Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का बस्तर (Bastar) अपने घने जंगलों और वनोपज के लिए पूरे देश और विदेशों में जाना जाता है. बस्तर के हजारों आदिवासी (Aboriginal) परिवार का मुख्य आय का जरिया भी यहां के जंगलों में मिलने वाली वनोपज है. लेकिन कुछ सालों से लगातार ग्रामीण वनोपज के खरीदी को लेकर रुचि नहीं ले रहे थे. साथ ही शब्दों की कोई समझ ना होने के कारण बिचौलिये उनका फायदा उठा लेते थे. 


कैसे हुआ बदलाव
बिचौलियों की वजह से ग्रामीणों को इससे अच्छी आय नहीं हो पा रही थी. जिसके चलते अधिकतर आदिवासी महिलाओं ने वनोपज इकट्ठा करना भी छोड़ दिया था. लेकिन अपनी आईटी इंजीनियर की नौकरी छोड़ बस्तर के वनोपज को देश दुनिया में पहचान दिलाने, ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और रोजगार उपलब्ध कराने के लिए 31 वर्ष के युवा दीनानाथ राजपूत ने बीड़ा उठाया. उन्होंने प्रशासन के सहयोग से न सिर्फ बस्तर के वनोंपज को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मार्केट पर पहुंचाया, बल्कि प्रोडक्ट्स के बिक्री के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया. साथ ही इनके सही पैकेजिंग और प्रोसेसिंग को ध्यान में रखते हुए एक साल में लगभग चार से पांच करोड़ रुपए का टर्नओवर किया. इसके अलावा 6100 से अधिक आदिवासी महिलाओं को वनोपज के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया. दीनानाथ राजपूत वर्तमान में अब किसान उत्पादन संगठन से जुड़कर भूमगादी महिला कृषक संघ के बतौर सीईओ के पद पर काम कर रहे हैं.




पहले भी मिला है पुरस्कार
दरअसल, दीनानाथ बस्तर में अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद भिलाई के एक कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग करने के बाद बेंगलुरु की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम किया. जिसके बाद उनकी इच्छा शुरू से ही समाजसेवी की थी, इसलिए उन्होंने अपने लाखों रुपए पैकेज की नौकरी छोड़ कुछ अलग करने का फैसला किया. इसके बाद मार्च 2018 में भूमगादी महिला कृषक संघ के नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की. हालांकि उनके इस मुकाम तक पहुंचने की राह बिल्कुल भी आसान नहीं थी. उन्होंने बताया कि उनके पिता किसान हैं. उन्हें शुरू से ही उन्हें सोशल सेक्टर में काम करने की इच्छा थी. खास कर किसानी क्षेत्र में उन्हें कुछ करने के लिए पहले से ही ललक थी. सबसे पहले उन्होंने बेहतर एक्सपोजर के लिए साल 2016 में सोशल वर्क में मास्टर्स करने के लिए दाखिला लिया. उन्हें मुंगेली जिले में स्वच्छ भारत मिशन के तहत काम करने का मौका मिला. जिसके बाद 2018 में मुंगेली को छत्तीसगढ़ का पहला खुले में शौच मुक्त जिला चुना गया. इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद जिला प्रशासन को पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रुपए मिले और जिला पंचायत में सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का पुरस्कार से उन्हें सम्मनित किया गया.


क्या मिला कारोबार
उन्होंने कहा कि 'भूमगादी' शब्द को इसलिए चुना ताकि स्थानीय लोगों को इससे जुड़ाव महसूस हो. दरअसल, भूमगादी का अर्थ है- जमीन पर उगने वाली चीजें और उससे जुड़े लोग. दीनानाथ ने बताया कि अपने पहल की शुरुआत सिर्फ 337 महिलाओं के साथ उन्होंने की है. लेकिन धीरे-धीरे यह कारवा बढ़ता चला गया. जब एफपीओ की शुरुआत की तो लोग भरोसा नहीं कर रहे थे. लेकिन उनके जीने के तौर तरीके में कोई छेड़छाड़ किए बिना अपना काम जारी रखा. दीनानाथ ने बताया कि उनके साथ बस्तर के अलावा नारायणपुर, कांकेर के अब लगभग 6100 से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं. यह महिलाएं ऑर्गेनिक केला, पपीता, उड़द, हल्दी, मक्का जैसे तीन दर्जन से भी अधिक तरह के वनोपज व फलों का उत्पादों के अलावा आम, ईमली के सॉस, शहद ,कोदो कुटकी जैसे कई वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स का भी कारोबार करती हैं.




कहां तक बढ़ा है बाजार
इसके अलावा उन्होंने बताया कि महिलाओं को खेती और जंगल से जुड़ी सभी जानकारियां देने के साथ हर पंचायत में एक खरीदी केंद्र बनाया है. ताकि उन्हें अपने उत्पादों को बेचने में ज्यादा दिक्कत ना हो. जिसके बाद उन सामानों को खरीदने के बाद उसे स्टोर किया जाता है और फिर बड़े मार्केट में सप्लाई किया जाता है. यही वजह है कि आज उनके उत्पाद दिल्ली, रायपुर, विशाखापट्टनम, हैदराबाद जैसे देश के कई शहरों में जा रहे हैं. इसके अलावा स्लो बाजार, रिलायंस फ्रेश जैसे सुपर मार्केट में आसानी से मिल जाते हैं. यही नहीं फ्लिपकार्ट, अमेजॉन जैसे ऑनलाइन कंपनीयो में भी बस्तर के वनोपज प्रोडक्ट्स धूम मचा रहे हैं. दीनानाथ ने कहा कि इस तरह खेत से सीधा मार्केट से जुड़ा होने के कारण आदिवासी महिला किसानों की आमदनी में बड़ा बदलाव आया है. भूमगादी महिला कृषक संघ के कुल फायदे में उनके 30 फीसदी की भागीदारी है. उन्होंने कहा कि हरिहर, बस्तर, बाजार और भूमगादी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए और देश के हर जिले में इसकी एक ब्रांच शुरू करने के लिए वे जद्दोजहद में लगे हुए हैं. फिलहाल इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए एक बहुत बड़े ट्रेनिंग सेंटर को शुरू करने की भी योजना भी वे बना रहे हैं.


क्या हुआ है बदलाव
भूमगादी से जुड़ी महिला किसानों का कहना है कि रोजगार नहीं मिल पाने की वजह से और उनके द्वारा वनोपज इकट्ठा कर बिचौलियों को बेचने की वजह से सही दाम उन्हें नहीं मिल पा रहे थे. जिस वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. उन्हें अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी भी जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था. साथ ही मक्का, चना, ज्वार, सरसो जैसे कई फसलों की खेती होती जरूर थी. लेकिन नापतोल का कोई अंदाजा नहीं था और ना ही तब बेहतर बाजार मिलते थे. लेकिन जब बीते तीन वर्षों से भुमगादी महिला कृषक संघ से वे जुड़े हैं. ऐसे में उन्हें सही जानकारी मिलने के साथ ही अच्छा बाजार भी मिल रहा है. महिलाओं ने कहा कि जहां वे पहले महीने में तीन से चार हजार रुपये कमाती थी. वहीं अब आठ से नौ हजार रुपये की कमाई लगभग सभी महिलाओं को हो रही है. इतना ही नहीं पहले अपने उत्पादों को बेचने के बाद पैसों के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता था. लेकिन अब इस भूमगादी महिला कृषक संघ के जरिये अनाज बेचने से पहले ही पैसे मिल जाते हैं. इसके अलावा बस्तर के किसानों के द्वारा उगाए जाने वाले जैविक उत्पादों जिसमें सब्जियां, फल की बिक्री के लिए हरिहर बस्तर भी खोला गया है. यहां भी महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हो रहा है.


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