Bastar: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के नक्सल प्रभावित गांव पखनार की एक 11 साल की आदिवासी छात्रा के चेहरे में उस वक्त मुस्कान लौट आई, जब वह खुद से उठकर चलने लगी. बचपन से दोनों पैर नहीं होने की वजह से अपनी 11 साल की जिंदगी छात्रा ने घर में और आश्रम में रहकर बिताई. उसका नाम लक्ष्मी कवासी है. वो अब कृतिम पैर लगने से न सिर्फ चल पा रही है, बल्कि अब उसे स्कूल जाने की भी खुशी है. आर्थिक रूप से कमजोर उसके मां बाप ने लक्ष्मी पर ध्यान नही दिया.
बीते साल उसका पखनार के आवासीय विद्यायल में एडमिशन कराया गया. इस आश्रम की शिक्षिका शहनाज खान बच्ची को उसके पैर पर खड़ा करवाने के लिए सहारा बनी और आखिरकार जानकारी मिलते ही जगदलपुर शहर पहुंची. यहां नि:शुल्क प्रत्यारोपण कैंप में लक्ष्मी कवासी को 2 कृतिम पैर लगने से उसे नई जिंदगी मिल गई, और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई.
11 साल बाद लक्ष्मी ने जमीन पर रखा कदम
दरअसल दरभा ब्लॉक के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ियापदर में रहने वाली लक्ष्मी कवासी 11 साल की है. वो छठवीं कक्षा में पढ़ती है, और हॉस्टल में ही रहती है. बचपन से ही दोनों पैर नहीं होने की वजह से वह चल फिर नहीं सकती थी. इसी लाचारी के वजह से मां बाप ने भी उसे बेसहारा छोड़ दिया. जिसके बाद घर से दूर हॉस्टल के लोग उसकी देखरेख करने लगे. लक्ष्मी जिस आश्रम में रहकर पढ़ाई करती थी.
वहां की शिक्षिका शहनाज खान को जानकारी मिली कि जगदलपुर शहर में नि:शुल्क प्रत्यारोपण कैंप लगा हुआ है. जहां दिव्यांग लोगों को कृत्रिम हाथ और पैर दिए जाएंगे. शिक्षिका बिना देरी के लक्ष्मी को अपने साथ जगदलपुर शहर ले आई. इस कैंप में गुजरात से आई मेडिकल टीम ने बकायदा लक्ष्मी के लिए दो कृत्रिम पैर बनाएं और उसे लगाकर लक्ष्मी को चलने को कहा. जैसे ही लक्ष्मी अपने कृत्रिम पैर से चली तो पूरे कैंप में तालियां बजने लगी. इसके चलते 11 सालों से दिव्यांग होने का दुख झेल रही लक्ष्मी के चेहरे पर मुस्कान लौट आई. 11 साल में पहली बार उसने कदम रखा, जिससे वह काफी खुश हो गई.
लक्ष्मी को लगाया गया कृत्रिम पैर
इस प्रत्यारोपण कैंप के प्रभारी ने बताया कि शिक्षिका ने लक्ष्मी कवासी के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया था. जिसके बाद उसके लिए यहां कृत्रिम पैर बनाए गए और जब वह पहुंची तो उसे लगाया गया. सिर्फ लक्ष्मी ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ से अलग-अलग जिलों से आए दिव्यांगजनों को नि:शुल्क कृत्रिम पैर और हाथ दिए गए अब तक इस कैंप के माध्यम से करीब 200 लोगों को इसका फायदा मिल चुका है. जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के दिव्यांगजनो की संख्या ज्यादा है.
शिक्षिका की हो रही जमकर तारीफ
दरअसल छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में पहले ही स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, खासकर अंदरूनी इलाकों में नक्सलियों की वजह से यहां स्वास्थ सुविधाएं नहीं पहुंच पाई है. इसकी वजह से गंभीर रूप से बीमार लोगों के साथ ही दिव्यांग जनों को भी इलाज मिलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में शिक्षिका ने इस बच्ची के लिए कुछ करने की ठानी और आखिरकार इस प्रत्यारोपण कैंप के माध्यम से लक्ष्मी को कृत्रिम पैर लगवाकर उसे नई जिंदगी दी. शिक्षिका की इस कार्य के लिए उनकी जमकर सराहना भी की जा रही है.
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