Chhattisgarh Election: छत्तीसगढ़ में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाला है. देशभर में ये कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ सबसे मजबूत किला माना जा रहा है. हालांकि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (TS Singh Deo) और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) के बीच के कुर्सी की लड़ाई है. इस जंग का ट्रेलर तो पिछले 4 साल में देश ने कई बार देखा. छत्तीसगढ़ की सियासत में सीएम बघेल 'काका' तो वहीं टीएस सिंह देव 'बाबा' के नाम से मशहूर हैं.
दरअसल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के 'जय और वीरू' की जोड़ी ने जमकर पसीना बहाया था. टीएस सिंहदेव ने घोषणा पत्र बनाने के लिए कड़ी मेहनत की थी. इसके बाद चुनाव का रिजल्ट सबके सामने है. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की, लेकिन असली मुसीबत तो ढाई-ढाई साल के करार की चर्चा पर शुरू हुई. टीएस सिंहदेव लगातार दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व के पास चक्कर काटते रहे. वे लगातार मीडिया में कहते नजह आये कि उन्होंने मुख्यमंत्री के कुर्सी के लिए कभी मना नहीं किया और इस मामले में फैसला शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ दिया.
इसके बाद लगातार राज्य में विधायकों और कार्यकर्ताओं के भी दो गुट बनने लगे. एक गुट टीएस सिंहदेव को राज्य का मुख्यमंत्री बनता देखना चाहता था. दूसरा गुट जो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पूरे पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहने के पक्ष में था. ये सिलसिला ढाई साल करीब आने के साथ तेज हो गया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गुट के लोग दिल्ली पहुंच गए. इस बीच बाबा और भूपेश की कुर्सी की जंग देशभर में चर्चा का विषय बन गया.
कांग्रेस में टूट-फूट का डर
मिशन 2023 में ये जंग कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है, क्योंकि 71 सीट के साथ विधानसभा में सबसे मजबूत पार्टी कांग्रेस में टूट-फूट का डर है. पार्टी लागतार इस आग पर पानी डालने की कोशिश जुटी है. अब अगर ये लड़ाई चुनाव के ठीक पहले बवंडर की तरह उठता है, तो कांग्रेस पार्टी को चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. टीएस सिंहदेव सरगुजा संभाग के दिग्गज नेता हैं. इस विधानसभा में 14 विधानसभा सीट हैं, जिस पर टीएस सिंहदेव का बड़ा दबदबा 2018 के चुनाव में देखने को मिल चुका है. कांग्रेस पार्टी ने यहां के 14 के 14 सीट जीत लिए. इसके अलावा टीएस सिंहदेव का बिलासपुर संभाग के कुछ विधानसभा सीटों पर भी अच्छी पकड़ बताई जाती है.
पंचायत विभाग से दिया है इस्तीफा
गौरतलब है कि 2022 में टीएस सिंहदेव ने अचानक पंचायत विभाग से इस्तीफा देकर सब को चौंकाया था. इसके अलावा टीएस सिंहदेव ने एक पत्र लिखकर सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. इसमें उन्होंने पीएम आवास योजना का हितग्राहियों को लाभ नहीं दिला पाने के कारण विभाग से इस्तीफा देने की बात कही थी. वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने टीएस सिंहदेव के इस्तीफा को मंजूर कर लिया और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे को पंचायत विभाग की जिम्मेदारी सौंप दी.
सीएम की ओबीसी वोटर पर पकड़
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस जंग से कांग्रेस पार्टी को नुकसान होगा, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद को साबित कर दिया. उनके पक्ष में अब बहुमत से कहीं ज्यादा विधायकों का समर्थन है. ऐसे में टीएस सिंहदेव के पार्टी से दूर होने पर भी कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चेहरे पर ही चुनावी मैदान में उतरेगी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्य के बड़े ओबीसी लीडर हैं. राज्य में ओबीसी वर्ग सबसे बड़ा वोट बैंक है. इसके अलावा उनकी पॉलिसी ग्राउंड पर वोटरों को साधने के लिए काफी कारगर साबित हुई. इस लिहाजा पार्टी भूपेश बघेल के साथ ही चुनाव में उतरना पसंद करेगी.
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