Durg News: आपने रामायण में जटायु का जिक्र तो सुना ही होगा और देखा होगा कि जब जटायु रावण से युद्ध करता है, तो रावण उनके पंख काट देता है.जिसके बाद वो जमीन पर गिर जाते है. आज वो जटायु तो हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके वंशज आज भी जीवित है. हालांकि ये भी लुप्त होने की कगार में पहुंच चुके हैं. हाल ही में जटायु के वंशज की प्रजाति को देखा गया है और उन्हें बचाने के लिए जिला प्रशासन ने कमर कस ली है.


दुर्ग में दिखा ‘इजीप्शियन वल्चर’ का गिद्ध


दुर्ग जिला के धमधा ब्लॉक में गिद्धों की लुप्त प्राय प्रजाति ‘इजीप्शियन वल्चर’ को देखा गया है. इससे जिले में इनके संरक्षण की उम्मीदें बढ़ गई हैं. कलेक्टर डॉ. सर्वश्वर नरेंद्र भुरे ने इस प्रजाति के संरक्षण के लिए वन विभाग और रेवेन्यू विभाग को मिलकर ‘वल्चर रेस्टारेंट’ के लिए जगह चिन्हांकित करने और उसे बनाने के निर्देश दिए हैं.


डीएफओ धम्मशील गणवीर ने बताया कि धमधा ब्लाक में गिद्धों की इजीप्शियन प्रजाति अर्थात इजीप्शियन वल्चर को देखा गया है.ये वहां मौजूद बड़े पेड़ों में घोंसला बनाकर रह रहे हैं. इनकी प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह एक अच्छा संकेत है. उन्होंने बताया कि इसी मासले पर उन्होंने कलेक्टर डॉ. भुरे के साथ बुधवार को मंथन किया है. इसके बाद दोनों अधिकारियों ने ऐसे क्षेत्रों में जहां ‘इजीप्शियन वल्चर’ की बसाहट सबसे अधिक पाई गई है वहां इनके कंजर्वेशन के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाने का निर्णय लिया है. कलेक्टर ने रेवेन्यू डिपार्टमेंट की मदद से इसके लिए जगह चिन्हांकित करने का निर्णय लिया है. इसके बाद बुधवार को फारेस्ट और रेवेन्यू की संयुक्त टीम ने धमधा ब्लॉक जाकर जगह चिन्हांकन के लिए सर्वे का कार्य किया है.


प्रजातियों को बचाने के लिए किया जाएगा ये काम


डीएफओ गणवीर ने बताया कि इजीप्शियन वल्चर की प्रजाति दुर्ग ही नहीं छत्तीसगढ़ में दिखाई देना एक बड़ी बात है. ये एक दुर्लभ प्रजाति है. इसके संरक्षण की जरूरत है. इसके लिए एक खास क्षेत्र ‘वल्चर रेस्टारेंट’ बनाया जाएगा. गिद्ध मृतभक्षी होते हैं। इनके भोजन के लिए मरने वाले जानवरों को यहां लाया जाएगा. यहां ऐसे पौधे लगाये जाएंगे जो गिद्धों की बसाहट के अनुकूल होंगे. गिद्ध पीपल जैसे ऊंचे पेड़ों में बसाहट बनाते हैं. कंजर्वेशन वाले क्षेत्र में भी इसी तरह के पौधे लगाए जाएंगे. ‘वल्चर रेस्टारेंट’ में उस हर सुविधा का विकास होगा जो गिद्धों की बसाहट के लिए उपयोगी होगी.


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इस वजह से आई थी गिद्धों की संख्या में गिरावट


डीएफओ गणवीर ने बताया कि भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें इजीप्शियन वल्चर भी एक प्रजाति है. ये छोटे आकार के गिद्ध होते हैं. उन्होंने बताया कि भारत में पहले बड़ी संख्या में गिद्ध पाये जाते थे. दशक भर से पहले इनमें तेजी से गिरावट आई. इसका कारण था डाइक्लोफिनाक औषधि जो मवेशियों को दी जाती थी. मवेशियों के मरने के बाद जब गिद्ध इनके गुर्दे खाते थे तो ये औषधि भी उनके पेट में चली जाती थी और इससे उनकी मौतें होने लगीं. इसी को देखते हुए देश भर में इस औषधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अब इनके संरक्षण के लिए की योजना पर कार्य किया जा रहा है.


क्या कहते है पक्षी विशेषज्ञ


इस संबंध में जानकारी देते हुए पक्षी विशेषज्ञ अनुभव शर्मा ने बताया कि भारत में पाये जाने वाले इजीप्शियन वल्चर दो प्रकार के होते हैं. एक तो स्थायी रूप से रहने वाले और दूसरे माइग्रेटरी. भारतीय साहित्य में इनके बारे में दिलचस्प वर्णन है. इजीप्शियन वल्चर संस्कृत साहित्य में शकुंत कहा गया है. अभिज्ञान शाकुंतलम में ऋषि कण्व को शकुंतला ऐसे ही शकुंत पक्षी के वन में प्राप्त हुई थी. जिसकी वजह से उन्होंने उसका नामकरण शकुंतला रख दिया. इसी शकुंतला के बेटे भरत से हमारे देश का नाम भारत पड़ा. माइग्रेटरी शकुंत पक्षी हिमालय से उड़ान भर कर रामेश्वर तक पहुँचते हैं. इनके बारे में अनुश्रुति है कि ये शिव भक्त होते हैं और गंगा जल हिमालय से लेकर रामेश्वरं में भगवान शिव को चढ़ाते हैं.


ऐसे दिखते है ये पक्षी


इजीप्शियन वल्चर के गर्दन में सफेद बाल होते हैं. इनका आकार थोड़ा छोटा होता है. ब्रीडिंग के वक्त इनकी गर्दन थोड़ी सी नारंगी हो जाती है.


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