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Chhattisgarh Election 2023: '63 फीसदी लोग अपने विधायकों से संतुष्ट नहीं', इस बार क्या है बड़ा मुद्दा? पढ़ें चुनाव पर सर्वे रिपोर्ट

Chhattisgarh Election: विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर प्रमुख पार्टियां वोटरों को साधने में जुट चुकी हैं. यहां जानें इस बार चुनाव में क्या हैं प्रमुख मुद्दे जो उम्मीदवारों की जीत तय करने वाली हैं.

छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में जीत के लिए कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी भी यहां पूरा जोर लगा रही है. साथ ही छत्तीसगढ़ के चुनाव में आम आदमी पार्टी की भी एंट्री हो चुकी है. राज्य के विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग चल रही है. इस बीच हिंदी दैनिक 'भास्कर का महा सर्वे' सामने आया है.   

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुए महासंग्राम 2023 के पहले चरण में हिंदी दैनिक 'भास्कर महा सर्वे' में छत्तीसगढ़ के 8, 382 लोगों ने राय दी है. पहली बार इतने बड़े पैमाने पर ओटीपी आधारित विश्वसनीय सर्वे में सभी सीटों से लोगों ने जवाब दिए. नतीजे बताते हैं कि आगामी चुनाव के लिए सभी लोगों का सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा और स्वास्थ्य है. यह जनता की सबसे बड़ी जरूरत के रूप में उभरी है. शिक्षा में सुधार और सबसे ज्यादा लोग ईमानदार उम्मीदवार चाहते हैं. 79 फीसदी लोग मानते हैं कि फ्रीबीज के चुनावी वादे सही नहीं है. राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों में से 63 फीसदी लोग अपने विधायकों से संतुष्ट नहीं, इसमें सभी दलों के और निर्दलीय एमएलए भी शामिल हैं. 

इस बार प्राथमिकता क्या है ?

  • शिक्षा-स्वास्थ्य पहली और रोजगार दूसरी प्राथमिकता है.
  • ग्रामीणों के लिए रोजगार बड़ा मुद्दा
  • गांवों में 25 फीसदी लोगों के लिए रोजगार और शहरों में 23 फीसदी के लिए शिक्षा अहम मुद्दा है.
  • महिलाओं के लिए शिक्षा पहले नंबर पर और महंगाई दूसरे नंबर पर है.

पिछले मुद्दों का क्या हुआ?

  • 23 फीसदी ने कहा कि जिन मुद्दों पर वोट दिया था वे पूरे हुए
  • 63 फीसदी ने कहा- वादे पूरे नहीं हुए
  • 14 फीसदी -आंशिक
  • 43 फीसदी किसान बोले- वादे पूरे हुए
  • गांवों में 24 फीसदी और शहरों में 22 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले चुनाव के वादे पूरे हुए हैं.
  • सबसे ज्यादा 75 फीसदी बेरोजगारों ने कहा कि हमारी उम्मीदें पूरी नहीं हो पाई. वादे अभी अधूरे हैं.
  • 43 फीसदी किसान और 28 फीसदी व्यापारी मानते हैं कि वादे पूरे हुए हैं,
  • 71 फीसदी महिलाओं,  62 फीसदी पुरुषों ने कहा कि उनसे किए वादे अनसुने रह गए.

इस बार कैसा हो प्रत्याशी?

  • प्रत्याशी साफ छवि- ईमानदार पहली पसंद लेकिन महिला आखिरी
  • साफ और ईमानदार छवि का हो- 26 फीसदी
  • जो आसानी से उपलब्ध हो-21.2 फीसदी
  • जो सड़क-बिजली पानी पर ध्यान दें- 18.6 फीसदी
  • जो अफसरों से काम करवा सके - 16.2 फीसदी
  • युवा- 11.4 फीसदी
  • पसंदीदा पार्टी जिसे भी टिकट देगी - 4.7 फीसदी
  • महिला- 1.9 फीसदी
  • व्यापारियों की पहली पसंद- जो आसानी से मिले
  • सिर्फ 5 फीसदी महिलाओं ने महिला उम्मीदवार को वोट देने की बात कही वहीं पुरुषों में 1.6 फीसदी ही है जो महिला प्रत्याशी को मतदान करना चाहते हैं.

विधायक से कितने संतुष्ट

  • 24 फीसदी विधायक के काम से संतुष्ट, इनमें किसान ज्यादा
  • संतुष्ट - 24 फीसदी  
  • असंतुष्ट- 63 फीसदी
  • आशिंक संतुष्ट - 13 फीसदी
  • जातियों में एससी सबसे ज्यादा संतुष्ट
  • 32 फीसदी किसान बोले- वे विधायक के काम संतुष्ट.
  •  शहरों में (59) फीसदी के मुकाबले गांव वाले (67) फीसदी ज्यादा असंतुष्ट हैं.
  • ओबीसी सबसे ज्यादा 66 फीसदी और सामान्य वर्ग के सबसे कम 59 फीसदी लोगों ने कहा कि वे संतुष्ट नहीं है.
  • प्रोफेशनल 25 फीसदी के मुकाबले व्यापारी वर्ग 28 फीसदी विधायक से ज्यादा खुश.

क्षेत्र की बड़ी जरूरत क्या?

  • शिक्षा में सुधार पहली और बेहतर इलाज दूसरी जरूरत
  • स्कूल और कॉलेज शिक्षा में सुधार- 20 फीसदी
  • सरकारी अस्पताल में बेहतर इलाज -19 फीसदी
  • बेहतर प्रशासन और कानून-व्यवस्था- 18 फीसदी
  • रोजगार- 18 फीसदी
  • पेयजल और सफाई- 10 फीसदी
  • आवारा पशुओं से निजात-8 फीसदी
  • फसलों का सही मूल्य- 7 फीसदी
  • सामान्य वर्ग चाहता है- बेहतर इलाज
  • महिलाओं (21 फीसदी) के लिए रोजगार और सामान्य वर्ग (21 फीसदी) के लिए सरकारी अस्पताल में बेहतर इलाज बड़ी जरूरत

पिछली बार  (2018) का मुद्दा

  • 2018 में रोजगार-कर्ज माफी था सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
  • रोजगार- 34.5 फीसदी
  • कर्ज माफी कृषि आय में वृद्धि- 27.2 फीसदी
  • महंगाई -12.5 फीसदी
  • अच्छी शिक्षा -7.8 फीसदी
  • स्वास्थ्य सुविधाएं -7.3 फीसदी
  • कानून-व्यवस्था- 5.9 फीसदी
  • सामाजिक सुरक्षा लाभ- 4.8 फीसदी
  • किसानों के लिए कर्जमाफी बड़ा मुद्दा था
  • पिछले चुनाव में किसानों (61 फीसदी ) व्यापारियों (30 फीसदी) और 10 वीं से कम -पढ़ लिखे वालों (31 फीसदी) के लिए बड़ा मुद्दा कर्जमाफी था.

चुनाव बाद कौन सक्रिय 

  • न जीता न हारा प्रत्याशी, कोई तीसरा ज्यादा सक्रिय
  • कोई अन्य- 47.6 फीसदी
  • मौजूदा विधायक - 34.4 फीसदी
  • हारे हुए प्रत्याशी- 18 फीसदी
  • एसटी के लिए विधायक सबसे एक्टिव रहा
  • 38 फीसदी शहरी लोगों का कहना है कि मौजूदा विधायक ज्यादा सक्रिय रहा जबकि गांवों में ऐसा मानने वाले लोग 31 फीसदी ही है.
  • 55 फीसदी एसटी, 48 फीसदी ओबीसी, 47 फीसदी सामान्य और 46 फीसदी एससी वर्ग के लोगों का मानना है कि पिछले चुनाव के नतीजों के बाद कोई अन्य ज्यादा एक्टिव रहा. 

ज्यादा असंतुष्ट किससे

  • आधे से ज्यादा लोग विधायक और सरकारी दफ्तरों से असंतुष्ट
  • स्थानीय विधायक- 32 फीसदी
  • सरकारी दफ्तर- 30.3 फीसदी
  • सरकारी अस्पताल- 10.6 फीसदी
  • पुलिस स्टेशन -6.6 फीसदी
  • अन्य- 20.5 फीसदी
  • सबसे कम असंतुष्टि पुलिस स्टेशन से
  • सरकारी (29फीसदी ) व प्राइवेट जॉब (34 फीसदी ) वाले और ज्यादा पढ़े लिखे (32 फीसदी ) लोग सरकारी दफ्तर से सबसे ज्यादा असंतुष्ट
  • सिर्फ 7 फीसदी लोग ही पुलिस स्टेशन से नाखुश हैं. 

2018 में फैक्टर क्या था

  • पिछली बार 88 फीसदी ने पार्टी व प्रत्याशी पर वोट दिया था 
  • 2018 में 44.4 फीसदी -पार्टी पर वोट दिया था.  43.6 फीसदी के लिए प्रत्याशी, 9.5 फीसदी - सीएम फेस, 1.3 फीसदी जाति, 1.2 फीसदी ने धर्म पर वोट दिया था
  • सीएम फेस तीसरी बड़ी प्राथमिकता थी. पिछली बार 9.5 के लिए सीएम फेस पर वोट दिया था इस बार 4.6 फीसदी के लिए सीएम फेस मायने रखता है.

21.2 फीसदी लोग ही चुनावी फ्रीबीज को सही मानते हैं

  • सरकारी जॉब वाले 87 फीसदी लोग बोले- गलत है
  • छत्तीसगढ़ के 79 फीसदी लोग भले फ्रीबीज को गलत मानते है लेकिन फर्स्ट टाइम वोटर में से 30 फीसदी और 10 वीं तक पढ़े 34 फीसदी लोगों का कहना है फ्रीबीज सही है. सरकारी जॉब में 87 फीसदी लोग इसे गलत मानते हैं, एससी के 30 फीसदी लोग कहते हैं -यह गलत नहीं. 

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