Chhattisgarh News: बस्तर में आदिवासी समाज ने अपने वीर सपूतों को किया याद, प्रशासन और सरकार से उठाई ये मांग
बस्तर में आदिवासी समाज ने अपने शहीद जननायकों को याद किया. साथ ही कहा कि इन वीर सपूतों के युद्ध स्थलों को सहेजने और सरंक्षित करने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया.
Chhattisgarh News: देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर हाल ही में पूरे भारत देश में जश्न मनाया गया. आजादी के अमृत महोत्सव पर देश के सभी वीर सपूतों को याद किया गया. वहीं छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी आदिवासी समाज ने अपने शहीद आदिवासी जननायको को याद किया. शहीद गुंडाधुर, शहीद झाड़ा सिरहा जैसे वीर सपूतों के बलिदान को याद कर आदिवासी समाज ने अंग्रेजो के खिलाफ हुए आंदोलन से जुड़े हुए स्मारकों और युद्ध स्थलों को सहेजकर रखने में प्रशासन को पूरी तरह से विफल बताया.
आदिवासी समाज के प्रमुखों ने कहा कि अंग्रेजों की लड़ाई में बस्तर के हजारो आदिवासियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी. लेकिन बस्तर में इन वीर सपूतों के जन्म स्थान और अंग्रेजो के साथ हुए युद्ध स्थलो को सहेजने और सरंक्षित करने के लिए प्रशासन और सरकार ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया. जिसको लेकर आदिवासी समाज में नाराजगी है. उनकी मांग है कि भूमकाल आंदोलन के स्मारक को सहेजने, अलनार गांव के नजदीक युद्ध क्षेत्र को संरक्षित करने और जननायक वीर गुंडाधुर के गांव नेतानार में लाइब्रेरी खोली जाए.साथ ही युद्ध क्षेत्र के स्थलों को सहेजकर बस्तर के पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों से युद्ध करने वाले आदिवासियों के स्टेचू बनाया जाए.
ताकि देश दुनिया से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक आदिवासी वीर सपूतों के बलिदान को यादकर उनको श्रद्धांजलि दें सकें. उन्हें याद कर सकें कि किस तरह से अंग्रेजों से लोहा लेते अपने बस्तर के जल जंगल जमीन को बचाने के लिए आदिवासी जननायको ने अपनी जान की आहुति दे दी. विडंबना है कि आजादी के 75 साल बाद भी इन जगहों को संरक्षित करने और सहेजने के लिए प्रशासन अब तक पूरी तरह से विफल रहा है.
लंबे समय से संरक्षित करने की उठ रही मांग
दरअसल बस्तर में आदिवासी आंदोलनों के जननायकों और युद्ध क्षेत्रों के संरक्षण की मांग आदिवासी समाज द्वारा लंबे समय से की जाती रही है. इस समाज के प्रमुखों का कहना है कि अंग्रेजो के खिलाफ हुए आंदोलन से जुड़े स्मारकों को सहेजकर रखने में प्रशासन अब तक विफल रहा है. इसको लेकर आदिवासी समाज में आक्रोश भी है. हालांकि बीते कुछ समय में आदिवासी जन नायकों की जगदलपुर शहर में आदम कद मूर्ति स्थापित करने की पहल जरूर की गई , और नेतानार में वीर गुंडाधुर की मूर्ति स्थापित की गई.
आदमकद मूर्ति का अनावरण सीएम भूपेश बघेल ने किया
वहीं जगदलपुर के सिरहासार चौक में झाड़ा सिरहा की आदमकद मूर्ति का अनावरण खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया , लेकिन आदिवासी समाज के द्वारा भूमकाल आंदोलन के स्मारक को सहेजने अलनार गांव के नजदीक युद्ध क्षेत्र को संरक्षित करने जननायक वीर गुंडाधुर के गांव नेतनार में लाइब्रेरी खोलने जैसी मांग की जाती रही हैं. लेकिन इस ओर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है. सभी आदिवासी समाज प्रमुख चाहते हैं कि इन जगहों को सहेजने के साथ संरक्षित किया जाए और विकसित किया जाए.
ताकि अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई करते और बस्तर के जल जंगल जमीन को बचाने के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले आदिवासी वीर सपूतों को सम्मान मिल सके. इसके साथ-साथ पर्यटकों को भी इन जननायकों की जानकारी मिल सके. इधर बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार का कहना है कि हाल ही में उन्होंने और बस्तर कमिश्नर श्याम धावडे ने भूमकाल आंदोलन के युद्ध क्षेत्र का दौरा किया है. उन्होंने स्मारक और युद्ध स्थल को संरक्षित करने के लिए और नेतानार में लाइब्रेरी के लिए भी शासन से फंड की मांग की है. ताकि इन क्षेत्रो को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में डेवलप किया जा सके.