाढ़ के पानी मे डूब जाते हैं, लेकिन उन्हें मुआवजा नहीं दिया जाता है. पिछले 2 सालों से किसानों को उनके फसलों को पहुंचे नुकसान का मुआवजा नहीं मिल पाया है, यह भी एक सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है.
- बीजापुर विधानसभा के अंदरूनी गांव में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है, काम नहीं मिल पाने की वजह से अंदरूनी क्षेत्रों के सैकड़ों युवा दूसरे राज्य में रोजगार पाने के लिए पलायन कर रहे हैं. सरकार के द्वारा युवाओं को रोजगार उपलब्ध नहीं कर पाना सबसे बड़ी नाकामी है. यही वजह है कि उस विधानसभा क्षेत्र के सैकड़ों युवा काम की तलाश में पलायन कर चुके हैं और मानव तस्करी का भी शिकार हो रहे हैं.
- मोदकपाल गांव के स्वास्थ केंद्र में डॉक्टर नहीं होने से ग्रामीण नाराज हैं. ग्रामीण विधायक से शिकायत करने के बाद भी मांग पूरी नहीं हुई है. गांव गांव में पानी की समस्या और सड़क की समस्या बनी हुई है.
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