Chandi Mandir: छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के गुंडरदेही क्षेत्र में स्थित चंडी मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता का मिसाल बन गया है. यहां हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ माथा टेकते हैं. मंदिर के कुल दूरी पर सैयद बाबा का मजार है. खास बात यह है कि सैयद बाबा के मजार में सबसे पहले चंडी माता मंदिर से ही चादर जाता है. इतना ही नहीं इस इलाके में चाहे हिंदू का त्यौहार हो या मुस्लिम का त्यौहार हो सब मिलजुल कर मनाते हैं.


मां चंडी के मंदिर में लगा है 786 लिखा हुआ हरे रंग का चादर
बालोद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गुण्डरदेही में मां चंडी का प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है. इस मंदिर के कुछ दूरी पर ही सैयद बाबा का मजार है. मंदिर परिसर के अंदर 786 लिखा हुआ हरे रंग का चादर भी लगा हुआ है. इस मंदिर में चाहे हिंदू हो या मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग मिलकर साथ माथा टेकते हैं. दोनों समुदाय के लोग एक साथ मां चंडी की पूजा अर्चना विधि विधान से करते हैं. इलाके का माहौल इतना अच्छा है कि आज तक इस इलाके में धर्म विशेष को लेकर कभी भी लड़ाई झगड़ा नहीं होता है. हमेशा लोग मिलजुल कर रहते हैं. चाहे हिंदू का त्यौहार हो या फिर मुस्लिम का त्यौहार सब एक दूसरे से मिलकर त्यौहार मनाते हैं. 




जानिए इस मंदिर की दिलचस्प कहानी
पूर्व विधायक राजेन्द्र राय ने बताया कि बस्तर की राजा माखन सिंह के राज्य पर जब हमला हुआ तो ठाकुर निहाल सिंह ने दुश्मनों को धूल चटाते हुए बालोद जिला के अंतिम छोर तक खदेड़ दिया था. जिससे राजा माखन सिंह बहुत प्रभावित हुए और ठाकुर निहाल सिंह को गुंडरदेही की जमीदारी दे दी और 52 गांव का कमान वह संभालने लगे. जब ठाकुर निहाल सिंह रतनपुर में थे तब वह महामाया माई के भक्त थे और उन्हें महामाया माई की ओर से अद्भुत शक्तियां मिली थी.


वह गुण्डरदेही आये तो उन्होंने एक मंदिर तैयार किया और महामाया माई के स्वरूप माता चंडी की स्थापना की. ठाकुर निहाल सिंह को शक्ति प्राप्त होने के कारण उस समय आसपास के सारे लोग उसके पास शारीरिक और घर की समस्या लेकर पहुंचते थे और उसका समाधान ठाकुर निहाल सिंह करते थे. वह हर रोज मां चंडी की पूजा आराधना भी करते थे.




आज भी चांद में छुपा हुआ है इस मंदिर का रहस्य
आगे राजेन्द्र राय ने बताया कि इसी बीच गुण्डरदेही के एक मुसलमान का निधन हो गया था और उनसे जुड़े सारे लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए और गुण्डरदेही के रामसागर तालाब में लोग बैठे थे, तभी उसी समय आसमान में उड़ते हुए एक चांद को सारे लोगों ने देखा. फिर जब अंतिम संस्कार में शामिल लोग मृतक के घर विदा लेने गए तो उसमें से एक व्यक्ति ने वही चांद पानी पीने वाले हंडे में देखा.




इस बात की जानकारी ठाकुर निहाल सिंह को दी. जिसके बाद ठाकुर निहाल सिंह ने उस चांद को एक बक्से में बंद कर दिया और अपने अराध्य स्थल चंडी माता के मंदिर में बक्से को रख दिया. तब से लेकर सैकड़ों सालों से वह बक्सा मां चंडी के मंदिर में ही है और बक्सा आज भी एक राज बना हुआ है. जिसे आज तक किसी ने नहीं खोला और उसे बाबा सैय्यद बाबा की निशानी मान कर तभी से लोग उनकी पूजा करते आ रहे हैं.


हिंदू-मुस्लिम रीति-रिवाजों के साथ मंदिर में होता है पूजा अर्चना
भले ही मंदिर मां चंडी के मंदिर के नाम से जाना जाता है. लेकिन हर रोज वहां के पुजारी माता चंडी के साथ ही बाबा सैय्यद की पूजा भी मुस्लिम रीति रिवाज के साथ करते हैं. साल के चैत्र और कंवार नवरात्र यहां मेला लगता है. जहां बड़ी संख्या में भक्त माथा टेकने के लिए पहुंचते हैं. वहीं साल में एक बार जब पास के दरगाह में जब उर्स का आयोजन होता है तो मां चंडी के पुजारी दरगाह जाकर बाबा सैय्यद के नाम से चादर चढ़ाते हैं.


ये भी पढ़ें: Chhattisgarh: तंगी से जूझ रहे नगरीय निकाय को मिला 'बूस्टर डोज', 1000 करोड़ रुपये से बदलेगा शहरों का रंग रूप