Chhattisgarh: केंद्र सरकार के 'श्वेत पत्र' पर कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव का हमला, बोले- 'ऐसा लगता है कि...'
TS Singh Deo: टीएस सिंह देव ने कहा अब किसी भी प्रकार की स्वतंत्र एजेंसी की जानकारी नहीं प्रकाशित की जा रही है. मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि देश में सेंशस जैसी प्रक्रिया अपनाई ही नहीं जाएगी.
Chhattisgarh News: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने लोकसभा में गुरुवार (8 फरवरी) को साल 2004 से 2014 तक यूपीए शासन के दौरान देश की खराब आर्थिक स्थिति को उजागर करने के लिए श्वेत पत्र (व्हाइट पेपर) पेश किया है. इस पर अब छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव (TS Singh Deo) की प्रतिक्रिया सामने आई है. उन्होंने बीजेपी की केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार लोगों को सही जानकारी नहीं दे रही है और कहानियों के आधार पर लोगों को गुमराह करके प्रभावित करने की कोशिश कर रही है.
टीएस सिंह देव ने एएनआई से बात करते हुए कहा, "अब किसी भी प्रकार की स्वतंत्र एजेंसी की जानकारी ही नहीं प्रकाशित की जा रही है. मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि देश में सेंशस जैसी प्रक्रिया अपनाई ही नहीं जाएगी. यह बीजेपी सरकार ही कर सकती है. अगर आप देखेंगे तो कोई भी डेटा उपलब्ध नहीं है और जो भी डेटा उपलब्ध है उसके अनुसार यूपीए काल के दौरान 10 सालों में जीडीपी बढ़ोतरी अन्य सरकारों और मौजूदा सरकार की तुलना में भी बेहतर थी."
#WATCH | Delhi: Former Deputy Chief Minister of Chhattisgarh and Congress leader TS Singh Deo says, "... It seems that the government is not providing correct information to the people and is trying to influence people by misleading them on the basis of stories. Therefore,… pic.twitter.com/TETfDvHWn1
— ANI (@ANI) February 9, 2024
श्वेत पत्र में दी गई ये जानकारी
दरअसल पीएम मोदी ने संसद में बोलेते हुए यूपीए सरकार के 10 सालों के आर्थिक कुप्रबंधन को लेकर श्वेत पत्र लाने की बात की थी. यह श्वेत पत्र सदन में शुक्रवार (9 फरवरी) या फिर शनिवार (10 फरवरी) को पेश किया जाना था. हालांकि, इसे गुरुवार (8 फरवरी) को जारी कर दिया गया है.
श्वेत पत्र में बताया गया है कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से मजबूत आर्थिक विरासत मिलने के बावजूद संप्रग सरकार ने 2004 के बाद अपनी खोखली आर्थिक नीतियों और आर्थिक घोटाले की बदौलत देश की अर्थव्यवस्था को कर्ज और राजकोषीय घाटे से लाद दिया. इससे विदेशी निवेशक निवेश से हिचकने लगे, मैन्यूफैक्चरिंग में गिरावट होने लगी, महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई और जनता बिजली, पेयजल, अस्पताल जैसी आधारभूत सुविधाओं के लिए तरसने लगी.
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