Chhattisgarh Assembly Elections 2023: छत्तीसगढ़ चुनावी मुहाने पर खड़ा है. प्रदेश में कभी भी चुनाव की घोषणा हो सकती है, लेकिन इससे पहले 2018 विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा फिर से चर्चा में है. ये मुद्दा धान खरीदी का है. कांग्रेस (Congress) ने 2018 में 2500 रुपये में धान खरीदी का वादा किया और सरकार बनाई. इसी तरह की चर्चा 2023 के चुनाव में होनें लगी है, लेकिन इस बार कीमत का दांव 3600 रुपये लगाया गया है. अब इस पर छत्तीसगढ़ की राजनीति गरमा गई है. 


दरअसल, पूर्व कृषि और वर्तमान पंचायत मंत्री रविंद्र चौबे का एक बयान पिछले दो दिनों से सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना है. उन्होंने दावा किया है कि अगले कार्यालय में किसानों को धान की कीमत 3600 रुपये मिलेगी. उन्होंने मीडिया से कहा है कि इस बार प्रदेश में 75 पार बहुमत के साथ कांग्रेस सरकार बनने जा रही है. किसानों के समर्थन से सरकार बनेगी. अगले कार्यकाल में किसानाें को धान की कीमत 3600 रुपये तक मिलेगी. इसके पीछे उन्होंने करण बताते हुए कहा कि इस साल भी पूरे देश में सबसे अधिक छत्तीसगढ़ के किसानों को धान की कीमत मिली है. अगले साल धान की कीमत किसानाें को लगभग 2800 रुपये मिलेगी. एमएसपी बढ़ने और राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत इनपुट सब्सिडी की वजह से अगले कार्यकाल तक किसानों को 3600 रुपये कीमत मिलने लगेगी.


बीजेपी का दावा केंद्र सरकार देती है किसानों को पैसा
चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस ने किसानों को लुभावने वादे कर किसानों को साधने में जुटी है, तो दूसरी तरफ बीजेपी ने मंत्री रविंद्र चौबे के बयान को मुख्यमंत्री के अधिकार का अतिक्रमण बता दिया है. पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा कि कांग्रेस शोषित छत्तीसगढ़ के मंत्री रवीन्द्र चौबे ने 3,600 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदने की बात कही है, जबकि उनको उसका अधिकार नहीं होता. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मंत्री चौबे पर कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि यह मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है. इसके आगे चंद्राकर ने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार मायावी है. धान खरीदी के मामले में प्रदेश सरकार अब यह भ्रम फैला रही है कि सरकार आने वाले पांच सालों में धान की कीमत 3,600 रुपये प्रति क्विंटल देगी. यह तभी संभव होगा कि जब केंद्र सरकार धान का समर्थन मूल्य प्रतिवर्ष छह फीसदी की दर से पांच साल में 30 फीसदी बढाएगी, जैसा की अब तक बढ़ाती आई है.


छत्तीसगढ़ में धान खरीदी सबसे बड़ा मुद्दा 
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. राज्य में 60 फीसदी अधिक आबादी खेती किसानी से जुड़ी हुई है. राज्य में एमएसपी पर धान बेचने वालों की पंजीकृत संख्या 24 लाख से अधिक है. पिछले सीजन में किसानों ने 107 लाख मिट्रिक टन धान बिक्री की है. राज्य निर्माण के बाद पहली बार इतनी अधिक मात्रा में धान खरीदी हुई. किसानों की संख्या बढ़ने के साथ धान की उपज बढ़ने के पीछे सरकार की तरफ से दिए जा रहे प्रति एकड़ 9 हजार रुपये सब्सिडी को माना जा रहा है. इस पैसे को राज्य सरकार राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत चार किस्तों में तहत देती है. वहीं अगर  किसानों को प्रति क्विंटल धान की कीमत 3600 रुपये मिले तो किसानों को कितना मुनाफा होगा. इसका जवाब है किसानों को 72 हजार रुपये प्रति एकड़ मुनाफा हो सकता है. क्योंकि राज्य में पहले ही प्रति एकड़ में 15 क्विंटल धान खरीदी हो रही थी.


किसान किसके वादे और दावे पर करेगा भरोसा? 
इसकी लिमिट बढ़ाकर अब इसे 20 क्विंटल प्रति एकड़ कर दिया गया है. लेकिन मंत्री रविंद्र चौबे ने ये भी अपने बयान में स्पष्ट किया है कि धान की एमएसपी में अगले कार्यकाल के अंत तक बढ़ोतरी हो सकती है. यानी 2027 -28 तक किसानों को धान की कीमत ज्यादा मिल सकती है. छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा वोट बैंक रहा है. इसलिए 2023 के चुनाव में बीजेपी भी किसानों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. बीजेपी लगातार दावा कर रही है कि केंद्र की मोदी सरकार ही किसानों की धान खरीदी करती है और उनको 80 फीसदी पैसे देती है.


वहीं कांग्रेस भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है. इस लिए चुनाव से पहले ही सीएम भूपेश बघेल ने प्रति एकड़ धान खरीदी की लिमिट 15 क्विंटल से बढ़ाकर 20 क्विंटल कर दिया है. यानी लगातार दावे वादे किए जा रहे है. क्योंकि इसका सीधा असर आने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा. लेकिन किसान किसके वादे पर भरोसा करती है ये तो आगमी चुनाव के परिणाम से ही तय होगा.


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