Chhattisgarh Assembly Elections 2023: पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविन्द नेताम (Arvind Netam) ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (BJP) पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार द्वारा बनाए गए पेशा कानून में आदिवासियों के सभी अधिकारों को खत्म कर दिया गया है. सरगुजा और बस्तर में जंगल की जमीन हो या फिर नजूल भूमि उसमें पेशा कानून के तहत ग्राम सभा से अनुमति लेना अनिवार्य है, लेकिन अब सरकार ने मूल कानून में बदलाव कर स्वीकृति के स्थान पर परामर्श को शामिल कर दिया है.
उन्होंने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा कि पेशा कानून में छेड़छाड़ आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है और इससे समाज का भविष्य अंधकारमय है. पेशा कानून 1996 में आदिवासियों के हितों के लिए बनाया गया था, लेकिन अब यह कानून समाज के अधिकार को ही खत्म कर रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अरविन्द नेताम ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों से ही आदिवासियों को अपने अधिकार नहीं मिले.
'आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हो रहा हनन'
अरविन्द नेताम ने कहा "अब प्रदेश में आदिवासियों के लिए बने कानून में उनके ही संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है. हमें 2001 में 32 फीसदी आरक्षण मिलना था लेकिन परिसीमन के बाद आदिवासियों की पांच आरक्षित सीटों को हटा दिया गया. उन्होंने कहा कि लम्बी प्रतीक्षा के बाद पेशा कानून बना, लेकिन उसमें भी ग्राम सभा के अधिकारों को खत्म कर दिया गया. नक्सल समस्या, विकास कार्यों के नाम पर आदिवासियों का विस्थापन, जमीन के मामले और अपने 23 सूत्रीय मांगों को लेकर लगातार सर्व आदिवासी समाज आंदोलन कर रहा है."
आदिवासी समाज लड़ेगा चुनाव
नेताम ने कहा कि पूर्व अध्यक्ष दिवंगत सोहन पोटाई के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में जिला से लेकर ब्लॉक स्तर तक समाज में जागरूकता आई. लोगों ने अपनी मांग के लिए निवेदन, आंदोलन, चक्का जाम और विधानसभा घेराव किए, लेकिन पूर्व की सरकार और वर्तमान की सरकार आदिवासियों के किसी मुद्दे पर ना बात करना चाहती है और ना ही उनको दिए गए कानूनी अधिकार को देना चाहते है. वर्तमान में आरक्षित सीटों से जीते हुए विधायक आदिवासियों के मुद्दे को रखने में असफल रहे हैं. इन सब कारणों को देखते हुए समाज अपनी आवाज विधानसभा तक रखने और अपने जनमत का उपयोग अपने अधिकारों के लिए करेंगे. 2023 चुनाव में आदिवासी समाज विधानसभा चुनाव अपनी समस्या के निदान के लिए लड़ेगी.
नेताम ने कहा "आदिवासी समाज में सरकार के प्रति आक्रोश का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, भानुप्रतापपुर उपचुनाव में आदिवासी वर्ग के निर्दलीय विधायक को 16 फीसदी वोट मिला था. भानुप्रतापपुर उपचुनाव से प्रभावित होकर छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने आने वाले विधानसभा चुनाव में समाज से उमीदवार उतारने का फैसला लिया है. विस चुनाव में समाज द्वारा 30 आरक्षित और 20 सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा."
इस साल के अंत में होने हैं चुनाव
उन्होंने कहा कि हसदेव और बस्तर में अधिकारों की लड़ाई पर गलत एफआईआर, स्थानीय आरक्षण और पेशा नियम संशोधन के लिए 20 जुलाई को विधानसभा सत्र के दौरान पूरे प्रदेश के जिलों, ब्लॉकों में जेल भरो आंदोलन भी किया जाएगा. बता दें इस प्रेस वार्ता के दौरान अकबर राम कोराम, रामप्रकाश पोर्ते, अनिल प्रताप, विनोद नागवंशी, जोऊ माखनलाल, डॉ. अमृत सहित अन्य लोग मौजूद थे. गौरतलब है कि इस वर्ष विधानसभा चुनाव होने है. इसको लेकर राजनैतिक पार्टियों ने तैयारी शुरू कर दी है.
बता दें कि, आदिवासियों के साथ अन्याय और उनके अधिकारों का हनन करने का आरोप लगाते हुए सर्व आदिवासी समाज ने चुनाव लडने का ऐलान कर दिया है. इससे कांग्रेस-बीजेपी को नुकसान होना तय है. क्योंकि छत्तीसगढ़ प्रदेश आदिवासी बाहुल्य है, ऐसे में आदिवासियों का रुझान अपने समाज की ओर ही ज्यादा होगा. इससे कांग्रेस और बीजेपी दोनों का वोट बैंक प्रभावित होगा.