Chhattisgarh News: भारत हीर-रांझा, लैला-मजनू, सोढ़ी-महिवाल जैसे मोहब्बत की मिसाल पेश करने वाला देश है. इनके जैसे न जाने कितनी प्रेम कहानियां यहां सांस लेती हैं और न जाने कितने प्यार करने वाले अमर हो गए. एक ऐसी अमर प्रेम कहानी है छत्तीसगढ़ के बस्तर की.


किसकी है कहानी
बस्तर के आदिवासी युवक और युवती ने ऐसे ही जिया था. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में झिटकु-मिटकी की प्रेमकथा वर्षों से ग्रामीण परिवेश में रची बसी है. पीढ़ी दर पीढ़ी बस्तर के लोग ये कहानी सुन और सुना रहे हैं. झिटकु-मिटकी की कहानी को लोग खोड़िया राजा और गपादाई की कहानी के नाम से भी जानते हैं. इनकी प्रेम कहानी के किस्से देश और प्रदेश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी सुनाए जाते हैं.


क्या है कहानी


बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार व जानकार करीमुद्दीन बताते हैं कि कोंडागांव जिले के केशकाल के विश्रामपुरी के एक गांव में सुकल नाम का एक महारा समाज का  युवक था. जिसकी मुलाकात सुकलदाई नाम की युवती से एक मेले में हुई थी. दोनों को एक-दूसरे से पहली नजर में ही प्यार हो गया था. युवती के सात भाई थे, जो इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन सुकल ने सकुलदाई के परिवार को मना लिया और शादी हो गई. तकदीर को कुछ और ही मंजूर था. कुछ साल बाद गांव में अकाल पड़ा और गांववाले दाने-दाने को तरसने लगे. ग्रामीणों की सारी मेहनत बेकार जा रही थी. मेहनत करके बनाया तालाब भी सूखा रह गया. ऐसे में एक तांत्रिक ने बलि का एलान किया. ये बात सुनकर सभी ग्रामीण पीछे हट गए. लेकिन कुछ युवक जो सुकुलदाई को पाने की इच्छा रखते थे. उसके भाइयों को भड़काने लगे, युवकों ने सकुलदाई के भाइयों को ये कहकर भड़का दिया कि अगर वो सकुलदाई के पति सकुल की बलि देते हैं तो गांव में उनका मान बढ़ जाएगा. जैसा युवक चाहते थे वैसा हुआ. सकुलदाई के भाइयों ने सुकल की हत्या कर दी.


सकुलदाई की भाईयों ने की हत्या
इस घटना के बाद तेज बारिश हुई. इधर सुकलदाई अपने पति का घर मे इंतजार करते रही. जब वो बरसात बंद होने के बाद तालाब पहुंची तो वहां उसके पति की सिर कटी लाश पड़ी थी. सकुलदाई को ये पता चल गया कि उसके पति की हत्या उसके ही भाइयों ने की है. इस घटना से दुखी होकर सकुलदाई ने तालाब में कूदकर जान दे दी. ग्रामीणों ने देखा कि युवती ने अपनी बांस की टोकरी किनारे छोड़कर तालाब में छलांग लगाई है. बहन की लाश देख भाइयों ने गांववालों के सामने अपनी गलती मान ली. इस घटना के बाद से गांव में सुकल और सुकलदाई को झिटकु मिटकी के नाम से जाना जाने लगा. जानकार करीमुद्दीन के अनुसार सुकल को बस्तर के गांव में खोड़ीया देव और तालाब किनारे बांस की टोकरी छोड़ कर मौत को गले लगाने के कारण सुकलदाई को गपादाई (बांस की एक किस्म की टोकरी) के नाम से जाना-जाने लगा. गपादाई मिटकी को ग्रामीण आराध्य देवी के नाम से पूजते हैं. विश्रामपुरी के उसी गांव में वर्तमान समय में भी झिटकु मिटकी के नाम से मंडई मेला का आयोजन किया जाता है.


अटूट प्रेम की झलक
बस्तर के झिटकू-मिटकी की यह प्रेमकथा यहां के शिल्पकला में भी दिखाई देती है. काष्ठ और मेटल से बनी यह मूर्तियां देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रचलित हैं. बस्तर संभाग के कई क्षेत्रों में आज भी झिटकु-मिटकी की मुर्तियां बनाई जाती जाती हैं. हर वर्ष दिल्ली में होने वाले कला प्रियदर्शनी में झिटकू-मिटकी की बेलमेटल से बनी मूर्तियों को विशेष दर्जा प्राप्त है. मेटल से बनी इन प्रतिमाओं में झिटकु की पहचान हाथ में वाघयंत्र और मिटकी की पहचान हाथों मे बांस की टोकरी से की जाती है. जगदलपुर में पिछले कई सालों से हस्तशिल्प कला से जुड़े व्यवसायी अनिल लुक्कड़ का कहना है कि दूर दराज से आकर लोग इन प्रेमी जोड़ों के प्रतीक कहलाने वाले झिटकु मिटकी की मूर्ति ले जाते हैं. इन्हें अपने घर में रखना शुभ मानते हैं क्योंकि इस प्रेमी युगल को बस्तर में देवी-देवता का दर्जा प्राप्त है.


उपन्यास के लेखक
झिटकु-मिटकी की यह प्रेम कथा बस्तर के कई उपन्यासकारों की रचनाओं में दर्ज है. बस्तर के प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं इतिहासकार स्वर्गीय के.के झा ने झिटकु मिटकी पर एक उपन्यास भी लिखा है. जो काफी प्रचलित है लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त के.के झा के उपन्यास की यह कहानी दो ऐसे प्रेमी जोड़ों के बीच की कहानी है. जिन्होंने अपने प्रेम को अमर बनाने के खातिर अपनी जान न्योछावर कर दी थी. के.के झा के इस उपन्यास को काफी सराहा गया था.


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