Chhattisgarh Election 2023: छत्तीसगढ़ चुनावी (Chhattisgarh election 2023) मुहाने पर खड़ा है. इसी बीच छत्तीसगढ़ की राजनीति में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम (Arvind netam) के ऐलान पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. अरविंद नेताम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) सरकार में काम कर चुके है. लंबे समय से कांग्रेस पार्टी (Congress party) से जुड़े रहे लेकिन अब उन्होंने कांग्रेस खिलाफ बगावत शुरू कर दी है. कभी भी पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं. इससे पहले ही उन्होंने आदिवासी समाज को 50 सीट पर चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है. चुनाव लड़ने की क्यों जरूरत पड़ी इसपर अरविंद नेताम से एबीपी लाइव ने एक्सक्लूसिव बातचीत की है. 


अरविंद नेताम ने 50 सीट पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया
दरअसल, बुधवार को छत्तीसगढ़ विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day 2023) मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में आदिवासी समाज ने भी राजधानी रायपुर के इंडोर स्टेडियम में एक सभा का आयोजन किया है. इस दौरान बड़ी संख्या में अरविंद नेताम ने भीड़ जुटाकर कांग्रेस और बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाने की चेतावनी दे दी है. इसके अलावा उन्होंने छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का दावा किया और उन्होंने जमकर कांग्रेस और बीजेपी पर निशाना साधा है. नेताम में इंदिरा गांधी के समय के कांग्रेस और वर्तमान कांग्रेस पार्टी में फर्क बताया है.


सवाल: आदिवासी समाज को चुनाव लड़ने की क्यों जरूरत पड़ रही है?
जवाब: समाज के साथ अन्याय होगा तो समाज को चुनाव लड़ना ही पड़ेगा. कोई रास्ता दिखता नहीं है. हमने सर्व आदिवासी समाज के मंच से करीब 15 से 20 साल तक अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे कोई सुनवाई नहीं होती है कांग्रेस हो या बीजेपी. इस लिए समाज ने फैसला किया है राजनीति में उतरेंगे.


सवाल: इंदिरा गांधी के समय और आज के कांग्रेस में क्या अंतर है?
जवाब: आज से 30 साल पहले की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में फर्क है. पहले की सरकारों में आदिवासियों को सुना जाता था और आदिवासियों की लड़ाई लड़ती रही. अब हम कह रहे हैं कि आदिवासी खुद की लड़ाई लड़े. सरकार के भरोसे रहोगे तो गड्ढे में जाओगे. क्योंकि यहां कोई सुनवाई होना ही नहीं है.अभी के कांग्रेस पार्टी में और नेताओं में है यह सबसे बड़ा फर्क है. 


सवाल: राज्य की कांग्रेस सरकार आदिवासी हितैषी होने का दावा करती है ये कितना सत्य है?
जवाब: सरगुजा में पांच साल से कोयले की खदान को लेकर आंदोलन चल रहा है. पेशा कानून के खिलाफ आंदोलन हो रहा है. जंगल काट रहें है. बस्तर में 20 - 25 जगह एक साल से आंदोलन चल रहा है.ये आंदोलन क्यों हो रहा है.? अबूझमाड़ में आंदोलन हो रहा है. पुलिस की फायरिंग में हमारे लोग मारे गए. इसपर 4 -4 जुडिशियल कमेटी की जांच के बाद रिपोर्ट आ गई. उसको सार्वजनिक क्यों नहीं करती सरकार. हमारे लोग क्यों मारे गए जानना चाहता है समाज. हमारे साथ अत्याचार हुआ. 


सवाल: आपको किस काम के लिए चुनाव में आना पड़ रहा है?
जवाब: आदिवासी समाज का काम नहीं है चुनाव लड़ना लेकिन मजबूरी है. इसके सिवाय कोई चारा नहीं है. पेशा कानून का ऐसी की तैसी हो गया. पहले जल जंगल जमीन पर समाज का कुछ नियंत्रण था सब खत्म कर दिए. इतने आंदोलन हुए सरकार से कोई गया नहीं. सीलगेर में फायरिंग हुआ और आदिवासी मारे गए, लेकिन कोई गया नहीं. सरकार में बैठे लोगों को जाना चाहिए. जाओगे नहीं और यहां मौज करोगे.


सवाल: विश्व आदिवासी दिवस के अवसर उमड़ी भीड़ का क्या मतलब है?
जवाब: ये समाज का मूड भांप लीजिए. इस आदिवासी समाज ने 150 साल पहले अंग्रेजो से लड़े. जल जंगल जमीन को लेकर अपनी सरकार से लड़ने में कौन सा दिक्कत है. अंग्रेजों ने तोप से उड़ाया हमारे पुरखे शहीद हो गए. लेकिन चिंता नहीं किए आज हम लड़ रहे है और लड़ेंगे. उसमें क्या दिक्कत है. सरकार में बैठ कर हमारी भावनाओं को नहीं समझोगे तो यही होगा.


सवाल: क्या आदिवासी को छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बनाना चाहिए?
जवाब: छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री बनना चाहिए. छत्तीसगढ़ में नहीं बनेगा तो हरियाणा में बनेगा मुख्यमंत्री और कहां बनेगा. यहां पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.अब इस देश में आदिवासी मुख्यमंत्री बन ही नहीं सकता है. ये दोनों पार्टी नहीं बनाने वाली है. बीजेपी और कांग्रेस की मानसिकता वही है. अगर मानसिकता ठीक रहती तो हमे चुनाव लड़ने की नौबत नहीं आती. वहीं चुनाव चुनाव लड़ने के लिए रणनीति के लिए कहा कि 90 की जगह 50 सीट पर चुनाव लड़ेंगे.


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