Bastar News: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर यहां की अनोखी परंपरा . रीति रिवाज के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है. यहां के तीज त्योहारों के दौरान निभाई जाने वाली अनोखी परंपरा और गांवो में आदिवासियों के मनोरंजन के लिए नाच गाना और मुर्गा लड़ाई खास पारंपरिक खेल होता है. लेकिन अब बस्तर में मुर्गा लड़ाई मनोरंजन के साथ-साथ जुआ का भी कारोबार बन गया है और हर रोज लाखों रुपए के दाव इस खेल में लगाए जा रहे हैं. 


छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में पिछले कुछ दिनों से मरईगुड़ा में लगने वाले  बाजार में बड़े स्तर पर मुर्गा लड़ाई का खेल कराया जा रहा है. जहां हर रोज 3 से 4 लाख रु के दाव लगते हैं. खास बात यह है कि इस मुर्गा लड़ाई में केवल सुकमा जिले से ही नहीं बल्कि उड़ीसा ,तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के भी  बड़े  व्यापारी लक्जरी वाहनो से यहाँ पॅहुच इस मुर्गा लड़ाई में लाखो रुपये के दाव लगाते  हैं. खास बात यह है कि आईपीएल मैच में खेलने वाले प्लेयर्स की तरह ही यहां लड़ने वाले मुर्गों का भी नाम होता है.


लेकिन इस खेल में हारने वाले मुर्गा की जान चली जाती है. आईपीएल सट्टा में लगाए जाने वाले लाखों के दाव की तरह ही इस मुर्गा लड़ाई में लाखों रुपए के दांव लगाए जाते हैं. जिम्मेदारों को इस जुए के कारोबार की जानकारी होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होने से अब यह पारंपरिक खेल पूरी तरह से अवैध जुआ का कारोबार बन चुका है.


सप्ताह के 3 दिन चलता है खेल
दरअसल सुकमा से लगे मरईगुड़ा में लगने वाले बाजार में सप्ताह के 3 दिन   यहां मुर्गा लड़ाई का आयोजन कराया जाता है.  सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक मुर्गा लड़ाई के शौकीन यहां पहुंचते हैं और फिर इस  मुर्गा लड़ाई में लाखों रुपए के दाव लगाते है. खास बात यह भी है कि तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित मरईगुड़ा के जंगल में ओड़िसा. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की लग्जरी गाड़ियों में बड़ी संख्या में लोग मुर्गा लड़ाई में दांव लगाने पहुंचते हैं. बकायदा यहां आयोजन समिति द्वारा एक टेंट के नीचे तार के घेरे में अखाड़ा बनाया है जहां मुर्गों को लड़ाया जाता है. इस लड़ाई में 1 हजार से लेकर 3से 4 लाख तक की बोली लगती है. 


अखाड़े में एंट्री  के लिए प्रति व्यक्ति 1 हजार लिये जाता है. एक दिन में  200 से ढाई सौ की संख्या में लोग इस मुर्गा लड़ाई में शामिल होते हैं. यहां बकायदा मुर्गों के  नाम आईपीएल प्लेयर्स के नाम पर रखा जाता है. वही मुर्गा लड़ाई के दौरान मुर्गों के पंजे में धारदार हथियार बांधकर अखाड़े में छोड़ दिया जाता है और यह लड़ाई तभी खत्म होती है जब दो मुर्गों में से एक की मौत हो जाती है. आयोजन समिति को जुए की रकम का 20 % कमीशन मिलता है.


बाहरी लोगों का होता है जमावाड़ा
यहां के स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि बाजारों में मनोरंजन के लिए पहले मुर्गा लड़ाई कराया जाता था और गांव गांव से मुर्गा लाकर अखाड़ा में लड़ाया जाता था. लेकिन अब ये  लड़ाई अवैध जुआ के कारोबार में तब्दील हो गई है ,और इस मुर्गा लड़ाई में स्थानीय आदिवासी कम और बाहरी लोग ज्यादा पहुंचते हैं. जो एक हजार से लेकर लाखों रुपए तक का दाव लगाते हैं. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग यहां जुटते हैं. बस्तरिया संस्कृति के नाम पर मुर्गा लड़ाई को छूट दी गई है. लेकिन यहां स्थानीय आदिवासी नजर नहीं आते हैं. वही विडंबना वाली बात यह है कि इस मुर्गा बाजार में बाहरी लोगों के आने से और नक्सलियों के संघम सदस्य की मौजूदगी में कई नक्सली वारदात हो चुकी है. जिसमें कई  जवानों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की जान भी गई है. 


पुलिस नही कर रही  कार्यवाही 
ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी पुलिस और जिला प्रशासन को नहीं है. प्रशासन के जानकारी में ही मुर्गा लड़ाई में जुए का अवैध कारोबार चल रहा है. हालांकि इस मामले को लेकर मरईगुड़ा  क्षेत्र के एएसपी गौरव मंडल का कहना है कि मरईगुड़ा में मुर्गा लड़ाई की सूचना है लेकिन इसके आढ़ में जुआ खेला जा रहा है इसकी जानकारी नही है. अगर ऐसी कोई जानकारी मिलती है तो जरूर कार्यवाही की जाएगी.


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