Durg News: इन्क्यूबेटर, इन्क्यूबेशन, ब्रूडर जैसी नई शब्दावली ग्रामीण महिलाओं की जुबान से ऐसे निकलती हैं जैसे हाइटेक संसाधनों के साथ वे बरसों से काम कर रही हों. दरअसल छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के खम्हरिया गांव की महिलाओं ने बटेर पालन के क्षेत्र में कदम रखा है और परंपरागत रूप की बजाय वे अत्याधुनिक टेक्नालाजी से बटेर का पालन कर रही हैं. लगभग सवा लाख रुपए की लागत से इसका सेटअप तैयार किया गया है. और 600 अंडों, 600 चूजों और 200 ब्रीडर से इसकी शुरूआत की गई है.


गौठानों को ग्रामीण आजीविका केंद्र बनाया जा रहा है


जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गौठानों को ग्रामीण आजीविका केंद्र बनाने के निर्देश दिये हैं और हर गौठान में अलग तरह की आजीविकामूलक गतिविधि के संचालन के लिए कहा है. इसके अनुपालन में कार्य किया जा रहा है. कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने इस संबंध में निर्देश दिये हैं कि जो कार्य समूह की महिलाएं करेंगी, उनमें तीन तरह से सहायता उपलब्ध कराएं. पहले तकनीकी स्तर पर प्रशिक्षण ताकि इसके संबंध में उन्हें पूरी जानकारी हो. इसके बाद इसके लिए आवश्यक तकनीकी उपकरण ताकि वे हाइटेक उपकरणों के साथ बाजार में उतरे और इसके बाद उन्हें बाजार उपलब्ध कराना. ये तीनों चीजें हों तो प्रॉडक्ट को जरूर सफलता मिलेगी.


मार्केट में बटेर की अच्छी खासी मांग


आसपास के क्षेत्र और होटल व्यवसाय में बटेर की बढ़ती मांग को अवसर समझते हुए ग्राम खम्हरिया के गौठान में बटेर हैचरी यूनिट की शुरूआत की गई है. ग्राम्या उज्जवल महिला स्व सहायता समूह इस बटेर यूनिट का संचालन कर रही है. यहां बटेर की देसी वैरायटी केरी ब्राउन का उत्पादन किया जा रहा है. जिसमें स्वसहायता समूह की बहनों के सक्रिय भागीदारी के चलते गौठानों में होने वाले नवाचार आज काफी फल-फूल रहे है.


पिंजरा विधि से 10 फीसदी अंडे के उत्पादन में होती है वृद्धि


पिंजरे में 3:1 में मादा व नर बटेर को रखा जाता है. जिससे एक सीमित दायरे में नर और मादा के होने से प्रजनन दर बेहतर रहता है. पिंजरे में अंडे के क्षतिग्रस्त होने की संभावना न के बराबर रहती है,. जिससे  अंडे के उत्पादन में 10 फीसदी तक की वृद्धि प्राप्त होती है. बटेर के चारे पानी व अंडे के संग्रहण लिए अटैचमेंट लगाए गए हैं. बटेर के 2 सप्ताह हो जाने के बाद उन्हें व्यवसायिक अंडों के लिए पिंजरे में रखा जाता है


बटेर पालन से मिलेगा तीन गुना ज्यादा लाभ


स्व सहायता समूह को प्रशिक्षण देने वाले सहायक पशु चिकित्सक क्षेत्राधिकारी मोहित कामले ने बताया कि बटेर पालन में कम जोखिम उठाकर बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता है. बटेर के अंडो का साईज छोटा होने के कारण हम इन्क्यूबेटर मशीन में ज्यादा अंडे डाल सकते हैं. एक ट्रे में 95 अंडे आते हैं और इन्क्यूबेटर मशीन में मुर्गी के अंडों से तीन गुना ज्यादा बटेर के अंडों को तुलनात्मक रूप से रखा जा सकता है. यदि हम मुर्गियों के साथ इसका तुलनात्मक रूप से अध्ययन करें तो बटेर के लिए कम स्थान की आवश्यकता होती है और यह मात्र 35 दिन में मार्केट के लिए तैयार हो जाता है. अर्थात एक ही सेटअप में यदि हम क्रमागत रूप से मुर्गी पालन और बटेर पालन करें तो बटेर से हमें तीन गुना ज्यादा लाभ भी मिलेगा.


कम लागत अधिक मुनाफा और शरीर के लिए फायदेमंद


डॉ सी पी मिश्रा ने बताया कि बटेर पालन में कम लागत में अधिक मुनाफा पाया जा सकता है.अगर आप एक बटेर को पालते हैं तो उसका पूरा खर्च मिलाकर 20 रुपये आता है. और यह बटेर मार्केट में 60 से 70 रुपये में बिकता है. मतलब 20 रुपये खर्च कर आप 40 से 50 रुपए मुनाफा एक बटेर से पा सकते हैं. बटेर का मांस शरीर के लिए बहुत लाभकारी होता है और जो हार्ट के पेशेंट होते हैं उनके लिए ये अधिक लाभकारी होता है. इसका कारण यह है कि बटेर के मांस में फैट कम होता है. बटेर पालन में खास बात यह है कि यह मात्र 1 महीने में पूरी तरह से तैयार हो जाता है. और मार्केट में इसकी अच्छी खासी मांग है. बटेर मार्केट में हाथों-हाथ बिक भी जाता है.


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