Bastar: बस्तर में अनोखा मामला! मूल धर्म में वापसी के बाद दी बुजुर्ग के अंतिम संस्कार की इजाजत
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के दरभा में एक बुजुर्ग व्यक्ति की मौत के बाद उसे आदिवासी समाज के मरघट ले जाया गया लेकिन वहां अंतिम संस्कार नहीं करने दिया, इसके पीछे धर्मांतरण का मुद्दा सामने आया है.
Bastar News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर जिले में धर्मांतरण (Conversion) के मामले में लगातार विवाद बढ़ता ही जा रहा है. आदिवासियों द्वारा अपने समुदाय के लोगों का मूल धर्म में वापसी कराने में जुटे हुए हैं. ईसाई और हिंदू (Hindu) धर्म अपनाने वालों को आदिवासी अपने मूल धर्म में वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं. यह दरभा ब्लॉक के अगरवाड़ा गांव का मामला है जहां दो दिन पहले डोले मंडावी नाम के एक बुजुर्ग व्यक्ति की मौत हो गई थी. डोले का परिवार हिंदू धर्म को मानने लगा था. डोले के अंतिम संस्कार (Last Rites) के लिए उनके शव को गांव के आदिवासी समाज के मरघट ले जाया गया, जहां आदिवासी समाज के लोगों ने मरघट में अंतिम संस्कार का विरोध कर दिया और कहा कि डोले हिंदू धर्म को मानता था ऐसे में उनके शव का अंतिम संस्कार यहां नहीं करने दिया जाएगा.
इस दौरान डोले के परिवार वालों और गांव वालों के बीच विवाद की भी स्थिति बनी. विवाद के बीच डोले मंडावी के परिवार ने वापस आदिवासियों के मूल धर्म में प्रवेश करने की बात कही. इसके बाद परिवार के 6 सदस्यों ने आदिवासी समाज में प्रवेश किया और फिर पूरे रीति रिवाज से शव का अंतिम संस्कार किया गया.
अपनी संस्कृति बचाने की कोशिश- आदिवासी संस्था
बस्तर में इस तरह का यह पहला मामला है जब हिंदू धर्म मानने वाले को वापस आदिवासियों के मूल धर्म में शामिल कराया गया है. सर्व आदिवासी समाज के युवा प्रभाग के संभागीय सचिव बलदेव मंडावी का कहना है कि हम किसी धर्म का विरोध नहीं कर रहे हैं. बस हम अपनी आदिवासी संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रहे हैं, आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति के उपासक रहे हैं. ऐसे में अपने मूल धर्म के समाज को छोड़ ईसाई समुदाय और सनातन धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को वापस अपने समाज में प्रवेश करने का कार्य किया जा रहा है.
हिंदू धर्म से वापसी का पहला मामला
पिछले कुछ समय से इलाके में लगातार शव दफन को लेकर विवाद होता रहा है. इससे पहले ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासी के घरों में लोगों की मौत के बाद शव दफन करने को लेकर विवाद होता था. घर वापसी के बाद ही शव का दफन करने दिया जाता था, लेकिन यह पहला मौका है जब आदिवासी समाज ने हिंदू धर्म मानने वाले व्यक्ति की मौत के बाद ऐसा विरोध किया है और परिवार वालों को वापस आदिवासियों के मूल धर्म में शामिल किया है.
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