छत्तीसगढ़ के बस्तर में अब काली मिर्च की खेती भी कारगर साबित होने लगी है. कोंडागांव जिले में वन विभाग ने इस काली मिर्च की पौधे रोपे थे और करीब 5 साल इंतजार करने के बाद अब इसके पौधे बड़े होने के साथ ही इसमें काली मिर्च के फल आने भी शुरू हो गए हैं. दरअसल वन विभाग पिछले कई सालों से साल वृक्षों के पास काली मिर्च की खेती के लिए पौधारोपण कर रहा था.


लंबे इंतजार के बाद अब आखिरकार बस्तर के कोंडागांव जिले में भी काली मिर्च की खेती सफल होने से वन विभाग में भी खुशी है, साथ ही अब कोंडागांव के ग्रामीण और किसानों को भी काली मिर्च की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने की बात विभाग के अधिकारियों ने कही है, यह पहली बार है जब बस्तर संभाग के किसी जिले में काली मिर्च की खेती की जा रही है. 




वहीं कृषि वैज्ञानिकों ने इस काली मिर्च के खेती के लिए बस्तर के वातावरण को भी अनुकूल बताया है और वहीं अब काली मिर्च का प्रयोग सफल होने के बाद विभाग ने किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित करने के साथ ही इसके पौधे रोपण के लिए ट्रेनिंग देने की भी बात कही है.


ग्रामीण और किसानों को खेती के लिए करेंगे प्रोत्साहित


कोंडागांव वन विभाग के डीएफओ ने बताया कि प्रायोगिक तौर पर वन विभाग ने काली मिर्च की खेती शुरू की थी. वन क्षेत्रों में काली मिर्च के पौधे साल वृक्षो के पास रोपे गए थे और उनकी बेल साल वृक्षों पर चढ़ाई गई थी, जिनमें अब काली मिर्च की फल आने शुरू हो गए हैं. उन्होंने बताया कि साल 2006 और साल 2008 में जिले के दहीकोंगा परिक्षेत्र के अंतर्गत वनक्षेत्र के साल वनों में काली मिर्च के पौधे रोपण के लिए वनौषधि पादप बोर्ड से करीब 9 लाख रुपये और 8 लाख रूपए का बजट प्राप्त हुआ था.


 इस राशि से प्रायोगिक तौर पर  साल वृक्षों में काली मिर्च की 7 हजार बेल और साल 2008 में काली मिर्च की 15  हजार बेल चढ़ाई गई थी, साल 2015 में काली मिर्च के एक लाख पौधे तैयार करने के लिए 13 लाख रूपए प्राप्त हुए, जिससे कोपाबेड़ा नर्सरी कोण्डागांव परिक्षेत्र द्वारा ग्रामीणों और किसानों को वितरण के लिए काली मिर्च के पौधे तैयार किए गए थे, काली मिर्च की खेती के लिए ये दोनों परियोजनाएं प्रायोगिक तौर पर शुरू की गई थी.


 काली मिर्च का पौधा रोपण साल वृक्षों में किया गया था, जिसमें वर्तमान में फल आने शुरू हो गए हैं. DFO ने यह जानकारी भी दी है कि कोण्डागांव वनमंडल में  शुरू की गई काली मिर्च की खेती की इस प्रयोगात्मक परियोजना के लिए आंध्रप्रदेश से कालीमिर्च के पौधे नही मंगाए गए थे बल्कि से यही तैयार किया गया था और यह कारगर भी साबित हुआ.


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