Korba News: आज के दौर में जहां लोग अपनी परंपरा और संस्कृति से विमुख हो रहे हैं, एक परिवार ने घर की शादी में ऐसी मिसाल पेश की, जिसे देख लोग हर्षित भी हुए और अचंभित भी. दरअसल यहां दूल्हा बने इंजीनियर की बारात अपनी दुल्हन को लाने किसी महंगी-लंबी कार में नहीं, बल्कि बैलगाड़ी में रवाना हुई. इसके पहले विशुद्ध छत्तीसगढ़ी में लिखे शादी के कार्ड में सुघ्घर बिहाव के नेवता से आमंत्रण भेजा गया. इतना ही नहीं, रिसेप्शन में परिजनों ने छत्तीसगढ़ी पारंपरिक परिधान में ही मेहमानों का स्वागत किया.
इस दौरान चीला-बोबरा, मुर्रा-लड्डू जैसे ठेठ छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की महक भी बिखरी, जिनसे जलसे को और खास बना दिया. छत्तीसगढ़ी संस्कृति से ओत-प्रोत रेलवे इंजीनियर की अनोखी शादी में जिस किसी ने भी मौजूदगी दर्ज कराई, भाव-विभोर हुए बिना न रह सका. आधुनिकता की चकाचौंध के विपरीत इस परिवार ने अपनी मातृभाषा, पुरातन संस्कृति और रीति रिवाज को लेकर नई बहू का स्वागत-अभिनंदन किया. इस शादी की हर रस्म पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया संस्कृति की झलक को प्रदर्शित करते हुए पूरी की गई.
बैलगाड़ी से निकली बारात
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह में पदस्थ सहायक अभियंता कमलेश चन्द्रा के पुत्र मयंक चन्द्रा का विवाह विधि-विधान से संपन्न हुआ. मयंक रेलवे में इंजीनियर हैं, जिनका विवाह पड़ोसी जिला सक्ती के ग्राम सेरो निवासी मनहरण लाल चन्द्रा की पुत्री प्रियंका के साथ 18 फरवरी को किया गया. प्रियंका एम्स भुवनेश्वर में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर पदस्थ हैं. मयंक और प्रियंका की शादी का कार्ड छपा, तो वह पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया भाषा-बोली में रहा सुध्घर बिहाव के नेवता. दूल्हा बने मयंक की बारात निकली तो किसी चमचमाती महंगी गाड़ी में नहीं बल्कि बैलगाड़ी में.
विवाह में दिखा छत्तीसगढ़ी झलक
आशीर्वाद समारोह भी अनोखे अंदाज में हुआ. नव दम्पत्ति को आशीर्वाद देने पहुंचे मेहमानों का दिल उस वक्त झूम उठा, जब उन्होंने समारोह स्थल की सजावट देखी. रिसेप्शन के लिए स्टेज से लेकर कोना-कोना पूरी तरह से छत्तीसगढ़िया परिवेश की झलक प्रस्तुत कर रहा था. स्वागत द्वार पंडाल से लेकर स्टेज और भोजन की पूरी व्यवस्था छत्तीसगढ़िया संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा में रंगी हुई नजर आई. स्टेज में फूलों की बजाय परंपरागत पर्रा-सूपा और टोकनी-दौरी और मां लक्ष्मी स्वरूप घास झाडू की सजावट की गई थी. मुख्य स्टेज में जहां छत्तीसगढ़िया कलाकृति उकेरी गई थी, वहीं प्पर्रा, सूपा, टोकनी, दौरी, घास, झाडू आदि से सजाया गया था. जिन्हें लक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है. लालटेन की टिमटिमाती रोशनी मेहमानों को लुभा रही थी.
अलग अंदाज में परोसे गे व्यंजन
छप्पर की छानी में विभिन्न छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्टाल लगाए गए थे. यहां मेहमानों को पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़िया व्यंजनों का स्वाद मिला, जिसमें बोरे बासी भी शामिल रहा. चिला, मूंग भजिया, चना चरपटी, फरा, खुरमी, तिखुर, डुबकी, बटकर की सब्जी, जिमी कांदा, ननकी बड़ी, प्याज भाजी, चावल दाल, बिजौरी, अइसा, ठेठरी, गुचकुलिया, लाई बड़ी, मुनगा-झुनगा-बड़ी, उसना चावल, मुर्रा लड्डू आदि व्यंजन परोसे गए. यही नहीं खाने की प्लेट पर पत्तल सजाए गए थे. कुर्सी की जगह खाट बिछाई गई थी. भोजन परोसने से लेकर कैटरिंग के कार्य में लगे लोग पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़ी परिधान, वेशभूषा में नजर आए.
लोक संगीत में झूमे मेहमान
समारोह में डीजे का शोर नहीं, बल्कि लोकरंग अर्जुंदा के कलाकारों की तरफ से छत्तीसगढ़िया गीतों की प्रस्तुति दी जाती रही. मेहमानों ने इस अवसर पर खूब सेल्फी ली और वीडियो- रील भी बनाया. सहायक अभियंता कमलेश चन्द्रा ने बताया कि आज लोग अपनी छत्तीसगढ़िया संस्कृति, व्यंजन, खानपान, वेशभूषा आदि को भूलते जा रहे हैं. ऐसे में उन्होंने इस विवाह आयोजन के माध्यम से लोगों के मन में छत्तीसगढ़िया संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए विचार रखकर इस तरह का आयोजन किया. उन्हें इस बात की खुशी है कि वे अपनी संस्कृति को रेखांकित कर पाए. समारोह में पहुंचे सभी मेहमानों ने इसे सराहा है.
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